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navoditsharma4062
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Navodit Sharma

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Navodit Sharma

#OpenPoetry ईद मुबारक कैसे तुम ये बधाई इतनी आसानी से दे देते हो,
जब एक मासूम बेजुबान, जिसे तुमने पाला पोसा खिलाया पिलाया 
और एक ही दिन में उसे कसाई को दे देते हो।
वो नहीं मांगता किसी से भी कुर्बानी या बली,
फिर वो चाहे कोई भी हो अमर, एंथनी या अली।
ईश्वर या अल्लाह ने, पैदा करने का और किसी को मारने का हक खुद को दिया है,
फिर कौन है यह लोग जिन्होंने यह ठेका खुद से लिया है।
अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ी हुई इन कुरीतियों को क्यों नहीं अपने जीवन से बाहर करते हो,
अनपढ़ का तो चलो एक बार मान भी ले पढ़े-लिखे लोग भी क्यों अपने विवेक को ज़ायर करते हो।
जब चलाते हो नशतर किसी बेजुबान की गर्दन पर रक्त रंजित हो जाता है सारा पर्व,
चार लोग मिलकर जकड़ लेते हो उसको,
 ऐसी बहादुरी करने पर शायद ही होता हो किसी सभ्य इंसान को गर्व।
त्यौहार का अर्थ होता है खुशियां प्रेम और प्रफुल्लता,
लेकिन यहां है सिर्फ कष्ट हत्या और निर्ममता।
अल्लाह ने तो मांगी थी इब्राहिम से उसकी ही संतान,
अगर उसको इतना ही मानते हो तो क्या कर पाओगे अपनी औलाद को कुर्बान।
ईश्वर या अल्लाह कोई नहीं चाहता कि कोई हो उसके नाम पर कुर्बान,
वो चाहते हैं तो सिर्फ ये कि हम करें इन कुप्रथाओं का बलिदान।
इसलिए इन कुरीतियों की बेड़ियां तोड़ो हिंदू हो या मुसलमान,
और मजहब से ऊपर उठकर बनो एक मुकम्मल इंसान।
........... नवोदित 'हिंदू' #navodit
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Navodit Sharma

वो कहते हैं धर्म खतरे में है,
अरे छोड़िए साहब धर्म तो कतरे कतरे में है।
खतरे में जो है उस पर ध्यान दीजिए,
धर्म की चिंता आप बिलकुल छोड़ दीजिए।
धर्म तो सनातन है कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा,
किंतु इन पाखंडी नेताओं के कुकृत्य जनमानस कब तक सहेगा।
बलात्कारी व्यभिचारी भ्रष्टाचारी यह आज कल साहिब-ए-मसनद हैं,
तो मसनदनशीं होने का यही सब मतलब है।
अपने साथ हुए कुकर्म की दुहाई दूं कहां,
कत्ल होने का डर सताता है घर बाहर इधर उधर जहां-तहां,
सिर्फ खुद की बात हो तो कोई बात नहीं,
पूरे परिवार को छुपाऊं तो छुपाऊं कहां कहां।
रोजगार व्यापार न्याय व्यवस्था सब ठप पड़े हैं,
लेकिन अभी भी कुछ लोग हैं जो हिंदू मुसलमान के पीछे पड़े हैं।
अतः अगर ऐसे ही जीताते रहोगे ऐसे लोगों को चुनाव,
हादसे तो होते ही रहेंगे क्या दिल्ली क्या उन्नाव।
और हां अगर बचना है इन हैवानों की हैवानियत से,
धर्म को ऊपर मत समझो इंसानियत से।
                                                     नवोदित.... #धर्म
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Navodit Sharma

मैं, मैं होने के मायने ढूंढने निकला हूं 
आज मैं खुद को जानने निकला हूं
खड़ा हूं बरसों से दुनिया के बाजार में,
कोई कहे हीरा, कोई कहे सोना, कोई कहे पत्थर, कोई कहे शीशा, किसी के लिए मैं नायक, किसी के लिए खलनायक, किसी की इबादत, किसी की मोहब्बत, जिसकी जैसी फितरत उसने वैसा तोल दिया, इसलिए खुद का सच तलाशने निकला हूं, मैं खुद को जानने निकला हूं।।

