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kaushalkumar8451
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Kaushal Kumar

स्वयं की तलाश में हर दिन, हर पल

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Kaushal Kumar

तुम्हें  तसल्ली  मिलती  हो  तो,
तुम  भी  कुछ  ऐसा  कर  लो।
मुझ पर कुछ आरोप लगा लो,
खुद  को  निर्मल सा कर लो।।

हम  खुद को साबित कर लेंगे,
हर     लगते     आरोपों    से।
पर  बोलो  क्या  बच  पाओगे,
तुम   इन   बेजा   पापों   से।।

गैरों  की  थाली  का  भोजन,
छीन   स्वयं   का   पेट  भरो।
या   गैरों   की   गूढ़   कमाई,
लूटो    या    आखेट    करो।।

दुनिया  को  बहका सकते हो,
करके   यह  दोहरा  व्यवहार।
पर  उसको  क्या बहकाओगे,
जिसकी  महिमा  अपरम्पार।।

                 .............. कौशल तिवारी






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©Kaushal Kumar #tasalli
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Kaushal Kumar

रिश्तेदारियों की भी एक उम्र होती है।

प्रारम्भ में जो आपसी प्रेम और लगाव होता है, 
वह समय के साथ दोनों ही पक्षों द्वारा,
धीरे-धीरे उदासीनता की तरफ बढ़ता चला जाता है।
प्राथमिकता में नई-नई रिश्तेदारियाँ आती जाती है,
और पुरानी रिश्तेदारियाँ उम्र ढलने के साथ,
समाप्ति की ओर बढ़ने लगती हैं।

रिश्ते निभाना, रिश्तेदारियों के बंधनों को,
मजबूत बनाये रखना बहुत बड़ी कला है।
ये सबके बस की बात नही होती। 

रिश्तों की उदासीनता में,
अयोग्य लोगों का, बहुत बड़ा हाथ होता है। 
अयोग्य लोग बड़े कुचक्री होते हैं,
और ऐसे लोगों की वजह से ही,
रिश्तेदारियाँ समय से पूर्व ही उदासीनता,
और कभी - कभी तो अंत को प्राप्त हो जाती हैं। 

                           ......कौशल तिवारी




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©Kaushal Kumar #रिश्तेदारियाँ
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Kaushal Kumar

कुछ पुरुषों में पुरुषत्व आजकल 

दो  पुरुषों   में   हुई   जुबानी   जंग  अचानक।
दोनो   ने   दम   भर - भर   तने  भुजाओं  को।।
एक  से  बढ़कर  एक गालियाँ  बकीं  भयानक।
एक    दूसरे    के   घर    की   महिलाओं  को।।

ऐसे   पुरुषों   का   पुरुषत्व   महज  इतना  ही।
कौन,  किस  तरह,  कितना  है  ताकत  वाला।।
किसने किसके घर की किस-किस महिला को।
कैसे - कैसे,  क्या - क्या,  कितना  कह  डाला।।

                                          .........कौशल तिवारी





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©Kaushal Kumar #पुरुषत्व आजकल
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Kaushal Kumar

घर का मुखिया

घर का मुखिया अक्सर घर की, मर्यादा में रह जाता हैं।
घर में सबकी सुनते-सुनते, अपनी कहता रह जाता हैं।।

अक्सर खुद को आगे करके, जो सारा बीड़ा लेता है।
जिसके मन में जोड़ भरा हो, तोड़ उसे पीड़ा देता है।।

सर्दी, गर्मी, बारिश में जो, डटकर सदा खड़ा रहता है।
उसका खुद का दर्द हमेशा, अंदर कहीँ पड़ा रहता है।।

अंदर - अंदर  चीख  रही  पर, बाहर लगता खेल रही है।
कौन समझता है धरती को, कितनी पीड़ा झेल रही है।।

हरा - भरा  जो  वृक्ष सदा से, फल, छाया देता आता है।
टहनी  सूखी  हो  जाने  पर, जलने को काटा जाता है।।

बोझ  उठा  लेने  वाले  पर, बोझ अधिक डाला जाता है।
सदा सहज ढल जाने वाला, जगह-जगह ढाला जाता है।।

रीत  जगत  की  ऐसी  ही है, जो जितना करता जाता है।
वही  अंत   में   उम्मीदों  के, खंडन  से  मरता  जाता  है।।
                       
                                       ............कौशल तिवारी




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©Kaushal Kumar #घर का मुखिया

#घर का मुखिया #कविता

16 Love

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Kaushal Kumar

खरीदने को तो पूरा ठेला ही खरीद सकते हैं,
सबके नसीब में डाल के पके आम थोड़ी हैं।।

हो लाख आरओ का पानी व फ्रिज की ठंडाई,
सबके नसीब में नल का ताजा जल थोड़ी है।।

चौबीस घंटों बिजली और वातानुकूलित कमरे,
सबके नसीब में बागों की ताजी हवा थोड़ी है।।

ऊंचे मकानों की बालकनी में बैठ बारिश देखना,
सबके नसीब में मिट्टी की सोंधी सुगंध थोड़ी है।।

आदमी   से   मशीन   होना   और   भागते   रहना,
सबके नसीब में खुले गगन के नीचे सोना थोड़ी है।।

जिसे जैसे पाना ठग लेना, उगाह लेना, भरमा देना,
सबके नसीब में मासूमियत,  इंसानियत  थोड़ी  है।।
                  
                                        ..........कौशल तिवारी




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©Kaushal Kumar #नसीब
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Kaushal Kumar



तुम्हें  तसल्ली  मिलती  हो  तो,
तुम  भी  कुछ  ऐसा  कर  लो।
मुझ पर कुछ आरोप लगा लो,
खुद  को  निर्मल सा कर लो।।

