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पूर्वार्थ

पूर्वाथ

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पूर्वार्थ

White शादीशुदा पुरुष का संघर्ष

शादीशुदा स्त्री की पीड़ा पर,सैकड़ों कविताएं गढ़ी गईं,
कहानियों में बसी उसकी वेदना,हर बार सम्मान से पढ़ी गईं।

पर शादीशुदा पुरुष का क्या?क्या उसके दुख कोई सुनता है?
जो हंसता है सबके सामने,क्या भीतर से कभी खिलता है?

वो घर का स्तंभ है, छत है, दीवार है,उसके कांधों पर हर जिम्मेदारी का भार है।
सुबह से रात तक भागता दौड़ता,सपनों से पहले, अपनों का ख्याल करता।

हर सुबह उठकर वो काम पर जाता,दबाव के पहाड़ तले, खुद को छिपाता।
दफ्तर की राजनीति, बॉस की फटकार,सब सहकर भी लाता है घर का त्योहार।

घर में जो रोटी की खुशबू आती है,वो उसके पसीने की गंध से मिलती है।
बच्चों की मुस्कान, पत्नी की खुशी,उसकी दुनिया बस इन्हीं में सिमटती है।

पर क्या कभी किसी ने देखा है,उसकी आंखों में छिपा दर्द?
उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें,कहीं धुंधले पड़ गए हर कदम।

वो भी थकता है, पर कह नहीं पाता,दर्द से जूझता है, पर रो नहीं पाता।
उसकी मेहनत को ना कोई समझता,उसके संघर्ष को बस समाज अनदेखा करता।

जब पत्नी थकती है, दुनिया उसे सहलाती,जब पति थकता है, चुप्पी उसे खा जाती।
कहां है वो कंधा, जिस पर वो सिर टिकाए?कहां है वो सुकून, जो उसका मन बहलाए?

कभी-कभी अपमान की आंधियां आती हैं,घर के भीतर भी ताने सुनाई जाती हैं।
"तुम तो बस कमाने की मशीन हो,क्या और कोई संवेदना तुम्हारे पास नहीं हो?"

आरोप, अपेक्षा और तुलना के बाण,हर दिन उसकी आत्मा पर चलते हैं तीर समान।
कभी खुद को समझा नहीं पाता,कभी सबकी उम्मीदों का भार सह जाता।

पर ये समाज उसे हीरो नहीं मानता,ना उसकी तकलीफ पर कोई गीत गाता।
जो देता है सबको सपनों का सहारा,वो खुद अकेला क्यों रह जाता है बेचारा?

वो भी इंसान है, पत्थर नहीं,उसके भी अरमान हैं, कोई समझ नहीं।
उसकी चुप्पी में एक गहरा समंदर है,उसका हर दिन, एक नया संघर्ष है।

तो चलो, अब उसकी भी कहानी लिखी जाए,उसकी वेदना को भी स्वर दिए जाएं।
शादीशुदा पुरुष को भी सम्मान मिले,उसकी मेहनत और संघर्ष को सराहा जाए।

वो भी जीता है, वो भी सहता है,उसकी भी कहानी अब कही जाए।
क्योंकि वो भी समाज का आधार है,उसके बिना हर परिवार अधूरा संसार है।

©पूर्वार्थ #आदमी
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पूर्वार्थ

White 

कहा था न, एक रोज सब आम हो जाता है! 
सारी ख्वाइशें सारा प्रेम. सारी यादें एक रोज संदूक में सदैव के लिए बंद हो जाती है! 
और जीवन जीने के लिए बचता है सिर्फ खाली दिन, सुनी रातें, खामोश लफ्ज़ और बेबस शरीर, काश उस रोज तुमने मेरे इस अनुभव को स्वीकारा होता, तो आज एक और शरीर जीवित लाश न होता, मैंने तुम्हें और तुमने मुझे इतनी शिद्दत से न खोया होता! 
मानता हूं प्रेम परिभाषित नहीं है, लेकिन समर्पण से किसी को भी जीता जा सकता है!

