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ritusharma9326
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Ritu Nisha

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Ritu Nisha

White  अभी रुक जाता तेरा क्या जाता। 
मुझे और सताता तेरा क्या जाता।

खामोशी से पास से उठ कर गया, 
मुझे नींद से जगाता तेरा क्या जाता।

मैं तेरे नाम की चादर ओड़े लेटी थी, 
इस बला को हटाता तेरा क्या जाता।

मैं लाख बर्बाद सही तू तो दुरुस्त था, 
गिरी थी तो उठाता तेरा क्या जाता।

हमेशा हाँ-हामी के पर्दे में रहने वाले, 
कुछ ख़ुद से बताता तेरा क्या जाता।

तेरी मोहब्बत की सच्चाई का गुमान, 
मेरे जी-ज़ाँ से गिराता तेरा क्या जाता।

यूँ यक़ायक़ छोड़ कर क्यों चला गया, 
जाने का यक़ीं दिलाता तेरा क्या जाता।

कितना तरसे है तेरे चाहे जाने के लिए, 
मुझे एक बार बुलाता तेरा क्या जाता।

रहता निशा के और सोचे समझे जाने को, 
कुछ और सुखन लिखाता तेरा क्या जाता।

©Ritu Nisha #Sad_shayri  Sushant Singh Rajput  sad urdu poetry

#Sad_shayri Sushant Singh Rajput sad urdu poetry #Poetry

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Ritu Nisha

White  मेरा तुझे चाहना काफ़ी था, 
तेरा मेरा हो जाने की ज़रूरत न थी। 

मेरा तुझे बुलाना काफ़ी था, 
तेरे आने की ज़रूरत न थी।

तू जिसके साथ था काफ़ी था, 
तेरा मेरा हो जाने की ज़रूरत न थी।

जितना चला तालुक़ काफ़ी था, 
अब और निभाने की ज़रूरत न थी।

जो कहा जो सुना सब काफ़ी था, 
बातों में बात उलझाने की ज़रूरत न थी।

काफ़ी था वो प्यार वो वक़्त काफ़ी था, 
सदा के लिए पाने की ज़रूरत न थी।

तेरा एक दफ़ा कह देना काफ़ी था, 
आगे कुछ समझाने की ज़रूरत न थी।

जो दिया बस वही सब काफ़ी था, 
कोई वादा क़सम उठाने की ज़रूरत न थी।

नेमत निशा के सब्र ओ शुक़्र काफ़ी था, 
किसीके आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत न थी।

©Ritu Nisha #love_shayari   deep poetry in urdu

#love_shayari deep poetry in urdu #Poetry

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Ritu Nisha

Unsplash छोड़ा है परिंदा खुलीं फ़िज़ा में इस उम्मीद से, 
ढूँढेगा मेरी मुंडेर आख़िर में पुरसुकूँ के लिए।

©Ritu Nisha #library
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Ritu Nisha

