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ravikumarchaman2878
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Ravi Kumar Chaman

writer

ravikumarchaman@gmail.com

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Ravi Kumar Chaman

प्रेम की परिणति

प्रेम की परिणति

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Ravi Kumar Chaman

नस्कार

नस्कार

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Ravi Kumar Chaman

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

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Ravi Kumar Chaman

चाहता हूँ l

चाहता हूँ l

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Ravi Kumar Chaman

हूँ चाहता तेरे लिये कुछ छोड़ जाऊं
प्राणपथ पर  पूर्वजों की ओर जाऊं
घनमौन संग हूँ शोर में उलझा हुआ 
 हूँ चाहता निर्वात में कुछ जोड़ जाऊं l
वह क्षितिज जो बांधता है  दृष्टि को 
द्रुतवेग में उसकी परिधि तोड़ जाऊं l
विकल नहीं ,  हूँ धीर मैं जागा हुआ 
मद मनुज की धार सीधी मोड़ जाऊं l चाहता हूँ ll

चाहता हूँ ll

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Ravi Kumar Chaman

आँशु और बारिश

आँशु और बारिश

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Ravi Kumar Chaman

छुप जाते है आँशु 
बरसते बारिश के बूंदों संग
घुल जाती है तपन तन का 
पर 
बढ़ जाती है हूक मध्य कहीं 
लहर उठता है मन, मानता नहीं 
और ऐसे में तुम 
दूर कहीं, रिवाज़ के बंधन में 
उलझी देखती हो मुझे 
जलता l
                   चमन आँशु

आँशु

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Ravi Kumar Chaman

चढ़ते जीनों पर                                                        
उतरे हुये पाँव के निशान 
बेशक़ मौजूद हैं अभी l
बह जाती है रोज -रोज 
एक जोड़ी पाज़ेब 
रात के अँधेरे में 
गुम हो जाती है 
रेहट की छिछली पखार में 
आँखों से निकल l उतरे हुये पाँव l

उतरे हुये पाँव l

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Ravi Kumar Chaman

प्रेम l

बह जाता है पानी 
परछाइयों से मिल 
सोख कछारों की अकड़ 
नर्म करता, निकल जाता है l
बच जाता है 
इंतजार में कदमों के 
सूखे पत्तों की तह ओढ़े 
सांस छोड़ता वह पुल l प्रेम

प्रेम

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Ravi Kumar Chaman

बेशक़ असमान सा                                                                               
दिखती है बहुत कुछ                                                                            
साफ -साफ और बहुरंगी l                                                                      
चाहती है बस एक ढौर                                                                           
ठहरने के लिये बाकी जिंदगी l                                                                  
रखती है सहेज                                                                                      
दुनियावी दर्जे से दूर का दृश्य l                                                                  
ढूंढती है,                                                                                              
जिंदगी के रंग दूर क्षितज तक l                                                                  
सोचती है रंगों की हकीकत                                                                        
और उनकी उम्र l                                                                                      
पढ़ती है संसार के वक्ती हस्ताक्षरों को                                                           
अपने रूह के इर्द - गिर्द l                                                                             
देखती है रास्तों पर                                                                                    
रिश्तों की आवाजाही l                                                                                
पूछती है अपना पता                                                                                   
राह के राहगीरों से l                                                                                      
पाती है,                                                                                                    
हर प्रश्न के साथ एक नयी गली l                                                                     
सखी ! तुम्हारी ऑंखें ऐसी क्यों है  l तुम्हारी आँखे

तुम्हारी आँखे

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