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chaltatheatersam5892
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Naresh Kumar khajuria

lecturer Hindi

https://youtu.be/FESf_OcfxSY

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Naresh Kumar khajuria

Nature Quotes फूलों के मोसम में
००००००००

प्रेम के मोसम में 
कविताएँ आ जाती हैं
जैसे फूलों के मोसम में
आ जाती हैं तितलियाँ

प्रेम के मोसम में
पत्ते झरते हैं
कोपलें निकलती हैं

घास भीगी भीगी रहती
प्रेम के मोसम में
चांदनी नदी में नहाने उत्तर आती है

चुप्पी बोलने लगती है
प्रेम के मोसम
बातें चुप हो जाती हैं

 प्रेम फुर्सत की चीज नहीं
फिर भी
जब भी करना प्रेम 
थोड़ी फुर्सत से करना
ताकि तुम्हारे लिए
तोड़े गये फूलों की सुगंध बची रह जाये
तुम्हारी आत्मा में।

©Naresh Kumar khajuria 
  #NatureQuotes
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Naresh Kumar khajuria








अंजुरी भर प्यास
०००००००
जिंदगी  
नदी की तरह
मिली मुझसे 
और मैं मिला उससे प्यास की तरह। 
जब भी मैंने इसे 
अंजुरी भर पीना चाहा 
यह रेत हो गई । 

मैं रेत से मिटाऊंगा 
अंजुरी भर प्यास
एक दिन मैं 
इसमें डूब जाऊंगा।

©Naresh Kumar khajuria 
  #LetMeDrowm
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Naresh Kumar khajuria

इस तरह हम दो थे
०००००००

तुम अपने आकाश पर
आज़ाद
मैं अपनी ज़मीन पर


तुम अपनी ज़मीन पर
आज़ाद
मैं अपने आकाश पर

एक सफर में 
इस तरह हम दो थे
जिनको एक पेड़ की 
सबसे ज्यादा ज़रूरत है

©Naresh Kumar khajuria #GoldenHour
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Naresh Kumar khajuria

रास्ते जो भी चुने मैंने 
मंजिलों तक नहीं पहुंचे

©Naresh Kumar khajuria 
  #Childhood

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Naresh Kumar khajuria

नाचती हुई औरत 
के लिए जगह कम पड़ रही
वह पूरी पृथ्वी पर
नाचना चाहती 
पहाड़ों और नदियों पर 
थिरकते हुए 
मौसमों को बदल देना चाहती

वह पूरे आकाश पर नाचना चाहती है
चांद को हाथों में लेकर
नाचते नाचते सितारों को 
धरती पर बिखेर देना चाहती है

नाचते नाचते वह समुद्र को 
मथ देना चाहती है
अबकि वह अमृत अपने लिए निकाले गी 

जो तुमने जगह दी है उसे नाचने के लिए
उसे वह ठोकर मारती है

वह तुम्हारे लिए नहीं 
अपने लिए नाचना चाहती है

©Naresh Kumar khajuria #dusk
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Naresh Kumar khajuria

नाचती हुई औरत 
के लिए जगह कम पड़ रही
वह पूरी पृथ्वी पर
नाचना चाहती 
पहाड़ों और नदियों पर 
थिरकते हुए 
मौसमों को बदल देना चाहती

वह पूरे आकाश पर नाचना चाहती है
चांद को हाथों में लेकर
नाचते नाचते सितारों को 
धरती पर बिखेर देना चाहती है

नाचते नाचते वह समुद्र को 
मथ देना चाहती है
अबकि वह अमृत अपने लिए निकाले गी 

जो तुमने जगह दी है उसे नाचने के लिए
उसे वह ठोकर मारती है

वह तुम्हारे लिए नहीं 
अपने लिए नाचना चाहती है

©Naresh Kumar khajuria #dusk

10 Love

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Naresh Kumar khajuria

मैं
००००

बूंद बूंद गिरे लोग
और

अपने ही अहंकार के
 सागर में  डूब गये

तैर जायेंगे 
एक दिन देखना
निकल जायेगा
जिस घड़ी
मैं
 का स्वांस!

©Naresh Kumar khajuria #Save

10 Love

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Naresh Kumar khajuria

मिट्टी मिट्टी करते नीला आसमान हो गये
पत्थर जितने भी तराशे भगवान हो गये

सोचता हूँ तो रातों को नींद नहीं आती 
उसके कितने हैं मुझ पर अहसान हो गये

इस जंगल में हमनें बस्तियाँ कई बसाईं 
रास्ते फिर भी हैं देखो सुनसान हो गये

हम तो जिये वतन को वतन मानकर
पता न चला कब हिन्दो- पाकिस्तान हो गये

देखते ही देखते गुलज़ार हुए जाते थे
देखते ही देखते हैं शमशान हो गये

उसके साथ थे तो बहुत अच्छे थे हम भी
उससे छूटते ही देखो हैं बेईमान हो गये। 

पढ़ाई पर तो बहुत ज़ोर है हर तरफ
फिर भी देखता हूँ कहाँ हैं इंसान हो गये।।

©Naresh Kumar khajuria #alone
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Naresh Kumar khajuria

इस ओर होंगे
उस ओर होंगे
मुझे पता है
दुश्मन किस ओर होंगे


बात हक की होगी
बात लूटेरों की होगी
जानता हूँ मैं
आप किस ओर होंगे

आप आप होंगे
हम हम होंगे
जो लड़ेंगे नई सुबह के लिए
वे लोग और होंगे

वे सारी हदें पार कर गये
ज़माना चुप बैठा है
हम करेंगे तो बहुत शोर होंगे।। 


कमदिल होंगे कमसीन होंगे
गलतफहमी थी  तुम्हारी
हम इतने कमज़ोर होंगे।

©Naresh Kumar khajuria #FindingOneself
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Naresh Kumar khajuria

कीलें रोपते हो फूल उगते हैं कलियाँ हंसती हैं
मेरी ज़िन्दगी की मिट्टी  है वफादार कितनी ।। 

छोड़ मन बहलाना इस तरह ऐ ज़िन्दगी। 
 मैं खूब जानता हूँ तू है अदाकार कितनी ।। 


सियाह रातों में चिरागों की तरह जलते हैं हम
रोशन रहे फिज़ा ज़िन्दगी तुझसे है  दरकार इतनी।। 

इतना ही तो चाहते हैं खुश रहा जाये खुश रखा जाये
पता नहीं खुशी रहती है क्यों हमसे दरकिनार इतनी।। 

सावधान संभल कर चालाकी का ज़माना है
सच्चाई नहीं होती है दोस्त चमकदार इतनी।। 

रातें पहले भी अंधेरी थीं अंधेरा समय था 
पर नहीं थी काली रात आज रात जितनी।। 

कितनी भी निकल जाये हाथों से ज़िंदगी
बची रहती है मगर इतनी मुट्ठी में रेत जितनी।। 

किलें रोपते हो फूल उगते हैं कलियाँ हंसती हैं
मेरी ज़िन्दगी की मिट्टी है वफादार कितनी।।

©Naresh Kumar khajuria #Time

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