White वो शक़्स मुझसे किनारा करके। 
चला गया किसी और का सहारा करके। 

उसने भी सोचा भला बुरा मेरे बारे, 
हम भी पछताए इश्क़ दोबारा करके। 

न उसने समझा न वो समझ पाता, 
की तो थी हमने कोशिश इशारा करके। 

मेरा शुक्रिया तो बनता है मेरे रक़ीब, 
जा रही हूँ मेरे शक़्स को तुम्हारा करके। 

बेहतर तो था अपनी बेकली को जानते, 
खुश हैं अब नुक़सान हमारा करके। 

अब न मुझे मैं दिखती हूँ न मेरे आँसू, 
सब बड़िया है घर में अंधियारा करके। 

सवालों जवाबों में उलझी पड़ी थी कबसे, 
सुलझ गई नीयति नसीब गवारा करके। 

कब बसना भाया है शायरों को निशा, 
मुक़म्मल रहते है ख़ुद को आवारा करके।

©Ritu Nisha #love_shayari  hindi poetry on life

#love_shayari hindi poetry on life #Poetry

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Ritu Nisha

White बस आज आख़िरी चोट खानी थी। 
मुझे ये आख़िरी कसम निभानी थी। 

मेरा भी दिल माना नहीं तुझे रोकने को, 
तेरी भी तरफ़ से मनाही ही आनी थी।

आज के बाद मैं भी आज़ाद और तू भी, 
दास्ताँ ए मोहब्बत यहीं तक जानी थी। 

तेरा अभी तलक किसी का न होना, 
तेरा मेरे पास होने की निशानी थी। 

अब तेरे एहसास का किस्सा ख़त्म शुद, 
के इसने इतनी ही ग़ज़लें लिखानी थी। 

नए क़िरदार हक़दार कलाकार बने बस, 
अगरचे कहानी वही थी जो पुरानी थी। 

बहरहाल अच्छा है तेरा मुझसे दूर जाना, 
तेरा मेरे साथ रहना भी एक परेशानी थी। 

जिन हाथों की लकीरों में तू कभी न था, 
अफ़सोस उन्हीं में तेरी निगेहबानी थी। 

खैर तू अब चला गया है तो क्या ही कहें, 
वगरना नाराज़गीयाँ हमें भी गिनानी थी। 

फ़क़त सफ़र ही अजीब लगा मुझे निशा, 
अंज़ाम की तो शक़्ल जानी पहचानी थी।

©Ritu Nisha #GoodMorning  sad shayari

#GoodMorning sad shayari

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Ritu Nisha

Unsplash एक चमन मेरे आँगन में भी खिलता। 
क्या खूब था अगर मुझे तू मिलता। 

काश हो जाती मोहब्बत हमें तुझसे, 
हमारा भी दिल आसे पासे हिलता। 

आता तो ले जाता कहीं मुझे तुझमें, 
ख़ुदपरस्ती से मेरा हाथ ज़रा ढीलता। 

अब फ़क़त नाम ज़माना ज़िम्मेदारियाँ है, 
तू होता तो मेरा कुछ किरदार छिलता। 

हमे डर न था फ़िर दिल के टूटने वूटने से, 
इश्क़ का दर्ज़ी पैबंद बड़े बड़े सिलता। 

फ़िर निशा भी क्या खूब लिखा करती, 
जो दिल इश्क़ के मसाइलों में झिलता।

©Ritu Nisha #library
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Ritu Nisha

सब लफ़्ज़ों से कहतें इशारा कुछ भी नहीं।
तो फ़िर उस तालुक़ में हमारा कुछ भी नहीं।

हमारा दिल हमारी ख़्वाइश हमारे ख़्वाब,
मेरी क़िस्मतो नसीब तुम्हारा कुछ भी नहीं।

के तू हर हाल चाहिए था के अब कोई नहीं, 
मैंने ज़िंदगी में किया दोबारा कुछ भी नहीं।

वो था और साथ उसके उसका कोई यारों, 
हम पास से गुजर गए पुकारा कुछ भी नहीं। 

जिस भी जानिब देखूँ वो ही वो नज़र आए, 
दिल में उसकी यादों से प्यारा कुछ भी नहीं।

आए हबीब ओ क़रीब दिल का हाल पूछने, 
किसीके सामने बोला बेचारा कुछ भी नहीं।

उसके रहते चमके रहते थे मेरे दिन ओ शब, 
मुझे उसके जमाल से उजियारा कुछ भी नहीं।

अब चाहे बीनाई मिटा दो दिनो दीए बुझा दो, 
उसके न होने से ज़्यादा अंधियारा कुछ भी नहीं।

अब मैं उसे उससे आगे चाह सकती हूँ निशा, 
मरने के लिए समंदर है किनारा कुछ भी नहीं।

©Ritu Nisha #sad_quotes
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Ritu Nisha