हम  खुद को साबित कर लेंगे,
हर     लगते     आरोपों    से।
पर  बोलो  क्या  बच  पाओगे,
तुम   इन   बेजा   पापों   से।।

गैरों  की  थाली  का  भोजन,
छीन   स्वयं   का   पेट  भरो।
या   गैरों   की   गूढ़   कमाई,
लूटो    या    आखेट    करो।।

दुनिया  को  बहका सकते हो,
करके   यह  दोहरा  व्यवहार।
पर  उसको  क्या बहकाओगे,
जिसकी  महिमा  अपरम्पार।।

                 .............. कौशल तिवारी



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©Kaushal Kumar
  #तसल्ली
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Kaushal Kumar

भूखे, प्यासों   की  तस्वीरें,  इधर - उधर  फैलाने वाले।
किसी  एक  को  रोटी  देते, तो  कहते  तुम जिंदा हो।।

राह नापते पैदल पथिकों, की  हालत दिखलाने वाले।
किसी एक को मंजिल तक,पहुँचाते तो तुम जिंदा हो।।

किसी नयन के झरझर आँसू,देख-देख चिल्लाने वाले।
किसी  एक  के  अश्रु  पोछते, तो कहते तुम जिंदा हो।।

मासूमों    के   नंगे   पांवों, के  छाले  दिखलाने  वाले।
किसी  एक  को  मरहम देते, तो कहते तुम जिंदा हो।।

बात-बात पर सरकारों की, इज्जत, आन लुटाने वाले।
एक   रुपये   राहत   कोषों,   में   देते   तो  जिंदा  हो।।

जाति  धर्म  की  बातें  करके, जनता को भरमाने वालों।
बेटी  खातिर  निम्न  वर्ग  का, वर  चुनते  तो  जिंदा हो।।

मगर  कायरों  और  निठल्लों, के जैसे  हे  देश कपूतों।
 नाजायज  अंतर  विरोध  कर, मुर्दा  हो  या  जिंदा हो।।

                                        .............कौशल तिवारी



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©Kaushal Kumar #क्या तुम जिंदा हो

#क्या तुम जिंदा हो #कविता

14 Love

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Kaushal Kumar

तेरे - मेरे    बीच    प्रेम    का    क्या    है   कारोबार।
सारे   जग   को   इसमे   रुचि   है,   पूछे   बारम्बार।।

कितनी बार करेंगे साबित, किसको  क्या  बतलायेंगे।
कह - कह के समझाएंगे या कर-कर के दिखलायेंगे।।

हम  यदि  इसमे  उलझेंगे,  तो  और  उलझते  जाएंगे।
समय सभी को समझा देगा, हम कितना समझाएंगे।।
 
                                       ...........कौशल तिवारी








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©Kaushal Kumar #प्रेम
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Kaushal Kumar

आरोहन-आरोहन
आरोहन-आरोहन
                        आरोहन-आरोहन
                        आरोहन-आरोहन
         
एनसीएल का एक अनोखा शान बना है आरोहन।।
सभी तरह के खेलों का  उत्थान बना है आरोहन।।

एनसीएल   के   सभी   क्षेत्र   में  आरोहन  लहराए।
सभी  तरह  के  खेलों  का  उत्तम  परचम  लहराएं।।
कहीं   उछलते   और   कूदते   बच्चे  निरख  रहे  हैं।
सुबह-सुबह में स्वच्छ वायु की धुन पर थिरक रहे हैं।।

नन्हे - मुन्हे  कदमों का पहचान बना है आरोहन।
सभी तरह के खेलों का उत्थान बना है आरोहन।।

आरोहन  यह  बाल सुलभ वो सभी भाव बतलाता।
खेल ही नही खेल भावना भी उनको  सिखलाता।।
नन्हे - मुन्हे कदम बनाएं कदम - ताल जब लय में।
तब एनसीएल  का  गौरव लहराए नील निलय में।।

एनसीएल में खेल कूद का खान बना है आरोहन।
सभी तरह के खेलों का उत्थान बना है आरोहन।

एनसीएल का एक अनोखा शान बना है आरोहन।
सभी तरह  के खेलों का उत्थान बना है आरोहन।।

आरोहन-आरोहन.....
आरोहन-आरोहन.....
                      आरोहन-आरोहन....
                      आरोहन-आरोहन....


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©Kaushal Kumar #RanbirAlia
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Kaushal Kumar

सम्बन्धों में नाराजगी

बस एक बार की नाराजगी ने बता दिया।
वो कितने पानी मे है,
कितने जमीन में है,
कितने आसमान में हैं,

बस एक बार की नाराजगी ने बता दिया।
वो क्या है,
वो क्या नही है,
वो क्या समझा गया है,

बस एक बार की नाराजगी ने बता दिया।
हमारी अहमियत,
हमारी औकात,
हमारी सीमाएं,

बस एक बार की नाराजगी ने बता दिया।
संबंध का आपसी प्रेम,
संबंध की आपसी जरूरतें,
संबंध की आपसी ख्वाहिशें,

बस एक बार की नाराजगी बता ही देती है।
सम्बन्धों में सच,
सम्बन्धों का सच,
सम्बन्धों का उद्देश्य,

सम्बन्ध जरूरी है।
सम्बन्ध में कभी-कभी नाराजगी जरूरी है।
नाराजगी सम्बन्ध प्रक्षालन है।
अच्छा होने के लिए खराब होना जरूरी है।      
                                                         ................... कौशल तिवारी





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©Kaushal Kumar #संबंध
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