- बेकसूर लेखक

©पूर्वार्थ #love_shayari
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पूर्वार्थ

White “मन में चल रही बात "


जब हम किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में 
आते है जिसके बातों से , उसके कला से प्रभावित होते है 
तब वो व्यक्ति हमारे मस्तिष्क में हमारे हृदय में एक स्थान बना लेता है 
इसका अर्थ ये नहीं कि हमें उनसे किसी भी प्रेम की अनुभूति होती है तभी ऐसा हो ।

कभी कभी हमारे जिंदगी के रास्ते ऐसे व्यक्ति आ ही जाते है जिनसे हम प्रभावित होते है बिना किसी फीलिंग्स के, उनसे हमारा कोई रिश्ता नहीं होता ।

और जब ऐसे व्यक्ति के बातों से हमें ये एहसास हो कि वो परेशान है दुःखी है तो हम अनजाने ही सही उसके दुःख को अनुभव करने लगते है और कोशिश करते है 
कि वो व्यक्ति जिससे हम प्रभावित है वो मुस्कुराए या ऐसा कुछ करने की कोशिश करते है जिससे उसकी परेशानी का कम हो जाए ।
ऐसे में उस व्यक्ति को लगता है कि हम उसका मजाक उड़ा रहे या उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं कर रहे और वो व्यक्ति और अधिक व्याकुल हो जाता है ।

तो कुछ पंक्ति है कि:
“ बेहतर है  रहे तुमसे दूरियां ,
हम हंसाते है तुम्हें तुम्हारे भीगी पलकों को देखकर, 
और तुम समझते हो हम भी तुम्हारा मजाक उड़ाते है गैर समझकर”

©पूर्वार्थ #love_shayari
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पूर्वार्थ

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset Hey...!!

Listen my dear...!!

दीप होना भाग्य की बात है पर अंधकार से युद्ध तो कर्म हुआ ना..? एक दीप भी 
जलता है तो उससे दूसरा दीप, दूसरे से तीसरा बस यूं ही दीपमाला तैयार हो जाती है...!
दीप रात भर अंधकार से युद्धरत रह सुबह सूरज के हाथ अपना दायित्व सौंप विश्राम ले लेते हैं, 
और दिन भर कर्तव्य निभा सूरज शाम को दीपों को जिम्मेदारी सौंप निश्चिन्त हो लेता है...!
देखा जाए तो अंधेरे कभी हावी नहीं हो पाते, रात भर एक नन्हा दीया उसके राज को चुनौती
 देता रहता है तो दिन भर सूरज उसे कहीं किसी कोने में दुबके रहने पर विवश कर देता है...!
जीवन में भी अंधेरे बहुत देर तक हावी नहीं रह पाते, मन के कोने में आशा का एक 
दीप भी जलता रहे तो अंधेरे देर सवेर परास्त हो ही जाते हैं..!
I think  कि ईश्वर की लिखी विराट पटकथा में हम सभी की भूमिकायें तय हैं, हमें केवल
 उतना अंश पता चलता है जितना हमें दिख रहा होता है, पर हमारी भूमिका उससे कहीं 
अधिक लंबी हो सकती हैं, ईश्वर हर समय हमें आगे आने वाले 
दायित्वों और चुनौतियों के लिये तैयार करता रहता है...!
इन दिनों लगातार ऐसे व्यक्तियों से मिलने या जानने का अवसर मिल रहा है जिनका 
जीवन संघर्ष और जिजीविषा का जीवंत उदाहरण है...!
ईश्वर जाने क्या दायित्व सौंपने जा रहा है...!

©पूर्वार्थ #SunSet
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पूर्वार्थ

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset यूं तो मौसम हर दिन सुहाना होता है
मगर मकर संक्रांति के
मौसम की तो बात ही निराली है।

रात रात भर जागकर
पतंगो को तैयार करना।
कड़ाके की ठंड में
सुबह जल्दी उठना।

छत पर जाकर आसमान की तरफ देखना।
शोर शराबे से मौहल्ले वालों को जगाना।
ये जगाना नहीं, बल्कि सबको बताना
कि मे सबसे पहले उठ गया।

सुबह ओस की बूँदो में
पतंग उड़ाना जो कभी नहीं उड़ती थी
फिर रुक कर इंतज़ार करना
मौसम साफ होने का।