मेरे इश्क़ को तेरी हामी की ज़रूरत नहीं। 
जो हो तो वो कुछ भी हो उल्फ़त नहीं। 

तेरा तमाम मेरा हो जाना बस एक हसरत है, 
हसरत के मुक़म्मल होने की हसरत नहीं। 

उसने चाहा रक़ीब का होना सो चलते बने हम, 
मुझे ज़रूरी वो था उसकी सोहबत नहीं।

ये नज़्में ये ग़ज़लें ये खिलखिलाहटें ये सन्ज़िदगी, 
सब इश्क़ है लोगों कोई बला वहशत नहीं। 

जीने के लिए साँसे है ख़ुशी के लिए उसकी यादें, 
सब अच्छा है ज़िंदगी में कुछ मुसीबत नहीं। 

एक उम्मीद है ख़्वाब है सुकूँ है उसके होने से, 
मैं कैसें कह दूँ के मेरे घर में बरक़त नहीं। 

दौलत कामयाबी लोग आते जाते रहे फ़क़त, 
सब शौक़ लगे ख़ुदारा शौक़े शोहरत नहीं।

इसलिए भी गवारा है मुझे इश्क़ ओ ख़ुदा निशा, 
करने में सिर्फ़ दुआ है कोई हुक़ूमत नहीं।

©Ritu Nisha #sad_quotes
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Ritu Nisha

उसे उसकी राह पर जाने देते है। 
चलो उसे ग़म मनाने देते है। 

घुट घुट कर कहीं मर न जाए अंदर, 
कुछ रोने के उसे बहाने देते है। 

पता तो है उसके दिल का हाल सारा, 
मुँह पर जो वो चाहे दिखाने देते है। 

लगा है ख़ुद को आज़माने में सताने में, 
रेत का घर गिरा रहा है गिराने देते है। 

यूँ नहीं के उसके मअसलों से गर्ज़ न हो, 
छुपाना चाहता है तो छुपाने देते है।

एक ग़म के पीछे तमाम लुटना चाहता है, 
ये खुशी है उसकी तो लुटाने देते है। 

लाज़िम तो नहीं वो कुछ फ़ूट बैठे निशा, 
पर आए जो दर पर तो आने देते है।

©Ritu Nisha #sad_quotes
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Ritu Nisha

कश्मकश

कोई तमन्ना इतनी हावी कैसे हो सकती है
मुझे सारा का सारा कैसे ले सकती है
मेरी सूझ बूझ कहाँ है
मेरा वज़ूद कहाँ है
ये कैसा वेग है जो मुझे लिए जा रहा है
मैं कहाँ हूँ मुझे कौन चुरा रहा है
ये कैसी धुन है जो मेरे सर पर सवार है
ये खुमारी किसका कारोबार है
मेरी सुबह कहाँ है मेरी शब कहाँ है
मेरा पल कहाँ है मेरा पहर कहाँ है
मैं किसके लिए जी रही हूँ
मैं क्या पी रही हूँ
ये ग़म किसका है ये ख़ुशी किसकी है
क्या शक़्ल है जो मुझे बार बार दिखती है
ये कैसी नियती है ये कैसा नसीब है
ये कौन है जो मेरे इतने करीब है
ये वक़्त किसका है 
ये दौर किसका है
ये किसकी साजिश है ये किसिकी तरक़ीब है
मैं किसकी रक़ीब हूँ वो किसका हबीब है
मुझमें इतनी लापरवाही कैसे हो सकती है
मेरी बेख़ुदी कैसे खो सकती है
ये मैंने किसका होश सम्भाला है
मेरी आँखों में किसने क्या डाला है
मेरे सवालों के जवाब किसके पास है
मुझे किसका इंतज़ार है मुझे किसकी आस है
मेरा दिल आए रोज़ क्यों हताश है
बुझती क्यों नहीं जो ये प्यास है
ये ज़मीं पर कौन लेटा है
ये मैं हूँ या कोई लाश है।

©Ritu Nisha #sad_quotes  love poetry for her

#sad_quotes love poetry for her #Poetry

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