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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

जिंदगी

करवट बदल-बदल के आजमाई  जिंदगी 
राह में कांँटे बिछा कर,  मुस्कुराए जिंदगी ।

ख्वाहिशों की डोर को, शिद्दत से संभाला,
जाने क्यों रही, सदा कसमसाई जिंदगी।

मुसाफिर बन बंजारों से, भटकते रहे,
खाली हाथ  ही, दे गई विदाई जिंदगी।

मुकद्दर में लिखे को, मिटाना चाहा,
खा़क- ए-कब्र में सेज सचाई जिंदगी ।

रौनकें लगी थी, रुख़सदी में संबंधों की,
फिसलती रेत सी, तड़फडा़ई जिंदगी ।

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

कब किसने जिन्दगी सफल  बनाया है, 
तजुर्बा तो असली ठोकरों से  आया है ।

शान कैसे बचे अब मुफलिसी में  यारो,
वक्त ने हौसला-ए-जूनून  आजमाया है।

जीत जायेगा वो हर दर्द-ओ-ग़म से,
उम्मीद से जो पत्थरों में गुल खिलाया है ।

ऊलझनों में अपने राहत-ए-मरहम  न खोज,
वफ़ा के बदले बेवफाई ने आईना दिखाया है ।

थक कर खुद ही दर्द सीने में छुपा लेते है,
तहजीब-ए-कुरबत मे हमने बहुत  गंवाया है ।

बहुत कशिश है उनके रूह-ए-संगीत में यारो,
किसी ने ख्वाहिशों को इस कदर जलाया है ।

दर्द से बोझिल हुई क्यूंँ अब आँखें सबकी,
तरन्नुम-ए-ग़ज़ल ने गीत ऐसा सुनाया है ।

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

दिल धड़कता है, कोई संगीत  लिख,
जज्बात-ए-रूह से, कोई गीत  लिख ।

कब से बेताब है, नजर मंजिल को,
राह-रोड़ो को, सफर का मीत  लिख ।

जिन्दगी सुर वो साज से, सजी दुल्हन है,
हर सय को मात दे, तू अपनी जीत लिख ।

तन्हा-तनाव मे रहता है, हर शख्स यहाँ,
सुकून-ए-दिल मिले, ऐसी रीत  लिख ।

नफरत ही नफरत, फैली फ़िजा मे हर तरफ,
दिलों मे बसे खुश्बू, ऐसा सुरभित प्रीत लिख ।

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

दास्तान-ए-दर्द तुझे, सुनानी  है अभी,
आग दिल मे, आँखों में पानी है अभी ।

वक्त कुरेदता रहा, जख्मों को हर पल,
बाकी तो ख्वाहिशों की, रवानी है अभी ।

मुस्कुराते होठों की, हंसी पे गौर न करो,
इक दबी सिसकती हुई, कहानी है अभी।

हर शाम तन्हाईयों में, गुजरती है कुछ ऐसे,
बिन मौजों के दरिया में, जिन्दगानी है अभी ।

वो किताबों में पड़े, मुरझाए फूल तो देखो,
तरन्नुम-ए-ग़ज़ल की, बची निशानी है अभी ।

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

जिन्दा रहने को, कोई हुनर पैदा  कर,
काँटों पर चलने का, जिगर पैदा  कर।

 ये  स्याह रात भी, गुजर ही  जायेगी,
जंग-ए-हालत को, सबर पैदा कर ।

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

खुद ही खुद में, है तलाश मेरी, 
कुछ जख्मी सी, है आज मेरी ।

पागलपन की हद तक जुनून है,
फिर भी है, हर शाम उदास मेरी।

चिखती है अब, हिय की दीवारें भी, 
बनावटी मुस्कान में घुटे है सांस मेरी।

जिंदगी से शिकवा, ना उम्मीद कोई, 
कब थमे की धड़कन, होगी लाश मेरी।

हर आरजू मेरी, मिट्टी संग दफन होगी,
मौन होगी फिर भी, हर बकवास मेरी।

दर्द से कराह उठेगी, रूह जब कब्र में,
आसमान से बरसी की बूंदे, बन प्यास मेरी।

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

अनकहे अल्फा़ज  कोई सुन लेता 
दिल की  कशिश काश  गुन  लेता
शब्दों में बात कहाँ जो  मौन  कहे
एहसास  को  एहसास  सुन  लेता

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

तेरे भी नाम का फलक पर इक सितारा है,
बुलंदियों को छू बन्दे, तेरा जंहान  सारा है ।

हो जोश बाजूओं में तो फौलाद भी है पिघलाते,
आंधियों मे भी जो शम्मा जले  वही नजारा है ।

संस्कार, सेवा, सत्कार से बनती  है पहचान,
भारत की मिट्टी सोने-चांदी से भी न्यारा है ।

दिन-रात बस ख्वाहिशें पलती  है पलकों पे,
कैसे कहे राह-ए-मंजिल कांँटो पे गुजारा है ।

कौन आयेगा मुफलिसी में अब  काम तेरे,
अब "गज़ल" को देखना बस यही नजारा है।

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

मेरे अंदर अभी, जमीर बाकी है,
आंँखों में नमी, हृदय में पीर बाकी है ।

मिट जाते हैं, हर हर्फ़ लहरों पे,
दुआओं में अभी, नजीर बाकी है।

लूटकर भी हमने, धोखा न दिया,
खुद्दारी के मुझ में, शरीर बाकी है।

शिकवा नहीं मुझे, दुनिया से यारों,
फकीरी की शानदार जागीर बाकी है।

ख्वाहिशों की दरार भरतती हूंँ रात-दिन,
दरमियांँ रिश्तो की राजगीर बाकी है।

दुनिया की नजरों में एक है 'ग़ज़ल'
कुछ तो मिसाल है, नजीर बाकी है।

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वन्दना यादव " ग़ज़ल"

दर्द देकर उसने, हमे सताया है,
कितनी नफरत दिल में छुपाया है ।

अधपके से नींद के, ख्वाब से 
गर्दिशों की आंच ने, जगाया है।

अश्क हल्का करता है, दिल को बड़ा, 
छुपा के आंचल में, जिसे हमने बहाया है।

हाल-ए-गर्दिश में, करम जिनपे किये,
वक्त बदलते ही, तोहमत लगाया है।

फूंक कर खुद ही, ख्वाहिशों को,
लबों की ओट से, दर्द मुस्कुराया है।

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