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pavneshmishra8349
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PAVNESH K MISHRA

Simple Indian

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PAVNESH K MISHRA

"सुबह सुबह की ओस से भी ज्यादा कोमल, 
प्रभात के सूर्य की पहली किरण जैसी गुनगुनी।
रूई के मरमरी फ़ाहे से भी ज्यादा मधु मृदुल, 
हृद्यान्शी, लाडली, चितेरी, घनेरी, चंचला, मेरी।
जब तुम मेरी गोद में बैठकर खिलखिलाती हो,
तब में प्रकृति का सबसे अनूठा हिस्सा होता हूं।
तुम्हारी नन्ही उंगलियां जब मेरी हथेली पर, 
फुदकती गौरैया सी अठखेलिया करती है।
तब कुबेर भी अनंत कोष होकर भर देते हैं, 
मेरा लबालब भरा मुग्ध मुक्ताकाश हृदय।
जब तुम मेरे कंधे पर निर्द्वन्द सो जाती हो,
मैं हो उठता हूं हरा भरा घनेरे वृक्ष के जैसा।
मेरी हर पीडा का एकलौता रामबाण इलाज,
तेरी खुशी से टिमटिमाती दिये सी आँखें।
ओ मेरी राजनंदनी, मनेरी सोन चिरैया, 
तू मेरी राधा किशोरी तो में वृषभान हो जाता हूँ।
तू मेरी सिया सुकुमारी तो वैदेह हो जाता हूँ।"

©PAVNESH K MISHRA #मेरी_बेटी

#Rose
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PAVNESH K MISHRA

"उसने मुझसे पूछा
मैं उससे नाराज़
क्यूँ नहीं हो सकता,
सच कहूँ
पहले तो मैं बिलकुल
हतप्रभ रह गया,
समझ नहीं पाया ,
किन शब्दों मैं
अपनी भावना को
सामने रखूं,
कैसे वह कहूँ,
जो कभी कह नहीं पाया,
तुमसे नाराज़ होकर
अगली साँस कैसे लूँगा मैं,
जाने कैसे लोग बे-एतबार
हो जाते हैं,
जाने कैसे लोग साथ
छोड़ जाते हैं,
मन से कहो,
क्या तुम्हें ऐसा ही
लगता है मेरे लिए,
विशेषण, उपमा, श्रृंगार,
सबसे दूर हूँ मैं,
जिस को प्रेम कहते हैं,
उसी नाते से मजबूर हूँ मैं,
मैं तो बस सुना सकता हूँ
मौन कि भाषा,
मन से मन को,
हर पल बस एक ही
आरजू है,
मेरी सारी खुशियाँ
मुझसे ले लो,
अपना सारा दर्द
तुम मुझे दे दो,
तुम्हारा सारा दर्द
मैं पी जाऊंगा,
तुम्हारी एक मुस्कराहट
देखकर मैं भी जी जाऊंगा,
पहले भी कहता था,
आज भी कहता हूँ,
तुम चाहो या नहीं,
मैं बस तुम्हें चाहता हूँ,
तुम कहती हो,
सुख-दुःख मैं साथ निभाना,
मैं कहता हूँ,
मैं हूँ ना,
दुःख को अब
पास ही नहीं आना,
(अंतिम पंकित्यों मैं वह कह रहा हूँ जो स्वयं से कहता हूं )
तुमने ये कैसे माना
मैं तुम बिन रह पाउँगा,
बिछुड़ने के ख्याल पर
ही मैं मर जाऊंगा।"

©PAVNESH K MISHRA "मौन की भाषा"

#Twowords

"मौन की भाषा" #Twowords #कविता

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PAVNESH K MISHRA

चांद प्रतीक है शीतलता का, चांद संकेत है तल्लीनता का।
चांद से सीखो बदलाव स्वीकारना,
चांद शिखर हैं पूर्णता का।।

©PAVNESH K MISHRA #moonbeauty


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