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santoshsharma1823
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santosh sharma

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santosh sharma

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santosh sharma

मन ही मन कचोट रहा था,
धरती, गगन को देख रहा था।
धीरें धीरे अग्नि सेक रहा था,
भीड़ लगी थी गलियारों में,
लक्ष्य कही से भेद रहा था।
---संतोष शर्मा

©santosh sharma
  #लक्ष्य की ओर
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santosh sharma

रात, रात भर जागती रही,

सूरज तरफ  झाँकती रही।

नजरें न मिल सकी  उनसे,

सर्द मौसम में काँपती रही।


बरस रहा तुषार में पुरन्दर,

उड़ रहा नीर का समन्दर।

बिखर गयी ओंस की चादर,

शीतल है बाहर और अंदर।


भानू का रौशन कुमुंद है,

उषा में मेघ बहुत धुंध है।

रात, ठिठुरती रही रजनी,

सबके पालनहार मुकुंद है।

©santosh sharma #fog
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santosh sharma

bench रात, रात भर जागती रही,

सूरज तरफ  झाँकती रही।

नजरें न मिल सकी  उनसे,

सर्द मौसम में काँपती रही।


बरस रहा तुषार में पुरन्दर,

उड़ रहा नीर का समन्दर।

बिखर गयी ओंस की चादर,

शीतल है बाहर और अंदर।


भानू का रौशन कुमुंद है,

उषा में मेघ बहुत धुंध है।

रात, ठिठुरती रही रजनी,

सबके पालनहार मुकुंद है।

©santosh sharma
  #my heart

#my heart #Poetry

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santosh sharma

हर बार हुए बदस्तूर,दिल ए दर्द सरेआम हो गया,
आँखों में एक नशा,नब्ज़ में दौड़ना आम हो गया।

इंतजार में एक अर्सा बीता गया न देखा तेरी सूरत,
तूझे लिखते -लिखते ही,तेरे शहर मेरे नाम हो गया।
                                            
                             ----------संतोष शर्मा

©santosh sharma
  #my heart peom

#my heart peom #Poetry

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santosh sharma

ओठो का मुस्कुराना याद आता है,
तेरी गोदी में सो जाना याद आता है।
खेलती रहती थी उंगुलीया बालों में,
गुजरा हुआ वो जमाना याद आता है।

©santosh sharma
  #dilkibaat
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santosh sharma

चलता रहा रूक रूक कर जज़्बात विचारों तक पहुॅंचा ,
ख्वाहिशें पाल रखा था मै,वो सफर बहारों तक पहुॅंचा।
 रातभर  उमड़ता रहा तुफान बेचैन कानों में रह -रहकर, 
सपना आंखों सें उतरकर,जमीं के सितारों तक पहुॅंचा।
संतोष शर्मा
16/03/2023

©santosh sharma
  #सफ़र_ए_ज़िंदगी
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santosh sharma

तेरे इश्क में डूबा , ठिकाना भूल जाता हूॅं,

जमानेभर ने रोका, मिटाना भूल जाता हूॅं।

अब तमन्नायें खुदा के बंदिश में  है रहती,

किस हाल में जीता, बताना भूल जाता हूॅं।

©santosh sharma
  #KiaraSid
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santosh sharma

दिल की खिलती गुलाब ,

 तूझे देखता रहा जनाब।

बहुत मदमस्त है भौरा,

बन बैठा तू एक नबाब।

©santosh sharma
  rose
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santosh sharma

वर्षों से तेरा शब्द बना रहा हूॅं

 ग़ज़ल का अर्ज बना रहा  हूॅं 


              कभी समुंदर की गहराईओं में,

              कभी -कभी तेरी तन्हाईओं में।


कभी उषा के सवेरे में,

कभी रात के अंधेरे में,


                कभी अमावश की रात में,

                कभी  फूलों की बारात में।


ढूंढ लेता हूं मन के कोने में,

भीगती हुई नयन के रोने में।


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संतोष शर्मा

कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

तिथि-,15/03/202

©santosh sharma #me
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