कहते हैं आईना झूठ नहीं बोलता,
वह सिर्फ आपको जिस्मानी ही नहीं बल्कि आपकी रूह को भी टटोलता,
जब मैंने आईने में अपने आप को देखा तो पाया,
ना मैं नायक, नहीं खलनायक, ना हीरा, ना मैं सोना, ना मोहब्बत, ना मैं किसी की इबादत,
मैं तो हूं खुदा का एक बंदा, जो खुद से नेक है, 
मुझे परवाह नहीं अब दुनिया की,
मैं तो अब खुदा की नफीज की हुई मंजिल "ऐ मौत" तुझे पाने निकला हूं, इस सफर को मुकम्मल करने निकला हूं, 
मैं आज खुद को जानने निकला हूं।।
                                                ....... नवोदित। #मैंखुदकोजाननेनिकलाहूं #कविता #नवोदित

मैंखुदकोजाननेनिकलाहूं कविता नवोदित

3 Love

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Navodit Sharma

ए तकब्बुर, तेरी बिसात कुछ भी नहीं,
यह खेल है चंद सांसों का,
फिर तू भी नहीं और मैं भी नहीं।।
                                            
नवोदित। #तकब्बुर #नवोदित #शायरी

तकब्बुर नवोदित शायरी

4 Love

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Navodit Sharma

मत दो इतना ऊंचा ओहदा यारों,
मैं भी तुम्हारी तरह खुदा का बनाया हुआ एक मुजस्सम हूं,
जो आज जिंदा हूं तो कल सुपुर्द ए खाक हूं।।

नवोदित #मुजस्सम #शायरी #नवोदित

मुजस्सम शायरी नवोदित

5 Love

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Navodit Sharma

वक्त भी अजब पहेली है, 
कल तक जो पतंगा था आज वो आग हो गया है, 
कल जिसे रंग कहते थे आज वो दाग हो गया है।।
                                                     ------नवोदित। #वक्तकीपहेली #नवोदित #शायरी

वक्तकीपहेली नवोदित शायरी

4 Love

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Navodit Sharma

तेरे हिज्र से टूटा तो मैं जरूर था,
मोहब्बत बन जाए मेरी एक अफसाना ये मुझे नामंजूर था,
उतारकर कैद कर लिया है चांद मैंने अपने हुजरे में,
जैसे आज तू दूर है ये भी कभी दूर था।
                                                      - नवोदित..... #हिज्र #शायरी #नवोदित

हिज्र शायरी नवोदित

2 Love

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Navodit Sharma

सांसों की किताब कुछ उजड़ी उजड़ी सी है,
उम्मीदें जहां तहां बिखरी बिखरी सी हैं।
कुछ नए पन्ने लिख रही है जिंदगी,
अनिश्चितता की स्याही से।
लेकिन एक मैं हूं ज़िद्दी अड़ियल,
जिस की हिम्मत तकदीर से टक्कर लेने की है
बदल रहा हूं सारे किस्से इस किताब के,
जिसके शब्दों ने यह नाकाम साजिश की है।।... नवोदित! #सांसोकीकिताब #हिंदीकविता #नवोदित
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Navodit Sharma

रात के आगोश में
बंद आंखों की मासूम सी नींद में
एक मनचाहा सपना धीरे-धीरे उभरता है
लेकिन ना जाने क्या डर है उसको जाहिर होने से डरता है
चहल कदमी करता है नींद के आकाश पर जैसे सूर्य करता है वारिद के व्यास पर
ये मन भी बिल्कुल चंचल है सपने के पीछे व्याकुल है
कभी तेज है कभी मंद है चल रहा अंतर्द्वंद है
जानता है कि सपना है लेकिन सपने को पाना मन का सपना है
मन और सपना दोनों नींद में दौड़ रहे
निश्छल सारे भौतिक बंधन तोड़ रहे
सपना चाहे इस मासूम सी नींद का रास्ता
मन चाहे सपने का हो जाए हकीकत से वाबस्ता
भोर ने दस्तक दी रात के आगोश में, नींद भी थोड़ा शरमाई
सपना इस दस्तक को पहचानता है उसे अब जाना है वो भली भांति जानता है
मन थोड़ा अविवेकशील है सपने को पाने के लिए अभी भी प्रयत्नशील है।
                    नवोदित..... #मनऔरसपना #हिंदीकविता #नवोदित


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