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Zuber Niyargar

Mechanical engineer Wish me on April 2 Hobbies : Creative Writing, Singing, Poetry - Inquilabi, Love, Broken Heart, Inspirational

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Zuber Niyargar

हसरतें सोए हुए भाग, जगाने की लगी है
अश्क से लहरे समुंदर, में उठाने कि लगी है

हम अब रातो में ही करते है लिख कर बात हर अपनी
जो नींद आती नहीं अब, खुद को बहलाने की लगी है

है बारिश से उम्मीदें, वो छुपा ले अश्क को मेरे
हमे शब भर के अपने, ख्वाब छुपाने की लगी है

तुम्ही ने देखी दुनिया ओर, हमने भी निज़ामत दी
अगर हम बोल दे कह देते गुर्राने की लगी है

क्यों ख़ामोशी है लब पे खौफ है किस बात का बोलो
या लो स्याही कलम से लिखो क्यू जाने की लगी है

कि बदला वक़्त भी हालात  भी परवाज़ भी अपनी
बुरा गुज़रा हुआ वो वक़्त  क्यों लाने की लगी है

मेरे बस में नहीं वरना पलट देता मगर अफसोस
उसे भी आजमाइश देके सिखलाने कि लगी है

बिल आखिर क्या लिखे हमने किया अब दायरा महदुद
कुरेदे ज़ख्म ना पहले के ग़म खाने की लगी है

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Zuber Niyargar

खंजर से भी घातक है कलम जान ले मेरी
अब टूट के बिखरा, हां ये पहचान ले मेरी
में अश्क का दरिया मेरा किस्सा शब ए फिराक

ये झूट लिखी इससे ऊपर पंक्ति जो गई 🤣
कमबख्त मोहब्बत तो इक परी से हो गई

किस्से कहानियों में यकीन था बहुत मेरा
आकर किसी के ज़ोर पे बर्बाद क्यू किया
शीशा यू तोड़कर मेरे ख्वाबों का मुकद्दर

तू खुश ही रह, मेरी तो अब घर वापसी हो गई 🤣
कमबख्त मोहब्बत तो इक परी से हो गई

परी ही कहूंगा उसे ये लाजमी रखो
बिन देखे कोई कैसे कहे कैसी कहीं है?
बाते ना बनाना ये मेरे मन की बात है🤣

अहले वफा के घर पे क्या ये भी खबर गई
कमबख्त मोहब्बत तो इक परी से हो गई

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Zuber Niyargar

जी करता मिटा डालू में पन्नों से ख्वाहिशें
कमबख्त मोहब्बत भी किस परी से हो गई

ख्वाबों में ही उसका ऐसा किरदार बनाकर
तकदीर को कोसु में वो है ही ना बताकर
रब तूने बनाई तो है ये जानता हूं मै

इस खल्क वो फिर से नाजाने क्यों खो गई
कमबख्त मोहब्बत भी इक परी से हो गई

तुम ज़ोर डालते हो यू मुझ पे ये कई बार
मेरी भी तो समझो, ऐसे होता नहीं है प्यार
कह देता हूं हर बात अब है कलम गवाह

इज्जत नहीं जिनको कहा उन पे नज़र गई
कमबख्त मोहब्बत भी इक परी से हो गई

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Zuber Niyargar

ए ज़िन्दगी काश कि तुझसे यही गिला करते
रब से , अपनों की रहबरी कि हम दुआ करते

रब ने जिसके लिए दुनिया में हमें भेजा है
काश के फ़र्ज़ वो हम सब के सब अदा करते

फख्र से कहते थे तेरे नाम पे मिट जायेगे
अब भी कहते मगर किरदार से रोया करते

पहले जैसे तो वो रहबर ना रहे कुछ के सिवा
कुछ वो कर दे बुलंद आवाज़ तो रोका करते

मौत बरहक़ नहीं होती तो गले मिल लेते
उनसे बस, सोच के यू ईमान को बचाया करते

नज़र का फेर है बस आज भी वो वैसे है
जैसे बरसो से थे, मुर्दे नहीं बदला करते

हम तो मुर्दा ही थे, फिर होश संभाला जाना
अल्लाह वाले ही अता से दिल वो ज़िंदा करते

देखो ये कौम वहीं जिन से तवक्को है तुम्हे
फिर से देखो वो इन्हीं में से तो निकला करते

देखो जांचो परखो दुश्मन ए अहमद तो नहीं
क्युकी ये लोग ही है जो कब्र में रुसवा करते

एक दूजे को जोड़ दो, अब ला इलाहा से तुम
फिर कहो नाम ए मुहम्मद से हम वफा करते

गर मुहब्बत है तो फिर क्यूं में शाह तू मिर्ज़ा
जोड़ो दिल को,ये कहके हम नहीं बांटा करते

हाय इस पुर फितन दौर में भी, हम बेदार नहीं
ए ज़ुबैर, इक़बाल जो होते तो फिर क्या करते ?

