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navneet70605313
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NAVNEET 7060

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NAVNEET 7060

Nojoto होली

आयो फागुन उड़त गुलाल राधे रंग डारन दे मोहे।
राधे रंग डारन दे मोहे तोपे रंग डारन दे मोहे।।

राधा संग खेलू होरी, चाहे करन पड़े बरजोरी।
ऐसे जान न दूँगा आज राधे रंग डारन दे मोहे।।

तोहे अपने रंग रंगूंगा, रंग चढ़ने न दूजा दूँगा।
सर से पै तक करदू लाल राधे रंग डारन दे मोहे।।

© नवनीत श्रीवास्तव

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NAVNEET 7060

रात भर ख्वाब आँखों में पलता रहा,
वो भी जगती रही मै भी जगता रहा,

सहमे होंठो से कहने को बाते कई,
वो मचलती रही मै मचलता रहा।

ज़िन्दगी की यही उम्र नाज़ुक बहुत,
वो सम्भलती रही मैं सम्भलता रहा।

एक अरसे से नवनीत दीदार को,
वो तड़पती रही मैं तड़पता रहा।

नवनीत श्रीवास्तव

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NAVNEET 7060

#PoetryUnplugged
my poetry for poetry contest
Navneet
bareilly

#poetryunplugged my poetry for poetry contest Navneet bareilly

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NAVNEET 7060

मिट रही हरियाली, इस धरा से हमारी, वृक्षारोपण की नई चेतना जगाये हम।

वृक्ष है धरा के वस्त्र, घट रहे प्रतिवर्ष,
 हरे-भरे वृक्षों से इस धरा को सजाये हम। 
 
वृक्ष जो कटेंगे रोज़, होगा फिर एक रोज़, प्राण वायु को भी कहीं तरस न जाये हम।

दाह संस्कार होगा, एक वृक्ष जो जलेगा,
 कम से कम एक वही वृक्ष तो लगाये हम।

नवनीत श्रीवास्तव

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NAVNEET 7060

Bharat Ratna 

बेवजह सारे रिश्ते निभाते गए,
शत्रु को भी गले से लगाते गए,
राह में जितने पत्थर मिले थे मुझे,
चलने का वो सलीका सिखाते गए।
नवनीत श्रीवास्तव

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NAVNEET 7060

कितना हसीं समां था सुहानी सी रात थी,

हम दोनों थे करीब मोहब्बत की बात थी।

नवनीत श्रीवास्तव

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NAVNEET 7060

सभी के होंठो पर ठहरी तेरी-मेरी कहानी है,
तेरे वादे तेरी बाते हमे भी आज़मानी है,
भले दुनिया पहाड़ो सी मिलेंगे फिर भी हम दोनों,
जो मैं सागर की लहरें हूँ तो तू नदियाँ का पानी है।
रचनाकार:- नवनीत श्रीवास्तव

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NAVNEET 7060

खुद को ढककर दोष अब दूजे में ढूंढा जाता है,
अच्छे-बुरे का कौन-किसको ज्ञान अब समझाता है,
बच्चो की गलती पे अंधे बनते जब घर के बड़े, 
घर नही रहता है वो रण युद्ध का बन जाता है।
नवनीत श्रीवास्तव

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NAVNEET 7060

बहुत हुई मनमानी अपनी मर्यादा मत पार करो,
सेवा में जो लगे तुम्हारी उनपर तो मत वार करो,
कलयुग के है शिशुपाल सौ बार ये गलती करते है,
चक्र सुदर्शन धारो प्रभु इन दुष्टो का संघार करो।रचनाकार:- नवनीत श्रीवास्तव

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NAVNEET 7060

मस्ज़िद में छुपकर बैठे जो गद्दारो ये ख्याल रहे,
संकट के कठिन समय में गलत क्यों मंशा पाल रहे,

लोग धर्म के नाम पे जो ये काम जिहादी का करते,
जान बूझकर मौत के मुँह में हिन्दोस्तां को डाल रहे।

नवनीत श्रीवास्तव

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