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"न जाने क्यों बो सितारों को देखकर सहम जाती है,
दुबक जाती है,बिस्तर में जाकर,
बस सिसकियों की आवाज आती है,
भींच लेती है मुट्ठियां,नोच लेती है अपने ही केशों को,
दहकने लगती हैं, आंखें अंगार की तरह,
न जाने क्यों उसे सितारों से सजी रात नहीं भाती है,
सोचने लग जाती है,उस भयानक रात के बारे में,
चांद सितारों से भरा आसमां था,खो जाती है उसी नजारे में,
संगमरमरी वादियों में सखियों संग घूम रही थी,
देख कर आसमां को झूम रही थी,
अचानक,,अचानक इक चीख निकल जाती है,
कोई भेड़िया झाड़ियों में छुपा बैठा था,
इक पल में,सपने तार तार,उजड़ गया संसार,
हो गया चांद भी दागदार,तब से उसे ये रात नहीं भाती है,"