आसपास के दोस्तो को
मांझे के बारे में पूछना
सब याद है आज भी।

यू दिन भर पतंग उड़ाना,
शोर करना,
गानों की मस्ती पे झूमना।

चारों और रंग बिरंगा आसमान
पतंग उड़ाने से ज्यादा
पतंग लूटने का मजा।

कटी पतंग को देख उसकी डोर को ढुंढना

और खाने की क्या बात करे
कितना कुछ दिन भर

पतंग के पेच के साथ साथ
आंखों के पेच लड़ाना
किसी लड़की को देख
उसकी और पतंग झुकाना

शाम होते ही जगमगाता आसमान,
रोशनी से सजा पतंग
हाथों मे लेकर छोड़ना।

कितनी उमंग और उल्लास के साथ
मकर संक्रांति का पर्व मनाना

कितना मजा आता है

©पूर्वार्थ #makarsakranti
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पूर्वार्थ

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset मकर संक्रांति की पावन बेला आई

मंदिर में शंख नाद की गूँज लहराई
खुशी की लाली आसमान पर छाई
सूर्य के आँगन में बजने लगी शहनाई
दक्षिण से उत्तर की ओर
सूरज ने अपनी राह घुमा कर
शुभ घड़ी की शुरुआत कराई

मकर संक्रांति की पावन बेला आई

प्रकृति में बदलाव लाई
शीत ऋतु की मद्धम चाल कर के
दिन लम्बे और छोटी रातें लाई
गुनगुनी धूप मन को भाई
रंग बिरंगे फूलों से बगिया मुस्कुराई
किसानों के चेहरे पर खुशी छाई
अन्नपूर्णा स्वयं घर उनके आई

मकर संक्रांति की पावन बेला आई

सपनों के मांजे उंगलियों पर लपेटे
मन में उम्मीदों के परिंदे उड़ाती आई
विश्वास की डोर से बंधी हुई
उल्लास की पतंगे आसमान में लहराईं
गुड़ की मिठास तिल में समा कर
जीवन में ख़ुशियों की बहार लाई

मकर संक्रांति की पावन बेला आई

©पूर्वार्थ #मकर_सक्रांति_की_बहुत_बहुत_शुभकामनायें
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पूर्वार्थ

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset Hey....!!

Listen ...!!

जो शख्स आपको बेइंतहा चाहता है तुमसे तुम्हारे लिए 
लड़ता है, उसे बस तुम्हारी need है , लेकिन तुम्हारी नज़र
 में उसकी कोई importance नहीं है...!
मान लो unfortunately तुम्हें मनाते मनाते वो शख्स अगर हार गया तो क्या करोगे...?
अगर वो सच में हार गया आपको समझाते हुए रिश्ता बचाते हुए , 
एक हद भी तो होती है , इंसान की एक limit होती है..!
कोई कब तक रोक लेगा आपको , कब तक efforts कर लेगा आपके लिए..?
अब वो इंसान अगर हार गया तो वो छोड़ देगा आपको  , आप जैसा चाहते थे वैसा ही हो रहा है ...!
तो आप ये मत समझ लेना कि वो हार गया है और आप जीत गए हो..?
नहीं....!!
अभी दुनिया आयेगी आपको यूज़ करने और आप हो जाओगे, 
वो इंसान रिश्ता ही नहीं आपको भी बचा रहा था , वो बेहतर 
जानता है कि ये समाज क्या है और इस समाज के लोग क्या है...?
प्यार करने वाले दोबारा नहीं मिलते मेरी जान, 
उस इंसान के दिल में आपके लिए कोई पाप नहीं था...!
मेरी एक बात लिख कर लो कि जिस दिन आपको regret होगा
 ना कि आप कितना बड़ा stap उठा चुके हो , उस दिन बहुत देर हो चुकी होगी....!

©पूर्वार्थ #SunSet
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पूर्वार्थ

White किसी बच्चे के साथ खेलने का
किसी रोते को हँसा देने का
जिससे लगे गुदगुदी खूब
उसे हल्का सा छू लेने का
ऐंठ कर बोलने वाली
लड़की के मुंह लगने का
मजा ही अलग है !
दादा जी को बिन बात
चिटकाने का
दादी के सामने
मॉर्डन बनने का
चाचा जी से
बेवजह बहस करने का
भाभी से बात बात पे
मजाक करने का
मजा ही अलग है !
सर से झूठ बोलने का
होमवर्क न पूरा करने के
हजार बहाने बनाने का
जो आता हो रोज
अटेंडेंस हो जिसकी 100%
क्लास उससे बंक कराने का
मजा ही अलग है !
एक रुपये वाली बर्फ
चूस-चूस कर
दो रुपए वाले पारले बिस्किट को
पानी में डुबो-डुबो कर खाने का
मजा ही अलग है !
अपनी गर्लफ्रेंड को
बेवजह परेशान करने का
वैसे ही इधर-उधर छूने का
संग बैठकर उसके
और किसी को ताड़ने का
मजा ही अलग है !
किसी की कविता पढ़ने का
किसी की ग़ज़ल सुनने का
किसी को कहानी सुनाने का
और
मेरी कविता बेवजह पढ़ने का
मजा ही अलग है !

