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sagarkaul4292
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Sameer Kaul 'Sagar'

Sketch Artist, Poet, Singer All in one 😉

mycrushedmirror.blogspot.com

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Sameer Kaul 'Sagar'

दूर से आती आवाज़ें पहचानने से क्या होगा,
तेरा यहाँ कोई हम-नफ़्स-ओ-हबीब-ए-ख़ास नहीं।

ग़ैर की महफिलों में खुश रहने की कोशिशें तमाम कर,
इश्क़ की तन्हाईयाँ छोडेंगी कभी तेरा साथ नहीं।

जिसकी उम्मीद-ए-आमद में है तेरी आँखों में चमक
तेरे सबब-ए-ग़म से उसे कोई वास्ता ही नहीं।

साया  फ़कत उजालों में होगा तेरा शरीक-ए-सफर,
शब-ए-ग़म में उसे भी है तेरा साथ गवारा नहीं।

तू दरिया-ए-ना-पैदा का क़तरा-ए-ग़म-गश्ता है,
तेरी तक़दीर में आगोश-ए-सागर लिखा ही नहीं।


हम-नफ़्स-ओ-हबीब-ए-ख़ास ( करीब और खास दोस्त )
उम्मीद-ए-आमद ( आने की उम्मीद )
सबब-ए-ग़म ( दु: ख का कारण )
शरीक-ए-सफर ( दु: ख में भागीदार )
शब-ए-ग़म ( दु: ख की रात )
दरिया-ए-ना-पैदा ( नदी जो अजन्मे है; ग़ायब है )
क़तरा-ए-ग़म-गश्ता ( खोई बूंद )
आगोश-ए-सागर ( सागर के गले )

©Sameer Kaul 'Sagar' #grey

14 Love

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Sameer Kaul 'Sagar'

दर्द लगता है ख़ुशगवार हमें, जब भी पूछता है तू हाल मेरा,
सुना है तू भी दर्द-ए-इश्क में है, जब से देखा है हाल मेरा ।

रातों में सुलाने को तेरा तिलिस्म-ए-हर्फ-ओ-नवा रहता है
तेरी हलावत-ए-निगह-ए-मुख़्तसर से अब बहलता है दिल मेरा ।

चाँद की रातों में जब भी टूटता है आसमां से तारा कोई,
महसूस होता है कि मुझसे बिछड़ा है अहबाब-ए-राज़-दाँ मेरा ।

दिल की गहराइयों में छुपा रखी हैं अपनी तन्हाई की बातें,
आंखों की पलकों में छिपा है अश्क-ए-खूं का हर इक क़तरा मेरा ।

जहां-आफरीं से खफा हूँ, मैं जहां-ए-दर्द-ओ-अलम से खफा हूं,
मैं ग़म-ए-जिंदगी से खफा हूं, खफा है मुझसे पैक-ए-अजल मेरा ।


तिलिस्म-ए-हर्फ-ओ-नवा ( Magic word and sound )	
हलावत-ए-निगह-ए-मुख़्तसर (Taste of fleeting glance )
अहबाब-ए-राज़-दाँ ( Reliable friends )
अश्क-ए-खूं ( Tears of blood )
जहां-आफरीं ( Creator of the world )
जहां-ए-दर्द-ओ-अलम ( World of pain and grief )
पैक-ए-अजल ( The messenger of death )

©Sameer Kaul 'Sagar' #LateNight

13 Love

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Sameer Kaul 'Sagar'

खाये हैं हमने खलिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह 
कैसा भी हो अब दर्द, बे-असर सा लगता है 

मेरे आशना कुछ खिंचे खिंचे से रहते हैं 
उनके लहजे में दुश्मन का असर लगता है 

घर जलाने में माहताब-ए-फलक था शरीक
अब हमें चांदनी रातों से भी डर लगता है 

ता-उम्र का वादा, उम्र-ए-मुख़्तसर का साथ
हर्फ़-ए-दिल अब ज़हराबा-ए-पैकर लगता है 

क़त्ल-ए-क़ासिद देखा जबसे  हमने रू-ब-रू
हर शख़्स के खंजर-दर-आसतीं हमें लगता है 

थे ज़ुल्फ़-ए-खूबां की नर्म छाँव में कभी 'सागर'
अपना साया भी अब ग़ैर मोअतबर लगता है


खलिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह - bruises from many arrows
माहताब-ए-फलक - moon of sky
शरीक - involved
उम्र-ए-मुख़्तसर - short age
हर्फ़-ए-दिल - word of heart
ज़हराबा-ए-पैकर - poisonous form
क़त्ल-ए-क़ासिद - murder of messenger
ख़ंजर-दर-आसतीं - dagger in sleeve
ज़ुल्फ़-ए-खूबां - tresses of beloved
ग़ैर मोअतबर – unreliable

©Sameer Kaul 'Sagar' #tootadil

10 Love

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Sameer Kaul 'Sagar'

दिल में है, जिगर में है, और मेरी नज़र में है
मैं तेरे दर्द में हूँ या कहूँ ये दर्द मुझ में है ।

मेरे ख़्वाबों में जिस तरह तेरी यादें है रवाँ,
इस तरह दर्द भी जिस्म में है, मेरी रूह में है ।

तेरे आने की उम्मीद, हाँ का भी है इंतज़ार,
देखते हैं कितना असर मेरी इन दुआओं में है ।

दिल में हैं जज़्बात कई, "सागर" में जितने तूफान,
इन सारे सवालात का हल वस्ल ए यार में है ।

©Sameer Kaul 'Sagar' #hugday

11 Love

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Sameer Kaul 'Sagar'

Red sands and spectacular sandstone rock formations तुम थी जहाँ तुम हो वहीं, था मैं जहाँ, पर वहां मैं नहीं,
है जिस्म कहीं, है जां कहीं, है दिल कहीं, मेरी रूह कहीं।

रास्तों पर हैं मेरे कदम, मंज़िलों पर है मेरी नज़र,
रहगुज़र कहीं, हमसफ़र कहीं, मेरे हमकदम हैं अब कहीं।

मेरी भी थीं कुछ ख़्वाहिशें, कुछ ख्वाब थे उम्मीदों के,
टूटा आइना ख्वाब का, टूकड़े ही टुकड़े थे हर कहीं।

तुझे ढूंढता रहा मैं दर बदर, इस डगर, कभी उस डगर,
नज़र कहीं, थे कदम कहीं, जाना कहीं और पहुंचा कहीं।

शोर का सैलाब है मेरे ज़ेहन पर, मेरे जिस्म में,
दरिया कहीं, किनारा कहीं, सागर कहीं और साहिल कहीं।

©Sameer Kaul 'Sagar' #Sands

10 Love

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Sameer Kaul 'Sagar'

मंज़िलों से कह दो मेरी राह तकना छोड़ें,
चराग़ों को बुझने की इजाज़त चाहे दे दो ।
कोह-ए-गिराँ से कह दो रोक लें चाहे रस्ता,
शजरों से कह दो साया सर से तुम हटा दो ।
ख़्वाबों के टूट जाएँ मेरी आँखों से सारे रिश्ते,
जिसको भी हो ज़रुरत मेरी नींदें उधार दे दो ।
ना पुकारे अब, किसी दीवार-ओ-दर से कोई,
मेरे ही घर में मुझको क़ैद-ए-दर-ओ-बाम दे दो ।
बिछड़ा जो हमसफ़र, बे-ख़्वाहिश हो गए हम भी,
उम्मीदों को चाहे ना-उम्मीदी का मोड़ दे दो ।
ना रहा वो जो मेरा, क्यों कर मैं रहूँ किसी का,
महफिलें उसको हों सलामत, मुझे कुंज-ए-लहद दे दो ।

कोह-ए-गिराँ ( पर्वत )
शजरों ( पेड़ों )
दर-ओ-दीवार ( दीवारों और दरवाजों )
क़ैद-ए-दर-ओ-बाम ( दरवाजे और छत का कारावास )
कुंज-ए-लहद ( कब्र का कोना )

©Sameer Kaul 'Sagar' #Apocalypse

13 Love

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Sameer Kaul 'Sagar'

आओ कुछ ऐसा किया जाए,
ब-रंग-ए-बू-ए-गुल चुरा लिया जाए,
उनके होने का एहसास न हो हमें,
गुलशन-ए-दहर को फना किया जाए।

आओ कुछ ऐसा किया जाए,
आसमाँ को बे-माहताब किया जाए,
तड़पता रहा हिज्र में ता-उम्र मैं जैसे,
सितारों को भी तड़पा लिया जाए।

आओ कुछ ऐसा किया जाए,
रास्तों को और लंबा किया जाए,
तक़दीर में गर लिखा है सफर तन्हा,
मंज़िलों का क्यों इरादा किया जाए।

