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roshanimishra2311
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Roshani Mishra

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Roshani Mishra

निकली हुं अस्तित्व की खोज में, 
मैं बहती जाऊंगी,
रौंद के सभी पत्थर चट्टानों को, कटिली राहों से भी गुजर कर, अब क्या ही
रुक मैं पाऊंगी,,
मैं तो इक नदी हूं,
समंदर में मिल ही जाऊंगी,,,
कभी गुजरूंगी ठिठुरती शरद रातों से,
शायद में जम भी जाऊंगी, 
हौसले से इंतज़ार होगा मुझे, 
उस सुनहरी धूप का,,
मेरे पुराने आस्तित्व, 
और पुराने रुप का,,
कुछ देर से ही सही,
मंज़िल तो अपनी पाऊंगी
मैं इक नदी हूं ,
समंदर में मिल ही जाऊंगी ,,,
कभी मुमकिन ऐसा भी होगा
चिलचिलाती धूप जब कर देगी 
खाली मुझे,मुझ बिन होंगे 
विकल जीवन सारे,,
आशंसा, भी तब होगी पूरी
जब बरसेंगे मेघ कारे,, 
देखना मैं फिर से भर ही जाऊंगी,,
मैं इक नदी हूं ,
समंदर में मिल ही जाऊंगी,,,
माना आसां न होंगी राहें मेरी 
कभी गुजरुंगी तंग रास्तों से, 
कभी पर्वत पे होगा डेरा मेरा, 
कभी जो होगी समतल, धरा
फिर देखना,,
पाट मैं भी अपने फैलाऊंगी 
क्योंकी मैं तो इक नदी हूं,
समंदर में मिल ही जाऊंगी,,,-रौशनी

©Roshani Mishra
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Roshani Mishra

निकली हुं अस्तित्व की खोज में, 
मैं बहती जाऊंगी,
रौंद के सभी पत्थर चट्टानों को, कटिली राहों से भी गुजर कर, अब क्या ही
रुक मैं पाऊंगी,,
मैं तो इक नदी हूं,
समंदर में मिल ही जाऊंगी,,,
कभी गुजरूंगी ठिठुरती शरद रातों से,
शायद में जम भी जाऊंगी, 
हौसले से इंतज़ार होगा मुझे, 
उस सुनहरी धूप का,,
मेरे पुराने आस्तित्व, 
और पुराने रुप का,,
कुछ देर से ही सही,
मंज़िल तो अपनी पाऊंगी
मैं इक नदी हूं ,
समंदर में मिल ही जाऊंगी ,,,
कभी मुमकिन ऐसा भी होगा
चिलचिलाती धूप जब कर देगी 
खाली मुझे,मुझ बिन होंगे 
विकल जीवन सारे,,
आशंसा, भी तब होगी पूरी
जब बरसेंगे मेघ कारे,, 
देखना मैं फिर से भर ही जाऊंगी,,
मैं इक नदी हूं ,
समंदर में मिल ही जाऊंगी,,,
माना आसां न होंगी राहें मेरी 
कभी गुजरुंगी तंग रास्तों से, 
कभी पर्वत पे होगा डेरा मेरा, 
कभी जो होगी समतल, धरा
फिर देखना,,
पाट मैं भी अपने फैलाऊंगी 
क्योंकी मैं तो इक नदी हूं,
समंदर में मिल ही जाऊंगी,,,-रौशनी

©Roshani Mishra
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Roshani Mishra

तकती हुई आंखों को इंतज़ार सिर्फ़ तेरा है
कहां तक गिनाऊँ 
कि, उपकार सिर्फ तेरा है ,, -हरि याचिका

©Roshani Mishra
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Roshani Mishra

मुझे पता है रघुवर ,,
मैं शक्तिहीन- बल विहीन
 क्या कर सकती हूं, 
समस्या तुम्हारी सुलझाने को,,
पर फिर भी उत्कट चाह मेरी ये,
 तुम्हें रिझाने को, 
मुझे प्रकृति ने ,न इतना शौर्य दिया,
 कि प्रयत्न कोई उठा सकूं, राम सेतु के लिए, मैं भी पत्थर कोई टीका सकूं 
भीगे तन में जितनी धूली आई, ले आई हूं,, है रघुवर स्वीकार करो मैं शरण तुम्हारे आई हूं,,
पर कहते हैं न, भगवान से बड़े भगवान के भक्त होते हैं ,गिलहरी की ये करुण पुकार, प्यारे हनुमान जी सुनते हैं,,
की कृपा तब रघुवर ने, उस दुखिया को स्वीकार लिया, जब हनुमंत ने उजागर उसका चरित्र किया,,
ये प्रसंग,बस सीख यही सिखलाता है, ईश्वर साधन से नहीं, सहज भक्ति से, खिचा चला आता है,,,, रोशनी

©Roshani Mishra #ramayan
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Roshani Mishra

तेरी आंखों को,मेरी आंखें पढ़ती रहें,
ऐ मेरे हमसफर तेरे साथ ज़िंदगी
 यूं ही आगे बढ़ती रहे,,,
तू जो देख ले,तो निहाल हो जाती हूं मैं,
तेरे प्यार की खुमारी 
यूं ही चढ़ती रहे,,, -रोशनी

©Roshani Mishra
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Roshani Mishra

आता कहां है कुछ मुझे, सब कुछ 
सिखा रहे हो तुम ,
अंधेरे हैं रास्ते बहुत, 
दीपक जला रहे हो तुम,
भटक जाऊं अगर और भूल भी
जाऊं कि कौन हूं  , तो मुझे 
आइना दिखा रहे हो तुम , 
है ही क्या  मेरी शख्सियत ,ऐ मेरे मालिक जो रंग भर दूं इस जीवन में, कोरे कागज पे जैसे ,एक प्यारी सी 
कविता लिखे जा रहे हो तुम,,
-रोशनी

©Roshani Mishra #lord_krishna
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Roshani Mishra

ये वाचाल , बहरों का शहर है,
बस चुपचाप नज़ारा,देखो,
कुछ दिन चुप रहकर, कौन अपना है,
कौन पराया, देखो,
दिल में लेके दर्द, सिसकती आंखों से
जो मांगो सहारा उनसे,
न मिलेगा कोई हमदर्द,
न होगा उन्हें कुछ भी
सुनना गवारा, देखो,,,

©Roshani Mishra #lonely
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Roshani Mishra

न दुःख मना, न क्लेश कर,
देख जगत अभाव,
अन्तरयामी जानिहैं
अन्तर मन का भाव,,,

©Roshani Mishra #Teachersday
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Roshani Mishra

देखा जहां जहां, सभी तेरे आशिक लगे
इक मैं ही रह गई बेखबर,
सभी ज़िंदगी से वाखिफ लगे

©Roshani Mishra कृष्ण प्रेम

कृष्ण प्रेम #समाज

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Roshani Mishra

हो अंतर मन में महाप्रलय,
या बाह्य जगत भयभीत करे,,
तब  बल देना प्रभु ऐसा,
मेरा चित्त, तेरे चरणों में विश्राम करे
   - रोशनी

©Roshani Mishra #Shiva
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