©पूर्वार्थ #good_night
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पूर्वार्थ

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset कितने बार भी दिल टूटे लेकिन लगाना नहीं छोड़ना चाहिए। कितनी बार भी हार 
जाओ लड़ना नहीं छोड़ना  चाहिए। कितने भी बुरे लोग मिलें
, भरोसे की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।

ये प्रेम, ये जिद, ये भरोसे की उम्मीद .. इसी में तो जीवन है. उम्मीद का मर जाना ही मृत्यु है। 
उम्मीद स्वयं जीवन है। कुछ अच्छा होने की उम्मीद ही सृजन का बीज है, सूत्र है
. इसके बिना अच्छा घटित होने की परिस्थिति कैसे बनेगी ? अच्छाई एकांक में
 सर्वाइव कैसे करेंगी। इसके बिना तो जीवन मरुस्थल है। उम्मीद ही तरुवर है।

बीमारियां, चोटें, घाव, धोखा, असफलता (प्रेम की हो या भौतिक जीवन की) ये
 बस एक पड़ाव हैं, अर्थविराम हैं ... कहानी यहां खत्म नहीं होती.. ये कहानी 
का अंत नहीं है. तो कभी कभी गुनगुना लिया करो कि

ऊपर वाला जब साथी है,
जीने की उमर बाकी है।

#कालचक्र

©पूर्वार्थ #SunSet
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पूर्वार्थ

White आदमी लगभग सत्तर की उम्र में है
इतना कमज़ोर कि चालीस किलो हड्डी समेत मुश्किल से होगा
अभी पजामे में पेशाब निकल गया
सुबह ही सारे बिस्तर धोकर लगाए थे घरवाली ने
बिना झुंझलाए वह बोली
तुम्हारी भी कहाँ शर्म गई
मेरी तरफ़ तो देखते, कैसे धोऊँगी
अब क्या काम होता है मुझसे?
डिब्बे में कर लेते।

मैंने डिब्बे में ही किया था
पता नहीं कब कपड़े गीले हुए
आगे से नहीं करूँगा
वह हँसकर बोला।

बिना किसी ग्लानि के
वह बच्चे की तरह उसके कपड़े बदल रही थी
बाल ठीक करती
बनियान की बद्धी ठीक करती
बार-बार लाड से भर रही थी।

कुछ खाओगे
रोटी बना दूँ, बाजरा आ गया है?
घरवाली ने पूछा
चून है
अब कहाँ से बाजरा लाओगी
कहाँ पिसवाओगी, यूँ करो रहने दो।
तुम्हें क्या मतलब है
मैं कहीं से भी लाऊँ, पर लाऊँगी।

वह बैठक से बाहर निकली
साड़ी से आँसु पोंछे
साठ की उम्र में है
फिर भी नवयौवना  सी दौड़ रही है
कभी चीकू काटती
कभी चम्मच चम्मच जूस पिलाती
उसका मुँह पोंछती
अपने मुँह में सारी रूलाई ठूँसकर हँस-हँस कहती है
अभी तो बच्चे कमाने लगे हैं
सारी उम्र कमाने में लगे रहे
अब पोता-पोती खिलाया करेंगे फ़ुरसत में
सुख के दिन तो अभी आए हैं।

बीमार आदमी आँखों में चमक भर कहता है
ठीक हुआ तो ख़ाली नहीं बैठूँगा
बच्चों के दो वक्त के दूध जितना तो कमा ही लूँगा
फिर बुझा हुआ सा कहता है
मर जाऊँ तो सबके पास फ़ोन मत करना, देर हो जाएगी
सबको भागना पड़ेगा
अब सब रिश्तेदार मिल तो गए ही।

अब जाना तय है
ये बात पता होना भी जीवन में कितनी बड़ी बात है
जाते हुए आदमी की गर्म छाती  से हम लिपट रो सकते हैं
सब बातें कह सकते हैं
उनका क्या जो बिन कहे चले गए ?

©पूर्वार्थ #good_night
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