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rashmitripathi3181
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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

writer and poetess

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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

लफ़्ज़ों में समेट लेती है जज़्बात-ए-ख़ामोशी अक्सर,
मैं और मेरी तनहाइयों की फक़त इक कलम हमसफ़र!
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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

#yaad#
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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

dhoka

dhoka

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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

चश्म-ए-तर दर्द ए-दिल चेहरे पे उदासी छायी है,
फक़त हमने मुहब्बत में इक यही सौगात पायी है!

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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

saugaat

saugaat

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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

#Pehlealfaaz दुनियाँ को मन दे दे करके देखा पर झूठा प्यार मिला,
स्वार्थ के हटते ही प्रेम घटा दिखलावे का व्यवहार मिला ।
अमृत सी प्रीति नहीं पायी पर जहर वियोग अपार मिला,
सब कुछ मन्थन कर देख लिया संसार में कुछ ना सार मिला ।
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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

न एसा कोई भी पल होता है न एसा कोई भी लम्हा 
जब तुम्हारी यादों के दायरे से निकलकर मैं होती हूँ तन्हा 
तुममें सिमटकर अपने वजूद को मुकम्मल करना चाहती हूँ मैं 
तुमको छूकर  तुम्हारी  ही  खुशबू  में  कैद  होना चाहती हूँ मैं 
इक रात ख्वाब में छुआ था जो तुमने मुझे
अब तक उस खूबसूरत वक्त को जी रही हूँ मैं 
नहीं हो सामने फिर भी ख्यालों में तुम्हें देख रही हूँ मैं 
मेरे तरसे हुए जज्बे को अब एक मुकाम दे दो 
मेरी मुहब्बत को एक अनकहा सा नाम दे दो 
कहीं बिखर न जायें ये चाहत की हसीन घड़ियाँ 
मेरे हमदम इन्हें अब अपनी एक शाम दे दो

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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

चाँद का चाँद से वस्ल है या चाँदनी ही घुल गई है फिजाओं में
नूर की बूँदों को पहनकर तुम निकले हो यूँ इन महकती हवाओं में 
रौनकें महफिल की जवाँ हैं गुलों की चादरें बिछ गई हैं राहों में 
यूँ तो देखे थे अब तक कई हसीन मन्ज़र 
मगर किसी में वो बात नहीं 
जो बात है तुम्हारी दिलकश अदाओं में

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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

है इन्तजार फक़त उस लम्हे का मेरी हसरत को,
अपने सीने से लगा के मुकम्मल कर दो मेरी चाहत को ।

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Rashmi Vibha Tripathi 'Rishu'

दुनियाँ की भीड़ में तनहा दे दिल ये मेरे तुम्हारे
नींद से परे जागती आँखों के ख्वाबों में उलझे रहे 
न मैं तुम्हें ढूँढ सकी न तुम जान सके मुझे 
मुकम्मल दुआ हुई मेरी जो तुम मिल गए मुझे 
मेरे दिल के आशियाने में आके जबसे तुम ठहर गये 
तो जैसे हजारों जुगनू एक साथ चमक से उठे
तुम्हारी मुहब्बत ने जब दस्तक दी मेरे दिल पे
तो तुम्हारी खुशबुओं के सैकड़ों गुल महक उठे
तुम्हारे प्यार से मैंने इस दिल के घर को रंग दिया 
और इस पत्थर से मकां को एक मुकम्मल जहाँ बना लिया मुकम्मल जहाँ

मुकम्मल जहाँ

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