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nareshbhardwaj3688
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Naresh Bhardwaj

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Naresh Bhardwaj

 अनजान   राहों पर  हम-तुम
       मिले थे नाअंजान बनके 
मगर अब तो जानी सी राहों
       पर जाते हो अंजान बनके 
 तूने ये कह दिया है ।  मुझसे 
       मुझे छोड़ दो। मगर मैं ये कैसे 
 करूं मेरे हमदम बता दो मुझे ।

©Naresh Bhardwaj
  #surya
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Naresh Bhardwaj

हसरत थी बहुत कुछ पाने कि
तो बखूबी फिक्रों से लड़ते गए 
और यूं ही  पतंग बन उड़ते गए
गए कभी ऊपर तो कभी नीचे आए
लिए सहारा उंगलियों में फसी उस 
कच्ची डोर से जो बेबस थी वहा 
पर कहना चाहती थी बहुत  कुछ मुझसे 
और इसी जुस्तजू में दिन गुजरते गए।

©Naresh Bhardwaj
  #makarsakranti
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Naresh Bhardwaj

जो आज लड़खड़ा रहा 
वो कभी तो दौड़ेगा
जो आज है अंधेरे में 
वो कभी रोशन तो होगा
जो  है आज अक्स मेरा
वो कभी मुझमें तो होगा
है जो ,मेरा अरमान 
और मेरा अभिमान भी 
है मेरी उम्मीद कि वो
कभी  मेरा तो होगा

©Naresh Bhardwaj
  #bestfriends
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Naresh Bhardwaj

तेरी  हूक  अब मेरे  दिल में उठी है  ये कैसे बताऊं
तेरा प्यार जो इस दिल में है जानम ये कैसे बताऊं

©Naresh Bhardwaj
  #Dark
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Naresh Bhardwaj

सुन तेरा दीवाना फ़साना कह रहा है
कि  बगैर तेरे हम न  जी  सके 
 पर मेरे बगैर ज़माना जी रहा है

©Naresh Bhardwaj
  #devdas
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Naresh Bhardwaj

हालात कुछ ऐसे हैं कि बयां नही होते
जज़्बात मेरी ज़िंदगी से फना नही होते
सहर तेरी याद में कटती तो कटती है शाम भी
अफ़सोस,अलविदा तेरी यादों के साए नही होते

©Naresh Bhardwaj
  #Shayari

Shayari #Love

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Naresh Bhardwaj

तेरी यादों के साए
दिल से जाते नहीं मेरे
लम्हे जो तेरे साथ थे बीते 
जहन से जाते नही मेरे
वादे थे जो कभी
बीच में तेरे मेरे 
शाख से टूटे पत्तो की तरह
कमबख्त आस पास मेरे

©Naresh Bhardwaj
  #tanha तन्हा सफ़र

#tanha तन्हा सफ़र #Love

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Naresh Bhardwaj


मशगूल सा  है  जहां  सारा
थोड़ा सुकून से तो बैठा कर 
मन करे कुछ कहने को जब
तो खुद की खुद से कहा कर
बेज़ुबा है आईने जो अक्स दिखाते हैं तुझे
उन्ही आईनो के बीच बेज़ुबा ना रहा कर

©Naresh Bhardwaj
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Naresh Bhardwaj

beyond the limit there is a shine
causing deepan hope in my mind
is this true that it is mine
or merely scattering the luster of divine

©Naresh Bhardwaj
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Naresh Bhardwaj

छपी है किताब उस शक्स की
जो कभी  तैरता था बिन पानी के
और कहते थे सभी उस शख्स को
कि  करता  है  बात अनजानों  से
शायद  बेफिक्र  सा  पागल  है  वो 
बख़ूबी  ये  बात  थी उस दौर  की
मगर  बदल  गए  वो  नजारे  
कि अब तो बात कुछ और है इस वक्त की
नीलम था वो जो पिघलकर  स्याही  बन गया 
सुर्ख सफेद कागजों पर मानो फिर से नीलम बन गया
लिखने का सैलाब उमड़ा था उसके दिल ऐ जहान में
शब्दों की लहर भी थी उमड़ी  उसके  अरमानों  में
लिखता था  आशाओं की धूप छाओ में
छपी है किताब उस शक्स की
जो कभी तैरता था बिन पानी के

©Naresh Bhardwaj
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