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ravisrivastava7036
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Ravi Srivastava

Teachr (हिन्दी)

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Ravi Srivastava

#5LinePoetry जहाँ मुद्दत से मैं,आया गया था !
वहीं से आज,ठुकराया गया था !!

खड़ा हूँ वहीं अब,एक ओर हटकर,
जहाँ इज़्ज़त से,बिठलाया गया था !!


✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava #5LinePoetry
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Ravi Srivastava

जैसे कल तक,खुशहाल था सब कुछ, 
साल भर वैसे ही,खुशहाल रहे !!

यार मेरा तू,मालामाल रहे !
साल भर तेरा,नया साल रहे !!

नववर्ष की 
मंगल शुभकामनायें 
 🙏2025🙏

©Ravi Srivastava
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Ravi Srivastava

New Year 2024-25 जब जाल में फँसी तो,एहसास हुआ उसको,
ना साथ दिया उसने,ना ही निभाया रिश्ता !!

यूँ मर रही थी अपने,पानी से ज़ुदा होकर,
मछली समझ रही थी,पानी को ही फ़रिश्ता !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava #NewYear2024-25
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Ravi Srivastava

Unsplash उम्मीद मुझे तुमसे,ज्यादा है मेरे लाल !
तुमको पढ़ा लिखा कर,कर दूँ मैं मालामाल !!

पक्का करो इरादा,पढ़ने का अब 'विशाल' 
कल से ही शुरू कर दो,कल से है नया साल !!

✍️✍️
रवि गुरूजी 
(कवि गुरूजी )

©Ravi Srivastava #Book
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Ravi Srivastava

ज़िन्दगी मेरी औऱ 'जाँ' मेरी !
गाँव में मेरे पास 'माँ' मेरी !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा,जिला-बस्ती )

©Ravi Srivastava
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Ravi Srivastava

'भौजी'
-----------

तुहीं चूल्हा,चउका औ सिल,बट्टा,कुचरी !
तुहीं खेत,बारी औ घर,अँगना,बखरी !!

तुहीं भौजी भइया के हाथे कै मुनरी !
तुहीं भौजी,भइया के आँखी कै पुतरी !!

तुहीं पुन्नवासी कै,जगमग अजोरिया,
चनरमा नियर जइसै,अंगना मा उतरी !!

तुहीं पोथी,पत्रा हौ भइया कै,भौजी,
तुहीं छंद,रस,गीत,कविता कै गगरी !!

दुनौ हाथ जोड़े,छुई गोड़ भौजी,
कभौ तौ मिली,तोहरे ममता कै गठरी !!






✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा, जिला-बस्ती )

©Ravi Srivastava
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Ravi Srivastava

अपने ही मन का,मारा मन !
फिरता रहता,आवारा मन !!

मंडराता फूलों,कलियों पर,
तितली सा ये,बंजारा मन !!

पतझड़ के मौसम मे लगता,
तन्हा,तन्हा,बेचारा मन !!

ये पूस की आधी रात औऱ,
ये आसमान का,तारा मन !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava #lonely
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Ravi Srivastava

जो समझते हैं,मुझको गूँगा मैं !
उनको इसका,जवाब दूँगा मैं !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava
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Ravi Srivastava

Unsplash झर गये सब फूल झर झर !
हम ह्रदय मे शूल भरकर !!
रह गये तट बँधे बस, 
नाव के,मस्तूल बनकर !!

हम कुशल तैराक 
मछली की तरह,
रह गये सूखी नदी के 
कूल बनकर !!

बस भटकते रह गये 
जैसे भ्रमर,
खिल ना पाये डाल पर,
हम फूल बनकर !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava #leafbook
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Ravi Srivastava

Unsplash देखता सूने दृगों में,नीर भर कर !
लिख रहा हूँ,लेखनी में पीर भर कर !!

सर्वथा असहाय सा और दिग्भ्रमित भी,
अग्रसर पथ पर अकेला,धीर धर कर !!

'कुआँ प्यासे को' बुलाकर,ले गया था,
जगमगाना था,मुझे भी हीर बनकर !!

धार देनी थी,मुझे भी लेखनी में,
चमकती मेरी कलम,शमशीर बनकर !!


✍️✍️
रवि श्रीवास्तव 
( गाँव-माचा,जिला-बस्ती )

©Ravi Srivastava #Book
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