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laxman7877swami8846
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Laxman 7877 Swami

राजकीय माध्यमिक विद्यालय, डेलवां(श्रीडूंगरगढ़, बीकानेर)

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Laxman 7877 Swami

कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई आपको 

हिन्दी गीत - जन्म लिए कन्हाई |

रही काली काली रात अंधियारी |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |
उमड़ घुमड़ खूब बादल गरजे |
चमक चमक चम बिजली चमके |
आए गोद कान्हा देवकी माई |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |

करने कंस कसाई मामा मर्दन |
आठवीं पुत्र दिये बासुदेव दर्सन |
काली रात घनेरी बढ़ी आई |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |

बचाने कोप कंस अपने ललना |
चले बासुदेव रख माथे पलना |
जल  यमुना गले बढ़ आई |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |

बन छतरी नाग बालक बरखा बचावे |
कान्हा छुई चरण यमुना जल घटावे |
छोड़ लाल अपना यसोदा कन्या उठाई |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |

होत  भोर बाजे नन्द घर बजना |
जन्म लिए श्याम सुंदर ललना |
नाचे ग्वाल बाल गोकुला गाई |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |

पापी मामा कंस दुराचारी मारा |
भय भूख दुख सब जन तारा |
संग राधा गोपियाँ रास रचाई |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |

रचा महाभारत ले धनुधारी बीरा |
किया नास पापी अधर्मी धरी धीरा |
धर्म अधर्म पांडव कौरव हुई लड़ाई |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |

माथे मोर मुकुट मुख मुरली साजे |
अंग पीतांबर नित्य मनमोहिनी बाजे |
हरो हर पीड़ा किशन कन्हाई |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |

खिले बृंदावन हर कली कली |
छाए बहार तेरी नजर जिधर चली |
करो कृपा हे श्री बाँके बिहारी |
जेलखाना जब जन्म लिए कन्हाई |
जय श्री कृष्ण

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Laxman 7877 Swami

सोच भी आज सोच में पड़ी है ,
क्या लिखूँ बड़ी मुश्किल घड़ी है,,
बेला अवशान की लग रहा मुझे,
धीरे धीरे नजदीक आ रही है,
मौत सपनो को धमका रही है
उम्मीद की उलझी पहेली,
सुलझती ही नहीं मौला मेरे,
मकड़ जाल सी उलझती जा रही है,
लग रहा है कलम गीत अंतिम लिखा रही है।

व्यर्थ थी चिंता क्या खोया ,
क्या क्या मैंने पाया है,
गिद्धों की राज्यसभा में मैंने,
मान हंसों जैसा पाया है,
इसको छोड़ा उसको पकड़ा,
खेल कितने रच डाले हैं,
लाशों को उस ताज महल में,
अरमान हमने भी अपने गाड़े हैं,
लेकिन हिसाब हर किस्से का करा रही है,
लग रहा है कलम गीत अंतिम लिखा रही।

नहीं रहूँगा जब अभिषेक सरल मैं,
आँगन के सुने विस्वासों में,
तब दीप जलेगा कविता का मेरा,
दिल के खंडित एहसासों में,
टूटी फूटी मात्रा लेकर ,
ग़ज़ल जमाना गायेगा ,
मेरे कल ना रहने पर भी ,
मेरे गीतों में असुद्ध छन्द कोई मुस्काएगा,
आने बाली पीढ़ी ये मुझको छुपा रही है,
लग रहा है कलम गीत अंतिम लिखा रही है।

सुनो मेरे ना रहने पर आँसू ना बहाना कोई,
आये जो याद मेरी कभी तो,
तुम नई कविता राचाना कोई,
परेसान मत होना अब मैं दिखाई नहीं दूंगा,
रहूँगा यादों में पर कभी सुनाई नहीं दूंगा,
पर वादा करो मुझे भूल ना जाना,
हो बारिश कितनी पर ऑंखे ना बहाना,
मुलाकात अंतिम मुझसे मेरी करा रही है,
लग रहा है कलम गीत अंतिम लिखा रही है।
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Laxman 7877 Swami

