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lokeshkumar8110
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देखना तुम, क्या ये होता है क्या कोई सुकून से रोता है
सब ऊंची इमारतें व्यस्त है इन सड़कों पे कौन सोता है
जो ये गुज़र जाती हैं गाडियां इतनी तेज़ी से इतनी जल्दी
घर लौटते वक्त क्या इस थकान का घर भी होता है
जिए चले जा रहे हैं लोग ज़िंदगी अपने हिस्से रोशनी 
क्या इसका वापसी का रास्ता होता है

©h एच

एच #Shayari

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ये रोने वाले चुप क्यूं नहीं होते
इनसे पूछो ये रात को क्यूं नहीं सोते
कभी बातों बातों में हंसी आ जाती है 
कभी बात ही दिल पे लग जाती है 
हम इन बातों की यादों से दूर क्यूं नहीं होते 
आंखो को कोई रस्ता दो की अकेले निकल जाऊं
वैसे साथ वाले भी साथ नहीं होते 
अगर दिखेगा तारा मांगूंगा आंसुओ का किनारा 
लोगो ने कहा टूटते तारे नहीं होते।



MUSAFIR

©h #Anhoni
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रातों को लिखना तुम कल की सुबह लिखना 
फिर बैठ जाना शाम ढल जाने के बाद 
दोबारा रात का शोर लिखना 
रातों को लिखना तुम कल की सुबह लिखना 


Musafir

©h

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हम सब एक चेहरा नहीं कई चेहरे लेके जीते है
ग़म किसी का भी हो हंसी अपनी सिते हैं
कई दोस्त दोस्त नहीं दिल के चहीते है
खुल के जीना नहीं होता दिन ऐसे बीते है
इतना मिल गया जो नहीं है उसे ही गिनते है
जिसे खोया वही लगता है जिससे भी मिलते है
नशे में रहना मुश्किल है होश से लिखते है
बिखर तो कब के गए सिमटे से दिखते है
कुछ बोलकर भी खुश नहीं खामोशी समझते नहीं
है नहीं खुश दिखते है
बहुत अनजान हूं खुद से दूसरों को पढ़ते है
डर बैठ  गया ये नहीं हुआ तब लड़ते है
दूर तक सोचा केवल पास में संभलते है
जिन से पूरी उम्मीद थी पूरी  वहीं बदलते है
ये ख्वाइश तो बनी टूट ने के लिए और हम टूटने से डरते है


मुसाफिर

©h

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ये दवाइयां जीने नहीं देती या यही सहारा बनती है 
ये जो घर के लफड़े हैं ये भी तो एक वजह बनती है 
सब रोकर सो गए एक मेरी नींद ही तारा बनती है
मैं खुद हुआ हूं या फ़िर ज़िंदगी आवारा करती है 
बे फिकर सोचा जाता है यही सबसे अनजाना करती है
चल रहा तो ठीक नहीं ये बात भी हंसाना करती है
मुस्करा के खूब ये ज़िंदगी भी ड्रामा करती है
ये गलियां भी बहोतो को दीवाना करती है
उदासी ये आंखे हमसे ज्यादा जाना करती है 
आंसुओ का नया घर मुझे अब पुराना करती है 
बीत गई वो समझदारी जो याद दिलाया करती है
मुझे दवाइयां ओर थोड़ा मां संभाला करती है


-Musafir

©h

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फिर उसी महीने में आ गए 
जब सोचा था कि
इधर से नहीं गुजरेंगे 


-Musafir 07

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ये शाम थोड़ी सुहानी है 
इसकी की भी अपनी कहानी है
रुकते नहीं ये परिंदे वहां जहां
इनके पिंजरों की निशानी है।

मुसाफिर 07

©Musafir

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मकानों का शोर दीवारों से पूछना
अगर बात हो तुम्हारी समन्दर से 
तो ठहरे किनारों से पूछना
हम सब तमाशा देखने आए है
या तमाशा करने आए है 
कुछ बाते जरूर भूलना 
समझदार तो हर जगह मिल जाएंगे 
जिंदगी जीनी है तो
पागल की तलाश में घूमना
रात क्या होती है कभी
 अंधेरे की ओर निकलना
डरावनी बेचैनी सी हालत है
वक्त मिले तो जागना एक रात
और रात से पूछना
आंखे नींद क्यूं नहीं ले पाती 
ये मौत मेरे हिस्से में क्यूं नहीं आती। 



मुसाफिर 07

©Musafir

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उम्र बढ़ रही  सोच घट रही 
वक्त रुक गया घड़ी चल रही 
धर्म पता नहीं नजर बट रही
खून लाल है बाते टल रही
दिन भीड़ ले गई राते मर रही
इंसान पीछे दुनिया आगे चल रही
अब बस मेरी बेचैनी बढ़ रही
ज़िंदा थे अब सांसे चल रही
देखो लाश कमाने चल रही
धीरे ही लेकिन आग बढ़ रही
प्यार लेने आया तो दुकान बढ़ गई
लेकिन नफ़रत अभी भी बट रही
आज़ादी मिल गई 
फ़िर भी पैसो की गुलामी कर रही
सूरज डूबा दिया 
रात क्यों है आना कानी कर रही
कितने आगे आ गए हम अब
 की हर बात पे लड़ाई चल रही

-मुसाफिर

©Musafir

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