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sanjaybatra8916
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Sanjay Batra

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Sanjay Batra

तीन दशक के लंबे अरसे में मैं उससे एक बार नहीं मिला
फिर भी उसके लिए जाने क्यों वही आकर्षण, वही भावनाएं 
न जाने मैं उस से क्या चाहता हूं
न जाने उसे क्यों भुला न पाता हूं।

स्कूल के दिन आज भी स्नेहपुर्वक याद करता हूं
वो भोलापन वो अल्हड़पन किसी के लिए कोई बैर नहीं
उसकी सादगी ने मन मोह लिया था
हर क्षण उसे ही प्रभावित करने की चाह थी।

इतने साल किस बेफिक्री के आलम में गुज़रे पता नहीं
उस से कभी अपने लगाव का इज्जहार नहीं किया
शायद जरूरत ही न थी
नहीं जानता था राहें इतना अलग हो जाएंगी।

इतने सालों में ऐसा कोई दिन न होगा जब उसे याद नहीं किया
जुदाई में ही प्यार की गहराई का एहसास हुआ
नहीं जानता इस रिश्ते को क्या नाम दूं 
शायद यही मेरी इबादत, मेरी आराधना है। #प्रेम
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Sanjay Batra

हमेशा लगा कि कभी अच्छा बेटा था ही नहीं
जाते जाते बोलीं अगले जन्म में फिर तू मेरा बेटा बनना
और चलीं गईं अपनी सब तकलीफों से मुक्त हो गईं
छोड़कर अपने उस बेटे को जिसको कदम कदम पर उनकी जरुरत पड़ती थी, जिसने कभी उनके बिना जीना सोचा, सीखा ही ना था।

मैं हमेशा से उनका लाडला था
पर ढेरों प्यार के साथ गलती पर उतनी जम के पिटाई भी होती 
मन में उनके लिए असीम स्नेह और आपार इज्ज़त थी
वो ही तो पिता तक मेरी बात पहुंचाने और मनवाने का जरिया थी
बचपन इतना सुखद और बेफिक्र गुज़रा।

हमारे यहां पैसों का सदा से अभाव था
मेरी बेहतर ज़िन्दगी के प्रयास में सदैव संघर्षं में लगी रहती
नौकरी घर मेरी पढ़ाई का बोझ हमेशा मुस्कुराते हुए सहती
मेरे उज्वल भविष्य का ख्वाब उन्होंने जो संजों के रखे था
पूरा करने के लिए मुझे हमेशा प्रोत्साहित करती।

मेरी शादी के बाद में उनके बर्ताव में फर्क पाया
शायद उन्हें लगा मेरी पत्नी ने मुझे उनसे छीन लिया 
हमेशा प्रयास था मेरा कि उन्हें कोई शिकायत का मौका ना दूं
पत्नी को कभी दुख पहुंचाकर भी उन्हें सदैव खुश रखूं
बस उनसे यही गिला थी कि बहू को बेटी का दर्जा न दे सकी।

धीरे धीरे बीमारियों ने उन्हें जकड़ लिया
बाकी तकलीफों की तरह उनका सामना भी डट के किया
धीरे धीरे हिम्मत जवाब देने लगी
उनके स्वर्गवास को सालों बीत चुके पर कल की ही बात लगती है वो कल भी मेरे साथ थीं वो आज भी मेरे पास हैं। मां

मां

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Sanjay Batra

आज भी वो सुबह याद है जब मेरी नींद खुली 
और उससे अपने पास बैठा पाया
मायूसी से बोली मुझे छोड़कर जा रही है
समझाने पर भी अपने फैसले पर अटल रही।

मेरी आंखों के सामने ही तो सब घटा था
वो मेरे माता पिता का उसके साथ बात बात पे टकराव
वो मेरा हर बार उसको ही समझना और दोष देना
वो मेरे माता पिता का लिहाज़ करना और उन्हें कुछ ना बोलना।

उसकी सादगी और सरल व्यवहार ने मेरा मन मोह लिया था
पत्नी से पहले वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी
फिर भी घर में हर वक़्त जैसे एक तनाव था
मेरी मां को लगता था कि उसने उनका बेटा छीन लिया था।

उसके बिना तो जैसे जीना दूभर हो गया
एक अजीब सी व्याकुलता, कमी थी
समय जैसे थम सा गया था
अपने प्यार की गहराई का अब एहसास हो रहा था।

बहुत कोशिश के बाद वो वापिस आयी
पहले जैसे अब कुछ नहीं था शायद उसके अंदर कुछ मर गया था 
इससे दुर्भाग्य की बात एक पत्नी के लिए क्या हो सकती है
कि मुश्किल वक्त में उसका पति उसके साथ नहीं है।

आज जब मैं उसे आगोश में लेता हूं
एक अजीब सी खींचाव महसूस करता हूं
एक दरार, एक अदृश्य दीवार
हर पल अपनी गलती, कायरता का अहसास होता है
काश वो मुझे कभी माफ़ कर सके वही अपनापन जता सके। mistake

mistake

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Sanjay Batra

बहुत कुछ कहना चाहता हूं
ना जानूं कैसे, कहां से शुरु करूं
मां बाप का लाडला, सब का दुलारा
ना जाने कहां खो गया।

पैसों की सदा से कमी थी
फिर भी मेरी हर इच्छा को सर आंखों पर रखा 
आज जब अपने बच्चों की तमन्नाएं दबाता हूं
तब अपने पिता की तकलीफें समझ पाता हूं।

मैंने अपने बचपन को इतना जकड़ के रखा
जवानी कब बीत गई पता ही नहीं चला
जिम्मेवारियों का अहसास कभी ना हुआ 
पत्नी ने ना जाने कब मां का चोला ओढ़ लिया।

वास्तविकताओं से परे मैं अपनी उदेढ़बुन में रहा
जाने कब दुनिया की दौड़ में पीछे छूट गया
असफलता की आग मेरे अंदर दधकने लगी
घर रिश्तों दोस्ती सभी को खाख कर गई।

बहुत कुछ खो कर होश संभाला है
आज भी हर रोज़ फिसलता हूं गिरता हूं
दूसरों को दोष देने की जगह खुद उठता और आगे बढ़ता हूं
जीने का सही तरीका अब थोड़ा थोड़ा समझ आता हैं
उसकी सर्वश्रे्ठ रचना साबित करने का दिल चाहता है। ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

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Sanjay Batra

मैं हीं गांधी
गोडसे भी मैं हूं

में हीं राम
रावण भी मैं हूं

मैं हीं युधिष्ठिर
दुर्योधन भी मैं हूं

मैं हीं उजाला
अंधकार भी मैं हूं

मेरे हर रूप में तू
तेरे हर रूप में मैं हूं #duality

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