सोच भी आज सोच में पड़ी है ,
क्या लिखूँ बड़ी मुश्किल घड़ी है,,
बेला अवशान की लग रहा मुझे,
धीरे धीरे नजदीक आ रही है,
मौत सपनो को धमका रही है
उम्मीद की उलझी पहेली,
सुलझती ही नहीं मौला मेरे,
मकड़ जाल सी उलझती जा रही है,
लग रहा है कलम गीत अंतिम लिखा रही है।

व्यर्थ थी चिंता क्या खोया ,
क्या क्या मैंने पाया है,
गिद्धों की राज्यसभा में मैंने,
मान हंसों जैसा पाया है,
इसको छोड़ा उसको पकड़ा,
खेल कितने रच डाले हैं,
लाशों को उस ताज महल में,
अरमान हमने भी अपने गाड़े हैं,
लेकिन हिसाब हर किस्से का करा रही है,
लग रहा है कलम गीत अंतिम लिखा रही।

नहीं रहूँगा जब अभिषेक सरल मैं,
आँगन के सुने विस्वासों में,
तब दीप जलेगा कविता का मेरा,
दिल के खंडित एहसासों में,
टूटी फूटी मात्रा लेकर ,
ग़ज़ल जमाना गायेगा ,
मेरे कल ना रहने पर भी ,
मेरे गीतों में असुद्ध छन्द कोई मुस्काएगा,
आने बाली पीढ़ी ये मुझको छुपा रही है,
लग रहा है कलम गीत अंतिम लिखा रही है।

सुनो मेरे ना रहने पर आँसू ना बहाना कोई,
आये जो याद मेरी कभी तो,
तुम नई कविता राचाना कोई,
परेसान मत होना अब मैं दिखाई नहीं दूंगा,
रहूँगा यादों में पर कभी सुनाई नहीं दूंगा,
पर वादा करो मुझे भूल ना जाना,
हो बारिश कितनी पर ऑंखे ना बहाना,
मुलाकात अंतिम मुझसे मेरी करा रही है,
लग रहा है कलम गीत अंतिम लिखा रही है।
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Laxman 7877 Swami

अधरों पर मुरली वाले।
फोड़ने को मटकी वाले।
जनम गए हैं जनम गए हैं ।
देखो माँ यशोदा के लाले।
रास रचाये गोपियाँ के संग।
गाय चराये इस वन उस वन।
मटकी फोड़े गोपियों के ये।
चोर कहाये हैं ये माखन।
सर्वनास को कंश के आये।
वशुदेव गोकुल पहुंचाए।
जन्म लिया मा देवकी को।
पर यशोदा के लाल कहाए।
अवतार हैं विष्णु का ये।।
पैदा हो कर कृष्ण कहाए।
बढ़ा पाप था द्वापर में जब।
पातकियों का संहार कराए।

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Laxman 7877 Swami

कैसे कोई कविता या कहानी को मैं लिखूंगा।।

कैसे माता तेरी जिंदगानी को मैं लिखूंगा।।
कैसे कैसे कष्ट सहके तूने हमको पाला है,
बोल कैसे तेरी कुर्बानी को मैं लिखूंगा।।

माँ कि आँखों में बसी ममता कि एक मूरत है।।
माँ ही बन जाती हर घडी का शुभ मुहूर्त है।।
माँ के बिन जग में नहीं कोई मान पाता है,
इसलिए सबको माँ के प्यार की जरुरत है।।

माँ जो रूठी तो ये दुनियां भी रूठ जाती है।।
माँ के चरणों की ये जन्नत भी छूट जाती है।।
हर ख़ुशी मिलती है जीवन में माँ के रहने से,
वर्ना तो जिन्दगी एक ठूठ सी हो जाती है।

माँ से मिलता सभी को यहाँ प्यार है।।
माँ में ही तो बसा भक्ति का सार है।।
माँ के बिन है है अधूरी मेरी जिन्दगी,
माँ के चरणों से जन्मा ये संसार है।।