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Zuber Niyargar

तेरे अक्स की परछाइयां
करती बया तनहाइयां
क्यों इश्क था जब साथ में
मीठा जहर आवाज़ में
तेरी ले डूबा मुझे मेहरमा
नहीं होश कुछ बस ये लगा
वो ज़हर ही था लाइलाज सा
जिसे फिर संभाल ना में सका
कुछ चंद लफ्ज़ थे ज़हन में
लब सिल गए मेरे सेहेन में
ए कमर कलम लिखता रहा
पर बयां कभी कर ना सका
शब तर गई फिर नई सुबह
पर खुद को फिर ना जगा सका
दिल में धड़कने तो रही मगर
एहसास फिर से ना ला सका
खूं से लिख तो दी लफ्ज़ ए ज़िन्दगी
पर वो ज़िन्दगी फिर ना पा सका
हां वो ज़िन्दगी फिर ना पा सका...

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Zuber Niyargar

वो जो दिल में बात थी थोड़ी सी
तिनके तिनके कर जोड़ी थी
पतझड़ था हवाएं भी सर्द सी
जिस ने सो बार नींद तोड़ी थी
या शायद थी आहट कोई
जिसे कहते है लोग चाहत कोई
में फिर से कहानी लिख तो दू
जो ख्वाब भी ओर राज़ भी
बरसो बरस हुए आज भी
मुझे याद है वो परवाज़ भी
कि जो तितलियों की तरह उड़े
इक बाग में दो दिल जुड़े
जरा तुम कहो क्यों है बे सब्र
मेरा दिल जिगर मेरी रूह पर 
है बस इक तेरी ही ख्वाहिशें
उस पर हज़ार आजमाईशे
जिन्हें सिमत चांद के बैठ कर
में ये रात भर लिखता रहा
लिखता रहा मेरी ज़िन्दगी
मेरी ज़िन्दगी की कहानियां

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Zuber Niyargar

होंसला होंसला हम बढ़ा जायेगे 
सारी आवाम को हम जगा जायेगे
कल तलक जो थे सोए हुए आज तक
ख्वाब में अपने खोए हुए रात भर
यूं सभी को मुसलसल झंजोड के अब
हम जगा जायेगे हम जगा जायेगे






लाठियां गोलियां तुम चला जाओगे
कितने घर के चिराग बुझा जाओगे
हम सब्र से करेंगे यही इल्तिज़ा
हम यहां से कहीं अब नहीं जायेगे






सनसनी मच गई जब कहा हमने ये
चूड़ीया पहन ले जो ना आए यहां
तुमको गैरत नहीं टोकते हो मुझे
अब ये इल्ज़ाम तुमपे लगा जायेगे






कब तलक के सियासत करोगे यू तुम
ज़िद चलेगी ना अब चाहे कर लो सितम
अब ये आवाज़ यू ना दबेगी कभी
हम कलम इस तरह से चला जायेगे #Thoughtful #nazm #shayari #Inspiration #urdu  #Poetry
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Zuber Niyargar

" सच कहूं तो " Rap version


▶️प्यारी मां हां तूने मेरी परवरिश कि मानता हूं
9 महीने ज़्यादा सबसे, चाहा मुझको जानता हूं
में सही, हो लाख चाहे दे दुआए मुझको तू
हां हूं संजीदा थोड़ा ज़्यादा तब तो तेरे लाड़ का हूं

यार कहा हूं, की हर तरफ छाया हुआ अंधेरा
एक तरफा, तेरा बेटा लड़ रहा अकेला
हूं खफा नहीं, निकलना इससे भी में जानता हूं
इश्क़ की किताब का हर पन्ना यू ही छानता हूं

