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chandrveerchaudh5155
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chandrveer chaudhary

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chandrveer chaudhary

मिट्टी का कच्चा घर था ,  उस पे फूँस का छप्पर था
उसमें रहने वाले हम थे और कई चिड़ियाएँ भी
हम तो पक्के घर में आ गए , चिड़ियाएँ बर्बाद हो गयी
इस दुनिया को उनकी शायद हाय लगेगी।

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chandrveer chaudhary





फिर जुर्म किसी और पे मढ़ना  फ़िज़ूल हैं
हालात हमारे ही बनाये हुए हैं दोस्त

हमको न किसी धूप किसी छाँव पे यकीन
हम लोग दरखतों के सताए हुए हैं दोस्त

बाबर हो या आर्यन हों , मैं हूँ कि तुम हो
सब लोग तो बाहर से आये हुए हैं दोस्त

ज़ेहन से अपाहिज हैं शामिल हैं शोर में
जनमजात नहीं ये बनाये हुए हैं दोस्त

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chandrveer chaudhary

एक बात थी जो कहनी थी
एक टीस है जो खलती है

ये तुम्हारी याद भी क्या है
क्यों मेरे साथ साथ चलती है

हम जुल्मों के इतने आदी हैं
आह तक अब नहीं निकलती है

ये हवा है या आदमी की जुबां
ये इतने  रुख कैसे बदलती है

झूठ की कोई कहानी भी
बस चलती है जब तक चलती है

जैसे वो थे  ये भी वैसे हैं
अब क्या कहें किसकी गलती है

तबाह कर हमें क्या हुआ हासिल
तबाही भी हाथ मलती है

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chandrveer chaudhary

तुम्हें बुरा लगे या भला लगे जो कह दिया सो कह दिया
फिर खिलाफ है तो रहा करे फिर तेरा मेरा बयान क्या

अब जो कहानी ख़त्म है ,  तो ख़त्म है फिर और क्या
फिर मुहब्बतों के पत्र क्या फिर मुहब्बतों के निशान क्या

जिस राह में हम चल दिए , उस राह पर चलते रहे
फिर पड़ने वाले पड़ाव क्या फिर आने वाले ढलान क्या

जो भी आया लूट कर हमको यहाँ चलता बना 
फिर ये हमारा फ़र्ज़ था फिर इसमें कहाँ, एहसान क्या

जो भी करते हैं तो फिर दिल खोल कर करते हैं हम
फिर तो जो परिणाम हो ,उसमें नफा नुक्सान क्या

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chandrveer chaudhary

हरकत अपनी उल्टी सीधी होती हैं
किस्मत सबकी अच्छी खासी होती है

एक बखत था जब हम पर थी बेफिक्री
अब तो अपने पास उदासी होती है

बस होती हैं लंबी लंबी तकरीरें
बात तो समझो सिर्फ ज़रा सी होती है

इसको बस महसूस किया जा पाए है
इश्क़ की आदत भी तो हवा सी होती है

मज़बूरन कुछ बोल नहीं पाती है बस
होने को तो झील भी प्यासी होती है

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chandrveer chaudhary

जानती हो ? चाँद क्यूँ करता है तुमसे रश्क़
वो जानता है उससे तुम  यक़ीनन हसीन हो

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chandrveer chaudhary

जानती हो ? चाँद क्यूँ करता है तुमसे रश्क़
वो जानता है उससे तुम  यक़ीनन हसीन है

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chandrveer chaudhary

मुझको खबर नहीं कि तेरा खुमार है या सुरूर है
है धड़कनों में खलबली यानी कुछ तो ज़रूर है

देखा जबसे है तुझे तू चाहतों में शुमार है
ये तेरी बिखरी ज़ुल्फ़ का या तेरे हुस्न का नूर है

एक शिकायत है यही खुलकर कभी मिले नहीं
ये शायद मेरा गुरुर था  या   शायद तेरा  गुरुर है

तेरी जुल्फों की घनी छांव में कुछ देर आकर बैठ लूँ
मंज़िल करीब भी नहीं और शाम भी कुछ दूर है

वैसे तो कुछ खास अभी तुझ पर मैंने लिखा नहीं
जिसमे तेरा ज़िक्र है वो ग़ज़ल बड़ी मशहूर है

जो भी चाहा ना मिला जिसको न चाहा मिल गया
मेरे ख्वाब ख्वाब ही रहा ,  शायद यही दस्तूर है ।

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chandrveer chaudhary


तुम नहीं हो फिर भी तो ये चल रही है ज़िन्दगी
तुम जो आजाओगे थोड़ी खुशनुमा हो जायेगी

जो भी हो मुसलसल हो फिर हो किसी रफ्तार से
फिर यक़ीनन एक चिंगारी शमा हो जायेगी

थोड़ी सी तहजीब थोड़ा सा सलीका सीख ले
फिर ज़ुबाँ तेरी भी उर्दू की ज़ुबाँ हो जायेगी

इस तरह से चल रही है जिस तरक्की के लिए
देखना एक दिन ये दुनिया बदनुमा हो जायेगी

हम जो सुनते आये थे वो क्या यही जम्हूरियत
किसने सोचा था कि नफ़रत रहनुमा हो जायेगी

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chandrveer chaudhary


तुम नहीं हो फिर भी तो ये चल रही है ज़िन्दगी
तुम जो आजाओगे थोड़ी खुशनुमा हो जायेगी

जो भी हो मुसलसल हो फिर हो किसी रफ्तार से
फिर यक़ीनन एक चिंगारी शमा हो जायेगी

थोड़ी सी तहजीब थोड़ा सा सलीका सीख ले
फिर ज़ुबाँ तेरी भी उर्दू की ज़ुबाँ हो जायेगी

इस तरह से चल रही है जिस तरक्की के लिए
देखना एक दिन ये दुनिया बदनुमा हो जायेगी

हम जो सुनते आये थे वो क्या यही जम्हूरियत
किसने सोचा था कि नफ़रत रहनुमा हो जायेगी

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