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madhusudhansharm1116
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MADHUSUDHAN sharma

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MADHUSUDHAN sharma

में किसी किताब के उस  कागज कि तरह नहीं जिसे लोग अक्सर पढा करते है में तो वो पेपर हूं जिसे अक्सर पढ कर भूल जाया करते है  पड़ा हुआ हूं किसी कोने में सड रहा हूं कोई पूछता ही नही मर रहा हूं या सड रहा हूं  इक लाश

इक लाश

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MADHUSUDHAN sharma

मे पानी में भिगे उस पेपर कि तरह हूं दिखने में मस्त छूअन मे बिखरा पड़ा हूं छुपा हुआ गम

छुपा हुआ गम

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MADHUSUDHAN sharma

बचपन की कुछ यादें अब तस्वीर बन रही है. अब दिलो  मे कहां वो तो एल्बम में पड़े सड रही है और जो फोन कि गैलरी है अब इतनी भर चुकी है जो निचे था निचे नजरे बस उपर वालो पर टिकी है. मसला यादो का है

मसला यादो का है

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MADHUSUDHAN sharma

एक आहट को तेरी आज भी तरस जाता हूं आखों से पानी,,,, दिल से बच्चा हो जाता हूं ये तेज हवाएं बिजली कि गरगराहट आज भी डरा देती है  तु जो पास न हो  तो मुझे रुला देती है.....मंजिल के सफर मे अब भटक सा गया  हुं .... मां ... अब तो तेरे हातो कि रोटी को तरस सा गया हूं   रोक ना सका तुझे दुर जाने से आजा     आजा पास अब तो डर लग रहा  है जमाने से भटका मन मां को ढूंढे

भटका मन मां को ढूंढे

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MADHUSUDHAN sharma

बिच सड़क पर नजरें तुमसे टकराई लग गया ट्रेफिक ये किसी को समझ ना आई आखें खुली तो था पडा हास्पिटल में ना जाने तुम कैसे मेरे दिल मे उतर आई सड़क दुर्घटना

सड़क दुर्घटना

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MADHUSUDHAN sharma

गदारो कि महफिलों का साथी हू गदार तो नही बस बेकार सा साथी हूं यू समय खराब मत कर अपना मुझसे दोस्ती कर शायद तेरे किसी काम का नही हूं दिल मे थोडा सा डर है तुझे पा के खोने का इसलिए बस थोडा परेसान हूं या शायद तेरे पास नही हूं  सिखा है जमाने से धोखा देना पर धोखेबाज नही हूं बस थोडा अलग हूं दुनिया से पागलपन है पर पागल  नही हूं  दोस्त हूं तेरा पर शायद तु ही मेरा दोस्त नही है झुठे रिश्ते

झुठे रिश्ते

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MADHUSUDHAN sharma

फेका था एक गुबारा मेने भी होली पर उन लोगो के उपर  कि जरूर  मेरे गुब्बारे का  रंग फिका होगा न आया उन्हे पसंद यू गुबारा  मारना  कि गाली देकर उन्हें दरवाजे पर मेरे थूकना पसंद आया होगा फिका गुब्बारा

फिका गुब्बारा

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MADHUSUDHAN sharma

पलभर की है जिन्दगी  की देख वो भी न रही मांगा था साथ सांस थमने थक का की साथ वो भी न रही अजीब जंग है न जिन्दगी की की देख मरने के  बाद भी जंग खत्म न हुई अजिब जंग

अजिब जंग

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MADHUSUDHAN sharma

हर शाम को सूरज ढलता है हर रात को चांद निकलता है तारे ना हो न तो ये आसमान भी बेकार सा लगता है ढलता सूरज

ढलता सूरज

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MADHUSUDHAN sharma

में कागज का वो टुकड़ा  हु जो किसी काम का नही पर बहोत काम का हूं कागज काम का

कागज काम का

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