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bharatgautam4787
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भरत गौतम 'अद्वय'

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भरत गौतम 'अद्वय'

मेरा हिस्सा मुझसे छूट गया 
इस अंबर से तारा टूट गया..
यूं रूठ गई कुछ सांसे मुझसे
जैसे बवंडर हवा का सुलग गया,
ये आना जाना चलता रहता 
पर एक मेहमान मुझ ही को लूट गया...

©भरत गौतम 'अद्वय' #boatclub
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भरत गौतम 'अद्वय'

बहुत मुश्किल होता है,
घर से दूर किसी के घर में होना
खुद का मालिक होने पर भी,
किसी का किरायेदार होना....

©भरत गौतम 'अद्वय' #MoonShayari s
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भरत गौतम 'अद्वय'

वर्षों से वन में घूम रहा, हर घड़ी स्वयं को ढूंढ रहा
इस पथ की हर विपदा को, हो दंडवत चूम रहा

नित्य नई परीक्षाओं का जो भरा समंदर घूंट रहा
मिथ्या और अमिथ्या को मधुप समझ कर निगल रहा

जिसकी शौर्य कथा से जग का जगमक होना बाकी है
ऐसे पुरुष प्रतापी का यह संघर्ष अभी भी जारी है....

©भरत गौतम 'अद्वय'
  #Walk shayari
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भरत गौतम 'अद्वय'

हम रजनीचर इस रजनी के
सो न कभी हम पाते है
जो कुछ भी खोया पाया है
उसको खुद ही पे लुटाते है..
मनु सोकर कभी न कुछ पाता है
उल्लू भी लक्ष्मीरथ चलाता है
हम उस रथ की धूल उड़ाते है
धरती पर तमचर कहलाते है...

©भरत गौतम 'अद्वय' #writer shayari

#writer shayari

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भरत गौतम 'अद्वय'

बात कुछ यूं कि, हवाओं में घुलने लगा हूँ
मैं अब खुद ही खुद से मोहब्बत करने लगा हूँ..

तस्व्वुर में नहीं, ज़िंदादिली से जीने लगा हूँ 
कमाल कुछ यूं कि, खुद ही पे मरने लगा हूँ..

अपनी ही ख्वाइशें और उम्मीदें पूरी करने लगा हूँ
हरकतें कुछ यूं कि, खुद ही को खुदा कहने लगा हूँ..

©भरत गौतम 'अद्वय' #writer shayri

#writer shayri

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भरत गौतम 'अद्वय'

अपनी शम्त मुझ तक फैलाओ किसी दिन
बनकर बारिश मुझ पर बरस जाओ किसी दिन

अपना दायरा मुझ तक इतना फैलाओ किसी दिन
बनकर हवा मेरी साँसों में समाओ किसी दिन

मैं रोज शाम थककर जो घर को लौटूं
बनकर चाय मेरी थकान मिटाओ किसी दिन

मैं हर्फ़ दर हर्फ़ बस तुमको तुमपर लिखूं
मेरी डायरी का पन्ना बन जाओ किसी दिन

ये तारे झूठे जो टूटे और गिरते रहे कहीँ पर
बनकर ख़्वाब हकीकत में आओ किसी दिन

ये जो तुमको ही तलाशती रहती मेरी आँखे
तुम्हारा आईना है,इन्हें आकर ले जाओ किसी दिन

मेरी ज़िंदगी बिसात पर बिछी Ludo की माफ़िक
तुम खिलाड़ी हो, खेलने ही आ जाओ किसी दिन

ये दिल जो दुबका छिपा हिरण-सा बैठा है भीतर
तुम शिकारी हो, शिकार करने ही आजाओ किस दिन

घनघोर मातम पसरा है दिल में, मर गई शायद रूह मेरी
कमाल तुम्हारा है,
तुम्हीं आओ ये जनाजा उठाएं किसी दिन....

#भरत गौतम

©भरत गौतम 'अद्वय'
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भरत गौतम 'अद्वय'

डरता हूं उस वक्त से मैं
   एहसास न होगा उस पल का
  जिस पल में तुमको न पाया
  और भूल चुका मैं हर लम्हा......
   - ansh

©भरत गौतम 'अद्वय' #loveshayari
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भरत गौतम 'अद्वय'

घनघोर ठिठुरती स्याह रात, 
मैं जाग रहा अलाव-सा
कुछ सोच रहा, कुछ खोज रहा
कुछ टोह नहीं मेरे भाव का..
एक चिर स्वपन की राह में
थकी आंखों की चाह में 
सोने की इन हरकतों पर 
कुछ नींद का अभाव-सा...
हाथों के तारे गर्दिश में, पर
कुछ अब भी अंबर में है
कुछ टूट चुके, कुछ जा चुके
पर मैं सूर्य सरीखा भाव-सा...
इन रातों में खुद को तपाकर
मैं जाग रहा अलाव-सा...

©भरत गौतम 'अद्वय' #Fire poetry

#Fire poetry #Poetry

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भरत गौतम 'अद्वय'

इन पलों मे,
कुछ खोज रहा हूँ 
"क्या" !?...
जीवन तो चल रहा है 
मैं सोच रहा हूँ 
"क्या" !?...

©भरत गौतम 'अद्वय'

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भरत गौतम 'अद्वय'

हमारा हमसे नागवारा होना 
उनसे हमारी दूरी है...
वो कहते है ज़िंदा रहो तुम 
यकीनन बहुत बड़ी मजबूरी है...

दिन भर खुद में खुद रहना भी
उस सूरज से मगरूरी है...
पर शामों में यूँ ढलकर सोना
रातों की मजबूरी है...

©भरत गौतम 'अद्वय' #Lumi
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