आओ कुछ ऐसा किया जाए,
खुद को खुद से जुदा किया जाए,
दरिया खोता है जैसे अपना वजूद,
खुद को ग़र्क़-ए-जाम किया जाए।

आओ कुछ ऐसा किया जाए,
थक के अब घर का रुख किया जाए
हम-सुबू को बना के यार-ए-ग़म-ग़ुसार,
राह-ए-दयार का पता लगाया जाए।

ब-रंग-ए-बू-ए-गुल ( Color & Fragrance of Flowers )
गुलशन-ए-दहर ( Garden of World )
बे-माहताब ( Without Moon )
ग़र्क़-ए-जाम ( Drowned in Glass of Wine )
हम-सुबू ( Fellow Drinker )
यार-ए-ग़म-ग़ुसार ( Companions who Emphasize )
राह-ए-दयार ( Way to Home )

©Sameer Kaul 'Sagar' #Apocalypse

16 Love

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Sameer Kaul 'Sagar'

तेरे हिस्से में आईं जहां भर की खुशियां तमाम,
हमारे हिस्से तो फ़क़त ज़माने के गम आये हैं। 

तही दस्त नहीं लौटता तेरे दर से कोई फकीर,
सो तुमसे तुम्ही को पाने हम, सहर-ए-दम आये हैं।

तेरे अल्फ़ाज़ों के तीरों ने यूं ज़ख्मी किया हमें,
इसलिए अपनी आशनाई में खम-दर-खम आये हैं।

बर्ग-ए-खिजां ने टूटते ही चूमा जो फ़र्श-ए-हज़ीं,
तुमसे बिछड़ते ही हम भी आगोश-ए-ग़म आये हैं।

खूब सजीं है मेरे शहर में आज महफिलें तेरी,
तभी हमारी मय्यत पे अहल-ए-वफ़ा कम आये हैं।

मुंतज़िर था तेरी दीद को दफन होने से पहले,
वक़्त-ए-दफन आये भी तो बे-चश्म-ए-नम आये हैं।

तही दस्त : Empty handed
सहर-ए-दम : Early in the morning
आशनाई : Relationship	
खम-दर-खम : Twist within twist
बर्ग-ए-खिजां : Leaf of autumn
फ़र्श-ए-हज़ीं : Mourning ground
आगोश-ए-ग़म : Embrace of sadness
अहल-ए-वफ़ा : Loyalists
मुंतज़र : Expecting
दीद : Seeing
बे-चश्म-ए-नम : without tears in eyes

©Sameer Kaul 'Sagar' #Apocalypse

13 Love

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Sameer Kaul 'Sagar'

तेरे हिस्से में आईं जहां भर की खुशियां तमाम,
हमारे हिस्से तो फ़क़त ज़माने के गम आये हैं। 

तही दस्त नहीं लौटता तेरे दर से कोई फकीर,
सो तुमसे तुम्ही को पाने हम, सहर-ए-दम आये हैं।

तेरे अल्फ़ाज़ों के तीरों ने यूं ज़ख्मी किया हमें,
इसलिए अपनी आशनाई में खम-दर-खम आये हैं।

बर्ग-ए-खिजां ने टूटते ही चूमा जो फ़र्श-ए-हज़ीं,
तुमसे बिछड़ते ही हम भी आगोश-ए-ग़म आये हैं।

खूब सजीं है मेरे शहर में आज महफिलें तेरी,
तभी हमारी मय्यत पे अहल-ए-वफ़ा कम आये हैं।

मुंतज़िर था तेरी दीद को दफन होने से पहले,
वक़्त-ए-दफन आये भी तो बे-चश्म-ए-नम आये हैं।

©Sameer Kaul 'Sagar' #Journeyofmoon
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Sameer Kaul 'Sagar'

सरसों के खेत जैसी खिलखिला रही है वो ,
पीले गुलाब सी इक कली नज़र आ रही है वो ।

इंद्रधनुष के रंगों से रंग उसने चुराया है ,
मेरी हर मुस्कान की इक वजह बन रही है वो ।

उसकी मीठी सी हंसी में भी है कुछ खास बात ,
कत्ल भी करती है और बेगुनाह भी है वो ।

खुदा ने उसे बहुत फुरसत से बनाया होगा ,
हर हसीन की इक अदा से तराशा गया है वो ।

उसे ना पा सकूं, रहेगा ता-उम्र ये मलाल ,
"सागर" के सीने में नश्तर चला रही है वो ।

©Sameer Kaul 'Sagar' #HappyRoseDay
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