माँ जो रूठी तो दुनिया भी ठुकराएगी।।
माँ के जाने से सृष्टि भी रुक जाएगी।।
देते हो जो उसे तुम खुशी के दो पल,
तो जिन्दगी माँ के हाथों सवंर जाएगी।।

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Laxman 7877 Swami

कलम कागजों पर चल कर,
      करती है रोज कमाल,,
खेत सूरमा रण में जाकर,
        करते हैं खूब धमाल,
तलवारों की रण कौशलता,
     जौहर की बनी मिशाल,
हाथ उठाकर थामे रहते हैं,
   ज्यों सैनिक रोज मशाल,
आजादी से जश्न मनाने में,,
       रहते हैं नित मशगूल,,
सीमाओं में डटे हुए हैं,
 खिलते बागों में ज्यों फूल,,
फूल बागका मुरझा भी जाता,
 सैनिक साहस न मुरझाए,,
आँखो में एक सपना पलता,
    वह हर दम ही मुस्काए,
कुसुम सुगंधित कानन तक,
वीर सुखद चमन महकाए,,
कलम उसासी कवियों की,
दे देकर उनका मान बढ़ाए,
अस्त्र शस्त्र सा पौरुष देती,
गाथा गाकर नित यश पाए,
राष्ट्र के सच्चे दोनों प्रहरी,
  दोनों ही लड़ें और लड़ाए,
मातृभूमि हित अर्पित जीवन,
 सच्चे राष्ट्र भक्त कहलाएं,,
यही तमन्ना........ 
अपने दिल में अरमान जगाएं,
मातृभूमि हित काम आ सकें,
जीवन धन धन हो जाएll

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Laxman 7877 Swami

मन पनघट हो जाता है।
घट-घट मन हो जाता है।

जग पावन बन जाता है।
जब ह्र्दयभाव समाता है।

मोहे गोकुल गाँव बुलाता है।
मन मथुरा धाम पहुंचाता है।

यमुना की धारा बहती है
लीलाधर रास रचाता है।।

तन मन चरण शरण होकर
जीवन वृंदावन बन जाता है।।
.....

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Laxman 7877 Swami

#OpenPoetry जो बीत गई सो बात गई 

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
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Laxman 7877 Swami

तलवार का तेज
  

चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
रखता था भूतल पानी को।
राणा प्रताप सिर काट काट,
करता था सफल जवानी को॥

कलकल बहती थी रणगंगा,
अरिदल को डूब नहाने को।
तलवार वीर की नाव बनी,
चटपट उस पार लगाने को॥

वैरी दल को ललकार गिरी,
वह नागिन सी फुफकार गिरी।
था शोर मौत से बचो बचो,
तलवार गिरी तलवार गिरी॥

पैदल, हयदल, गजदल में,
छप छप करती वह निकल गई।
क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर,
देखो चम-चम वह निकल गई॥

क्षण इधर गई क्षण उधर गई,
क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई।
था प्रलय चमकती जिधर गई,
क्षण शोर हो गया किधर गई॥

लहराती थी सिर काट काट,
बलखाती थी भू पाट पाट।
बिखराती अवयव बाट बाट,
तनती थी लोहू चाट चाट॥

क्षण भीषण हलचल मचा मचा,
राणा कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने को यह,
रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी॥
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Laxman 7877 Swami

पलकों में नए ख्बाब सजाती है जिंदगी 
उम्मीद के चिराग जलाती है जिंदगी 

दुःख दर्द मुसीबत में उदासी के दौर में 
हिम्मत की नईं राह दिखाती है जिंदगी 

पतझर की झुर्रियों में बहारों का लेप कर 
हर दर्द को रंगीन बनाती है जिंदगी 

बच्चों की तरफ रूठती रोती कभी कभी 
फिर झूमती गाती है हँसाती है जिंदगी

सूरज की तरफ भोर सुहानी संवरती
चन्दा की तरह रात सजाती है जिंदगी

तुलसी कभी कबीर महावीर की तरह 
इंसानियत का पाठ पढ़ाती है जिंदगी 
रिश्तों को  प्रेम के धागे से बाँध कर
दिल से दिलों का मेल कराती है जिंदगी 

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