साथ में समान कम हो तो सफर सुगम होता है,
कई बार कुछ न हो तो भी वजन का वहम होता है।
Sarita Shreyasi
उस पेड़ से बंधे मन्नत के धागों में एक धागा मेरा भी था, पर उसका समय बीत चुका था। मैंने हल्के मन से धागा खोल कर किसीके साथ स्वयं को भी मुक्त कर दिया। कुछ आरजू और ख्वाहिशें सील गयी थीं, उन्हें गंगा के धार में प्रवाहित किया और अपने लिए कुछ नहीं मांगा। प्रणाम कर के आभार व्यक्त किया और पीछे मुड़ गयी।
तब मुझे कहाँ पता था कि माँ ने कुछ और तय कर रखा है मेरे लिए, पुराने बंधन से मुक्त होना और मन्नत को विदा करना ये सब मेरी नहीं विधाता की योजना थी। जब मैं कच्चे सूत खोल रही थी, साथ-साथ कुछ बंध रहा था, एक प्रवा
Participate in the #rapidfire and come up with an #abcdpoem, where first line starts with A, second line starts with B and third line starts with C and fourth line starts with D.
My favourite entries posted before 10 pm IST will be highlighted tomorrow. #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Baba
Sarita Shreyasi
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Sarita Shreyasi
#सितारोँ की जमीं पर जब कोई कंकड़ चुन रहा होता है,
पत्थर के सिरहाने पर नन्हीं आँखों में
कोई ख्वाब बुन रहा होता है।
उन्होंने कहा कि जूते फटे पहनकर वो आसमान पर चढ़े थे,
किस्सा मैं सपनों की ज़िद का क्या कहूँ,
नंगे पैर जो चाँद तक चले थे।
#जूते फटे पहनकर वो आसमान पर चढ़े थे(पंक्ति, मनोज मुंतशिर जी की हैं)
#देखा करें जो खुद को हर रोज़ आईने में,
तो औरों की खुबसूरती भी हम देख पाएंगे।
औरों की खासियत देखने समझने में, जिंदगी
संवरती ही जाएगी, आप निखरते ही जायेंगे।