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amodgupta1297
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amod gupta

सब नसीब का खेल है

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amod gupta

पाबंद करती है पैसा परदेश रहने को,
         अब गाँव की हवा कहाँ मिलती है ...
ताउम्र मैं बीमार न रहूँ  ठीक हो जाऊं
         भला अब ऐसी दवा कहाँ मिलती है ... Amod gupta

Amod gupta

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amod gupta

#OpenPoetry मेरे हर हाल पे तंज़ कसने वालो,

बेसक तुम्हे इश्क़ है मुझसे मेरे हर हाल पे तंज़ कसने वालो.......

मेरे हर हाल पे तंज़ कसने वालो....... #OpenPoetry

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amod gupta

मैं नदारद हूँ शाम-सा , इस शहर में

तू सहर-सी है इसी शहर में.............!

जिंदगी की कश्मकश से बदलती मेरे चेहरे की रंगत,

ताज्जुब है तू सहर-सी है,किसी पहर में ।

-- अमोद गुप्ता मैं नदारद हूँ शाम-सा , इस शहर में

तू सहर-सी है इसी शहर में.............!

जिंदगी की कश्मकश से बदलती मेरे चेहरे की रंगत,

ताज्जुब है तू सहर-सी है,किसी पहर में ।

मैं नदारद हूँ शाम-सा , इस शहर में तू सहर-सी है इसी शहर में.............! जिंदगी की कश्मकश से बदलती मेरे चेहरे की रंगत, ताज्जुब है तू सहर-सी है,किसी पहर में ।

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amod gupta

ताना ज़माने का देखो सुधर जाने को कहते है,
मासूमियत उम्र का देखो बिगड़ जाने को कहते है !

परेशां है कुछ लोग मेरे बचपना से,और
बुजुर्ग अपना हमसफ़र हो जाने को कहते है !

गाँव जैसा खिलकर महकना चाहता हूँ ,
भौतिकतावाद मुझे शहर हो जाने को कहते है !

दोस्त परेशां है तो मैं भी पड़ाव में हूँ ,
अगतिशील जमाना मुझे सफर हो जाने को कहते है !

कामयाबी पुकारती ''अमोद'',ख़ुशी की लकीर बनो
माँ के चेहरे पर , उभर जाने को कहते है ! चंद सेर हक़ीक़त का    @अमोद गुप्ता

चंद सेर हक़ीक़त का @अमोद गुप्ता

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amod gupta

ताना ज़माने का देखो सुधर जाने को कहते है,
मासूमियत उम्र का देखो बिगड़ जाने को कहते है !

परेशां है कुछ लोग मेरे बचपना से,और
बुजुर्ग अपना हमसफ़र हो जाने को कहते है !

गाँव जैसा खिलकर महकना चाहता हूँ ,
भौतिकतावाद मुझे शहर हो जाने को कहते है !

दोस्त परेशां है तो मैं भी पड़ाव में हूँ ,
अगतिशील जमाना मुझे सफर हो जाने को कहते है !

कामयाबी पुकारती ''अमोद'',ख़ुशी की लकीर बनो
माँ के चेहरे पर , उभर जाने को कहते है ! एक ग़ज़ल ये भी

एक ग़ज़ल ये भी

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amod gupta

 @amod

@amod

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amod gupta

हम चले है ज़िन्दगी के सफर को लेकर अगले मुकाम पे ....

जब तुम्हे इश्क़ हो जाये तो मुझे इक्तला कर देना... @Amod gupta

@Amod gupta

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amod gupta

मैं मज़ाक बहुत उड़ाता हूँ दूसरे का,

क्या करूँ ज़िन्दगी के कुसंगत ने बिगाड़ रक्खा है मुझे

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amod gupta

कुछ रंग उधार लाये है ऐ ज़िंदगी तेरे ख़ातिर

अफ़सोस तुझपे आंसू की बुँदे बहुत है, चढ़ेंगे नहीं ज़िन्दगी क्या क्या करूँ मैं ...?

ज़िन्दगी क्या क्या करूँ मैं ...?

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amod gupta

हिदायत और एहतियात की तो सब सुनते है ................

इश्क और मौत को भला कौन समझाए .... .!

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