ज़िद्दी हूं ज़रा सा, समझो जैसा भी हूं आपका हूं
सर झुका के, फिर से सर पे हाथ चाहता हूं
आप ही का वक़्त, देरी हो तो माफी मांगता हूं
सच कहूं तो वालिद तुमपे अपनी जान वारता हूं

▶️सच्चा हूं कहूंगा में तो ना किसी का खौफ खाता
आजिज़ी से बाते करके दिल मेरा सुकून पाता
तुम सुनाओ तुम सुनाओ की कहानी मुझसे केहते
ये कहानी में बदल बदल के फिर से लिखे जाता

हार जाऊ, फिर भी जीत दूसरी तरफ से
मुस्कुराउ, कह के हां में नज़रे नीची करके
सुन ले सारे, जहां में बाप मेरा सबसे बढ़ के
खुशनसीब है, उनका साया हुआ जिनके घरपे

ऐसी परवरिश की, अब ना डर के खुद से भागता हू
सब के हक़ को जान के, में हक से लड़ना जानता हूं
तेरी इक सदा पे, फिर नजर झुका के आ रुका
शब ए फिराक अब नहीं में राहे हक तलाशता हूं
सच कहूं तो वालिद तुमपे अपनी जान वारता हूं #Heartbeat
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Zuber Niyargar

▶️
लिखता क्यों नी रब मेरे ही ख्वाब को तू मेरे खाते
हर कोई तो 2 दफा नहीं फिर ऐसा मौका पाते
बचपना तो है नहीं की चाहा जो भी मिल वो जाता
शायद इस लिए तो दिन रात दुआ को हाथ उठाता

आ रुका हूं, कलम से लिखी जो ये चार बातें
अजनबी में, किसी ने देखा नहीं मुझको आते
ख्वाब है सब , छोड़ ख्वाब अक्सर टूट जाते
आखरी है, पड़ाव इसके बाद हम भी जाते

आपकी खुशी के लिए हर दफा में हारता हूं
चूम के कदम तेरे, ए मां तुझे पुकारता हूं
ज़िन्दगी का फलसफा यही इसे संवारता हु
सच कहूं तो वालिद तुमपे अपनी जान वारता हूं

▶️
अगर खिलाफ हो तो हो मुझे क्या इससे फर्क पड़ता
तेरी टुच्ची बातो से भला मेरा क्या घर नी चलता
बोल कब तलक लगाएगा तू इल्ज़ाम ए झूट 
भक्क साला ख़ाक, तू ज़रा भी शायद रब से डरता


ख़ाक मरता, बंदा शेर फिर से आ जिया है
जो ना जाने, मैने फिक्र उसकी ना की, क्या है?
शायद ये वजह है, रब ने मेरा इम्तिहान लिया है
बंदा तेरा था अकेला, देख अब पूरा काफिला है

कहने को तो है बहुत सी बाते तू ना जानता
की जान के भी क्या करेगा, कड़वा सच बता चुका
ऐ चांद तुझको छोड़ के में माज़ी सब भुला चुका हूं
सच कहूं तो, यही सुकून अब पा चुका हू
सच कहूं तो, डर के कभी ना रुका हू
सच कहूं तो, कहानी में सुना चुका हू
सच कहूं तो, हां हौसले जगह चुका हूं,

Khush rahe papa aap.. #Heartbeat
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Zuber Niyargar

"खामोशी"

खुश तो रहते है मगर क्यू कैफियत खामोश है
कर लिए लब सिल, मेरा रब जानता क्या बोझ है

कहने को तो सब है पर, दिल में ना दिल का ज़ोर में,
क्या दू जवाब अब पीछे जाकर देखलो मा'ज़ी मेंरा

जैसा चाहोगे बना लो हू तो मिट्टी से बना
पर वो सोचते है मुझमें हद से ज़्यादा है अना

में अकेला ही लड़ा खुद के अकेलेपन से तब
जब कोई था साथ,बोलो अब तलक ना साथ है

हां यही है बात बस , ओर कोई ना बात है
चेहरे पे मुस्कान, ओर तबीयत खुश मिजाज़ है

माफी गर लगता तकब्बुर मेरा ये अंदाज़ है
हू नहीं ऐसा में ऐसा सबको लगता आज है
"शायद इसलिए ही तन्हा अपनी हर परवाज़ है" khamoshi

khamoshi

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