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chintoochoubey4240
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Chintoo Choubey

positivity is my strength

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Chintoo Choubey

क्यूँ करुँ किसी से झगड़ा,
क्यूँ करुँ शिकायत किसी से,
क्यूँ करुँ गुस्सा किसी पर,
क्यूँ करूँ बगावत किसी से,
ये विशेषताएं सभी है मुझे ,
कौन अब् ये बोझ उठाए ,
मुझ जैसे सनकी से, दोस्त रहे खुद को बचाय सनकी दोस्त

सनकी दोस्त

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Chintoo Choubey

मुस्कुराने कि कोशिश हज़ार की,
हर बार नई सजा पाइ है,
जिस जिस को समझा अपना,
उसी से दगा खाई है,
ठोकरो ने मुझे ये समझाया है,
अब जा कर समझ में आयी है, ठोकर #paidstory

ठोकर #paidstory

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Chintoo Choubey

छोटे छोटे लब्जो को छुपा रखा है,
मैंने अपना दर्द तकिये में दबा रखा है, दर्द

दर्द

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Chintoo Choubey

मैं बस इतना हि खराब हूँ,
कि तुमसे नाराज़ हूँ। मेरी नाराजगी

मेरी नाराजगी

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Chintoo Choubey

कुछ लोगों कि शाम अच्छी है आज,
वो घाट, वो सूप देऊरा, 
वो ढलता हुआ सूरज,
नसीब है उनका जो इनके सहभागी बने है,
परमात्मा के दर्शन के काबिल बने है,
हर तरफ उन गीतों का गान होगा,
धूप दीपों का मनोरम दृश्य होगा,
मैं अभी काम से लौटा हूँ,
आज की शाम से अछूता हूँ,
ज़िन्दगी की जरुरतों ने यूँ जकड़ा है,
हर शाम एक शाम सा ही गुजरता है,
फिर भी यह यकीन है मुझको,
शाम की सूरज एक नया सवेरा लाएगी,
वो सुबह जिसका इंतजार है इक न इक दिन तो आएगी वो सुबह

वो सुबह

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Chintoo Choubey

एक बिहारी क्या है? दूर शहर में ,
कुछ भी नहीं है, बिहारियों का कुछ नहीं है,

हम क्या है? क्या हमारी औकात देखिएगा!
कभी समय मिले अगर तो, आकर बिहार देखिएगा,






     बिहार

बिहार

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Chintoo Choubey

ना चान्दी ना पीतल खरीदने आया हूँ ,
मैं मिट्टी का बंदा मिट्टी के दिए खरीदने आया हूँ,

बाज़ार जिन झिलमिलाहटों को रोशनदान समझती है,
मैं किसी के घर का रोशनदान लाया हूँ। रोशनदान

रोशनदान

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Chintoo Choubey

चिता को क्या पता किसी के वेदना की,
उस शैय्या से पूछो कितना भार लिए जल रहा है,
राख हो कर भी नहीं है शांत जो,
पानी पा कर भी धुआं सा उठ रहा है,
अंश को क्या करेगा तू बहाकर,
दंश तो फिर भी मुझ पर ही पड़ा है,
लाचार सा यूं ही किनारा तक रहा हूं,
कुछ नहीं बस घाटों का पानी चख रहा हूं,
अशांत मन को बहला रहा हूं,
अपने आप किनारे लगा रहा हूँ 


     अंश का दंश

अंश का दंश

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Chintoo Choubey

Sometimes borders are good in our life,but they create,arrogance,dissobedient,cruelty  Just quote

Just quote

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Chintoo Choubey

यूँ तो डराने धमकाने से मैं डर जाता हूँ,
अँधेरे से भी खौफ खाता हूँ,
अकेला रहता हूँ फिर सहम जाता हूँ,
कोई नाजुक हालत में थरथरा जाता हूँ,
ऐसे हि डर के कई रुपों ने परेशान कर दिया है,
बारम्बार मुझे हैरान कर दिया है,
तकलीफ ये नहीं कि डरपोक हूँ मैं,
माँ से दूर हूँ पर कमज़ोर नहीं मैं,
उनका साया हरपल् तसल्ली देता है,
जब रोता हूँ , उन्हीं का साया संभाल लेता है,
क्या जज्बात मेरे किसी को समझ में आएँगे,
जब दूर होंगे वो माँ से तो खुद हि समझ जाएँगे।

*यह कविता व्यक्तिगत रुप् से लिखी गई है। मेरी माँ और उनका साया

मेरी माँ और उनका साया

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