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ravisrivastava7036
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Ravi Srivastava

Teachr (हिन्दी)

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Ravi Srivastava

ज़िन्दगी मेरी औऱ 'जाँ' मेरी !
गाँव में मेरे पास 'माँ' मेरी !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा,जिला-बस्ती )

©Ravi Srivastava
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Ravi Srivastava

'भौजी'
-----------

तुहीं चूल्हा,चउका औ सिल,बट्टा,कुचरी !
तुहीं खेत,बारी औ घर,अँगना,बखरी !!

तुहीं भौजी भइया के हाथे कै मुनरी !
तुहीं भौजी,भइया के आँखी कै पुतरी !!

तुहीं पुन्नवासी कै,जगमग अजोरिया,
चनरमा नियर जइसै,अंगना मा उतरी !!

तुहीं पोथी,पत्रा हौ भइया कै,भौजी,
तुहीं छंद,रस,गीत,कविता कै गगरी !!

दुनौ हाथ जोड़े,छुई गोड़ भौजी,
कभौ तौ मिली,तोहरे ममता कै गठरी !!






✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा, जिला-बस्ती )

©Ravi Srivastava
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Ravi Srivastava

अपने ही मन का,मारा मन !
फिरता रहता,आवारा मन !!

मंडराता फूलों,कलियों पर,
तितली सा ये,बंजारा मन !!

पतझड़ के मौसम मे लगता,
तन्हा,तन्हा,बेचारा मन !!

ये पूस की आधी रात औऱ,
ये आसमान का,तारा मन !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava #lonely
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Ravi Srivastava

जो समझते हैं,मुझको गूँगा मैं !
उनको इसका,जवाब दूँगा मैं !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava
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Ravi Srivastava

Unsplash झर गये सब फूल झर झर !
हम ह्रदय मे शूल भरकर !!
रह गये तट बँधे बस, 
नाव के,मस्तूल बनकर !!

हम कुशल तैराक 
मछली की तरह,
रह गये सूखी नदी के 
कूल बनकर !!

बस भटकते रह गये 
जैसे भ्रमर,
खिल ना पाये डाल पर,
हम फूल बनकर !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava #leafbook
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Ravi Srivastava

Unsplash देखता सूने दृगों में,नीर भर कर !
लिख रहा हूँ,लेखनी में पीर भर कर !!

सर्वथा असहाय सा और दिग्भ्रमित भी,
अग्रसर पथ पर अकेला,धीर धर कर !!

'कुआँ प्यासे को' बुलाकर,ले गया था,
जगमगाना था,मुझे भी हीर बनकर !!

धार देनी थी,मुझे भी लेखनी में,
चमकती मेरी कलम,शमशीर बनकर !!


✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा,जिला-बस्ती )

©Ravi Srivastava #Book
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Ravi Srivastava

Unsplash ये कुहासों से भरे दिन,
रात के ढलते पहर !
जेठ की लू में तपा तन,
पूस की सर्दी कहर !!

कल हरे सौरभ भरे थे, 
तब थे मंडराते भ्रमर !
आज पीले पड़ गये हैं, 
जड़ से मुरझाये शज़र !!

कल सजल जलधार थे,
पर आज हैं,सूखे अधर !
तट पे हैं बहती नदी के, 
फिर भी हैं प्यासे मगर !!

कर रहे थे ज़िन्दगी में,
साथ हम जिसके सफ़र !
समय के इस बियाबाँ में, 
अब भटकते दर ब दर !!

हम भी थे तब,सुर्खियों में,
हम पे सबकी थी नज़र !
आजकल अख़बार के हैं,
एक बासी सी ख़बर !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा,जिला-बस्ती )

©Ravi Srivastava #Book
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Ravi Srivastava

Unsplash उड़ चुके सभी आसमानों में !
एक मैं ही अभी उड़ान में हूँ !!

मैं परिंदो के खानदान का हूँ,
मैं ही बाकी भी खानदान में हूँ !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा, जनपद-बस्ती )

©Ravi Srivastava #Book
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Ravi Srivastava

सूरज करता आँख मिचौनी,
बादल में छिप जाये धूप !

जैसे दुल्हन नयी नवेली,
घूँघट से दिखलाये रूप !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava
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Ravi Srivastava

आज मेरा जन्मदिन है !!









वह सुबह कभी तो आयेगी !
सौभाग्य का सूरज चमकेगा !!

आयेगा लहराता वसंत,
पतझड़ जीवन का बीतेगा !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा,जनपद-बस्ती)

©Ravi Srivastava
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