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rakshitsvatas8006
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Rakshit S Vatas

रक्षित सिंह वत्स, डेयरी फार्म आगरा किसी की याद में लिखता हूं इसी उम्मीद में शायद वो फिर लौट आए।

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Rakshit S Vatas

विश्व मूर्ति करुणा निधान
महामृत्युंजय शिव भगवान

नंदी बैल पर करें सवारी
आदि नाथ शिव गंगाधारि

#जय महाकाल
#हर_हर_महादेव
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Rakshit S Vatas

सुबह से शाम हो गई..
आज रक्षित 🦁की पोस्ट नही दिखी 💓💗💞💖

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Rakshit S Vatas

मुझे ये गम नहीं महफिल में होके तन्हा हूँ 
मुझे ये दुःख हैं तेरे होते हुए मैं तन्हा हूँ ठाकुर साहब.....

ठाकुर साहब.....

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Rakshit S Vatas

तू धार है नदिया की 
        मैं तेरा किनारा हूँ 

तू मेरा  सहारा हैं 
     मैं तेरा सहारा हूँ ठाकुर साहब

ठाकुर साहब

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Rakshit S Vatas

दृढ़ रख संकल्पों को अपने
सच में परिणत होंगे सपने

इतनी जल्दी हार न मानो
इस जीवन को भार न मानो
निष्फल हुए प्रयासों को ही
विधि का अन्तिम सार न मानो
भागीरथी प्रयत्नों को तुम
और अभी आगे बढ़ने दो
दुखते पाँवों को ये सबसे 
दुर्गम घाटी तो चढ़ने दो
निश्चित मानो नाम तुम्हारा
मंज़िल स्वयं लगेगी जपने 
दृढ़ रख संकल्पों ...............

यदि मन हारा समझो हारे
मन के जीते जीत है प्यारे
धारण धैर्य करो तो थोड़ा
हो जाएंगे वारे-न्यारे 
रजनी को ढलना ही होगा
होगी सुखद सुबह की दस्तक
कितने दिनों रहेगा कोई
आखि़र पीड़ाओं का बंधक
सुदिनों की जागृति फिर होगी
दुर्दिन पुनः लगेंगे झपने
दृढ़ रख संकल्पों ................

कोई साथ नहीं देता है 
दुख में हाथ नहीं देता है 
किंकर्तव्य-विमूढ़ों को वर
कोई नाथ नहीं देता है 
पक्का अगर इरादा हो तो 
आशंकाएँ धुल जाती हैं 
साधें एकलव्य सी हों तो 
सारी राहें खुल जाती हैं
कुंदन सा दमकेगा जीवन
संघर्षों में देना तपने
दृढ़ रख संकल्पों ................ ठाकुर साहब,

ठाकुर साहब,

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Rakshit S Vatas

वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम,
या कभी दो बात कहने तो नहीं पर कुछ नहीं तो मुस्कुराने आओगे तुम

मैं नहीं हूँ तुम नहीं हो तो यहाँ फिर आज किसकी आँख का जल में विलय है,
रो दिए हैं कुछ पुराने पत्र यानी ये हमारे प्रेम का अंतिम समय है
इस विरह की भी घड़ी में सोचता हूँ क्या मिलन के गीत गाने आओगे तुम
वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम

ये ज़माने को पता है दूर हो पर ये किसे आभास है के तुम यहीं हो,
सिर्फ उतना याद है के मैं कहाँ हूँ और इतना याद है के तुम नहीं हो
ये बताओ तो सही मेरे नहीं पर गीत अपने गुनगुनाने आओगे तुम?
वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम ठाकुर साहब......

ठाकुर साहब......

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Rakshit S Vatas

वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम,
या कभी दो बात कहने तो नहीं पर कुछ नहीं तो मुस्कुराने आओगे तुम

मैं नहीं हूँ तुम नहीं हो तो यहाँ फिर आज किसकी आँख का जल में विलय है,
रो दिए हैं कुछ पुराने पत्र यानी ये हमारे प्रेम का अंतिम समय है
इस विरह की भी घड़ी में सोचता हूँ क्या मिलन के गीत गाने आओगे तुम
वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम

ये ज़माने को पता है दूर हो पर ये किसे आभास है के तुम यहीं हो,
सिर्फ उतना याद है के मैं कहाँ हूँ और इतना याद है के तुम नहीं हो
ये बताओ तो सही मेरे नहीं पर गीत अपने गुनगुनाने आओगे तुम?
वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम ठाकुर साहब......

ठाकुर साहब......

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Rakshit S Vatas

तुम याद आए मुझे
जब कभी मैंने
स्वयं को
नितान्त अकेले पाया। 

तुम तब भी मुझे
याद आए
जब मैं ख़लाओं में
अकेला फिरा

जब मैं लड़खड़ाया
सघन तिमिर में
मैंने तुम्हें वहाँ भी
याद किया

तुम याद आए मुझे
हर उस क्षण
जब मैंने
बसन्त और पतझर को
अकेले भोगा।

जब कभी मैं
डरा
सहमा
और टूटा
जीवन की कुरूपता से
तुम याद आए मुझे
वहाँ भी

और आज मैं
चकित
अनुत्तरित
लाजवाब
तुम्हारा मुँह ताक रहा
खड़ा हूँ
जब तुम कहते हो
मैंने तुम्हें याद नहीं किया।

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Rakshit S Vatas

मेरे पास रखा ही क्या था
क्यों तुम मेरे पास ठहरते

तुमको महलों की चाहत थी
मेरा टूटा-फूटा घर था
तुम फूलों पर चलने वाले
मेरा काँटों भरा सफ़र था
ऐसे में ओ मेरे हमदम
कैसे ना तुम राह बदलते
मेरे पास रखा...

सबकी तरह तुम्हें भी भाती
थी केवल दीनार की भाषा
कब तक आख़िर बाँधे रखती
तुमको मेरे प्यार की भाषा
कैसे भाव तिजारत वाले
रिश्तों के साँचों में ढलते
मेरे पास रखा...

समझ गया सब, नहीं ज़रूरत
मुझको कुछ भी समझाने की
किसको चाहत नहीं जहाँ में
अच्छे से अच्छा पाने की
मुझसे अच्छा मिला कोई तो
क्यों तुम रूख़ उस ओर न करते
मेरे पास रखा...

तुम्हें भूल जाने का निश्चय
झूठा है, कब सच होना है
आँखें दो दिन को रोई हैं
मन को जीवन भर रोना है
क़िस्मत ने क्या दिन दिखलाए
सूखे स्वप्न फूलते-फलते
मेरे पास रखा. # रक्षित सिंह वत्स

# रक्षित सिंह वत्स


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