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parasramarora4891
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Parasram Arora

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Parasram Arora

White अब फर्क नजर नहीं आता 
एक सब्यासी और ब्लात्कारी मे

गुनाह करने वाले 
हर बार मुखौटे 
 बदल  कर गुनाह कर लेते है 
और गुमराह कर देते है 
सिधे सरल लोगो  को 
और 
जुर्म अपने छुपा लेते है

©Parasram Arora सन्यासी और बलात्कारी

सन्यासी और बलात्कारी #Poetry

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Parasram Arora

White सत्ता लोलुप   सियासत दा 
विरासत ने मिली कुरसी
 को बचाने के अलावा 
कुछ भी नहीं कर रहे है.

उनको क्या पढ़ी है 
जानने क़ी  कि आभावग्रस्त 
प्रजा कैसे दिन गुज़ार रहीं है 
कि वो भूखी है या 
बेरोजगारी क़ी मार झेल रही  है

©Parasram Arora कहानी कुरसी क़ी

कहानी कुरसी क़ी #Poetry

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Parasram Arora

White जिस मा ने बच्चो को अपनी ममत्व क़ी छाँव मे परवरीश देकर बड़ा किया था 

आज वो मा  उपेक्षित सी अपना जीवन किसी तरह गुजार रहीं  है 
लगता हैँ वे निर्मम औलादे मा के ममत्व का क़र्ज़ उतराना भूल गई है

©Parasram Arora उपेक्षित मा

उपेक्षित मा #Poetry

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Parasram Arora

White आया था 
मेरी जिंदगी मे वो दिन भी 
ज़ब मै मझधार मे डूबने से न जाने कैसे बच गया था  जबकि उस तूफ़ान मे बचने क़ी कोई गुंजाईश भी नहीं थीं

लेकिन मै कितना खुदगर्ज़ और कर्तघ्न निकला कि 
 मै न अपनी किश्ती को न अपनी 
पतवार को धन्यद तक देना ही भूल    गया जिनके आसरे  से मै नया जीवन पा गया था

©Parasram Arora आसरा t

आसरा t #Poetry

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Parasram Arora

White जवानी के आँगन
 मे पैर रखने 
से पहले मैंने पलट 
कर देखा पीछे 

और समझ नहीं पाया
 इस वक़्त की 
कारगुजारी को 
जिसने न जाने 
कब चुरा लिए 
मेरे दूध के दाँत 
.
मेरे तुतलाते  अल्फाज़  
और पता नहीं लग सका 
कैसे चुराली उसने मरी 
 लौरिया थपकिया 
और खिलौने

©Parasram Arora #good_night वक़्त की कार्रगुज़ारिया

#good_night वक़्त की कार्रगुज़ारिया #Poetry

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Parasram Arora

White नहीं हूँ मै 
उस कैलंडर की तरह 
जिस पर धूल चड़ चुकी हैँ 
जिसे तुमने कभी पलट कर  देखा तक नहीं और 
जो फड़फड़ाता रहता हैँ दिन भर 
 पंखे की हवाओ से या खिड़की से आते हवा के झोको
 से

©Parasram Arora नहीं हूँ मै

नहीं हूँ मै #Poetry

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Parasram Arora

White नहीं हूँ मै 
खिड़कियों के शिशे 
पर चढ़ी उस 
धूल  की तरह 
जिसे तुम पोंछ लेते हो 
ढेर सारी रौशनी के लिए

©Parasram Arora नहीं हूँ मै

नहीं हूँ मै #Poetry

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Parasram Arora

White मै नहीं हूँ उस  
ताज़ा अख़बार की तरह 
जिसे तुम हड़बड़ी 
मे पद कर उसे बासी 
 कर देते हो 
और फिर उसे 
रद्दी की टोकरी 
के हवाले कर देते हो

©Parasram Arora ताज़ा अखबार

ताज़ा अखबार #Poetry

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Parasram Arora

White चंद साँसों की 
सलामी देकर 
न जाने कहा निकल 
गई जिंदगी 

अब तो चारो तरफ 
धूल का गुबार है 
और जिंदगी का 
कोई निशन तक 
नहीं दिख  रहा हैँ

©Parasram Arora धूल का गुबार

धूल का गुबार #Poetry

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Parasram Arora

White ये देह तो  एक मुट्ठी 
धूल से बना हुआ 
खिलौना हैँ 
इस खिलोने से.
थोड़ी देर खेल लेना 
क्योंकि टूटने का 
खतरा मंडरा.
रहा हैँ सिर पर

©Parasram Arora खिलौना  मिट्टी का

खिलौना मिट्टी का #Poetry

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