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pankajsingh8391
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Pankaj Singh

अपनी छवि का ध्यान रखें क्योंकि इसकी आयु आपकी आयु से कहीं ज्यादा होती है...

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Pankaj Singh

ये नदी  जा के  सागर से  मिल जायेगी,
डाल की नर्म कलियां भी खिल जायेगी।
है  प्रकृति  का  नियम  ना  इसे  तोड़ना,
तोड़  दोगे तो  बुनियाद  हिल  जायेगी।।

©Pankaj Singh #SunSet
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Pankaj Singh

कंधों पर हल रखने वालों,उठो नया कुछ हल ढूंढो।
दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।

स्वेद कणों से सींच के तुमने,
हरित  क्रांति      फैलाई   है,
आज  बताओ  कैसी  आँधी, 
तुमसे    आ    टकराई     है,
शांति दूत बन जाओ फिर से,वही पुराना पल ढूंढो।
दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।

शीत धूप सब झेल के भाई,
मिट्टी    सोना    करते    हो,
भारत के हो भाग्य विधाता,
पेट   सभी   का  भरते   हो,
प्यासे की जो प्यास बुझादे,उसी कूप का जलढूंढो।
दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।

कंधों   पर   बंदूक   तुम्हारे,
रखकर   कौन  दहाड़  रहा,
भारत मां का पावन आंचल,
आज  कौन  है   फाड़  रहा,
दलदल में मत डूबो प्यारे,पुनः नया तुम दल ढूंढो।
दांवपेच से ऊपर उठकर,इक मुस्काता कल ढूंढो।।

©Pankaj Singh अपने किसान भाईयों के लिए 
जय जवान जय किसान 

#Morning

अपने किसान भाईयों के लिए जय जवान जय किसान #Morning

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Pankaj Singh

Expectations मिला कर हाथ ऐ साथी हमें यूँ छोड़ ना जाना,
बड़ा संबल  ए  रिस्ता है, इसे यूँ तोड़ ना जाना,
तुम्हारे आगमन  की  सूचना  ए  धड़कने देतीं,
तुम्ही हो मीत मेरे यूँ कभी मुंह मोड़ ना जाना।।
      -

©Pankaj Singh आप लोगों के लिए 

#ExpectationFromLife

आप लोगों के लिए #ExpectationFromLife

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Pankaj Singh

रस  चंद   बसंत   नेराने   सखी।
मोरा  मनवाँ  कहनवाँ  न  माने।।

चंदा   लरजि   के   बहोरे   अगनवाँ,
मंद मंद  महके  ला  हमरा  भवनवाँ,
लागे नैनन से नैन अरुझानें सखी।
मोरा  मनवाँ  कहनवाँ  न.....

बरबस लिपट जाले  लिलरा से विंदिया,
आधीआधी रतिया उचटि जाले निदिया,
हमका मस्त मदन भरमाने सखी।
मोरा  मनवाँ  कहनवाँ  न...... 

कलियन  के  पँखुरी  पे  नाचे  नजरिया,
कयिसे क धीर  धरिहें  बिरही  गुजरिया,
लाल चहुदिशि कंत लखाने सखी।
मोरा  मनवाँ  कहनवाँ  न......

©Pankaj Singh आप लोगो के लिये 

#moonlight

आप लोगो के लिये #moonlight

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Pankaj Singh

*महक उठी गली-गली*

बसंत  की  बयार   में चहक  उठी  कली-कली।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

ब्योम सुर्ख लाल हुआ टेशू गुलाल सा,
वन में पलाश खिला गोरी के गाल सा,
सज धज  के  पनघट  पे  छोरियां  चलीं चलीं।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

रंग की फुहार आके धड़कनें बढ़ा गई,
भंग की तरंग उठ बिजलियां जगा गई,
चूम कर पवन चला कि पत्तियां खिली-खिली। 
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।। 

कंगना की प्यारी बोल मधु पराग घोलती,
मंद मंद पायल धुन  मन के द्वार खोलती,
स्वप्न आस  मन  में  लिए  शाम भी  ढली-ढली। 
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

कंचन सा मन हुआ चांदी ए तन हुआ,
मधुरव से पूर्ण आज  मेरा नयन  हुआ,
यू   अनोखी  प्रीत  की  पांखुरी  खिली-खिली।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।"

©Pankaj Singh महक उठी गली गली 

#WalkingInWoods

महक उठी गली गली #WalkingInWoods #Life_experience

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Pankaj Singh

संबल मन को यह देते हैं , 
              इन्हें  नहीं   झरने  देना,
सदा जिलाये उर में रखना, 
              इन्हें  नहीं   मरने  देना,
व्यथा हृदय की यदि पलको से,
             उमड़ कभी कह जायें तो,
आंखों के मोती हैं आँसू ,
              इन्हें  नहीं  गिरने देना।।

©Pankaj Singh 😥

#lovebirds
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Pankaj Singh

मेरा निवेदन है कि आप मन लगाकर पढ़िएगा.......

रोज  उतरे  ला  चनवा  अंगनवा में,
         हमका अइसन बुझाला फगुनवां में।।

मनवां गुलाल होला रोज भोरहरियां,
रंगवा में डूबीला...... आठो पहरिया,
    फाग  गावे   पयलिया   भवनवां में,
         हमका अइसन बुझाला फगुनवां में।।

फगुनी  बयरिया  हिया   में   समाइल,
कोइल के बोलिया पे जियरा लुभाइल, 
    नैना ढूंढे ला जाने  का  सिवनवां में,
         हमका अइसन बुझाला फगुनवां में।।

बरबस लिपट  जाले  लिलरा से  बिदिया,
आधी आधी रतिया उचटि जाले निंदिया,
    पपिहा पिउ पिउ पुकारेला मनवां में,
         हमका अइसन बुझाला फगुनवां में।।

सरसों के फुलवा त लागेला अइसन,
चम्पा  चमेली  रातरानी  के  जइसन,
   "लाल" सुधिया समाइल  परनवां में,
        हमका अइसन बुझाला फगुनवां में।।

©Pankaj Singh "फाल्गुन" का आगमन ही  ऋतुराज "बसंत" का मुख्य द्वार होता है।

#Holi   Anshuman tripathi

"फाल्गुन" का आगमन ही ऋतुराज "बसंत" का मुख्य द्वार होता है। #Holi Anshuman tripathi

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Pankaj Singh

Alone  फूल बनकर कभी थी  खिली जिंदगी,
याद में उनकी अब तो... ढली जिंदगी,
उड़ तो सकते थे  हम  नीले अंबर तले,
जाने राहों पे कैसी .......चली जिंदगी।
-------पंकज सिंह कुछ पंक्तिया आपके लिए  Satyam Purohit

कुछ पंक्तिया आपके लिए Satyam Purohit #Life_experience

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Pankaj Singh

( हिन्दी ग़ज़ल)
ओ यहां इतना  नादान  कहां  था  पहले।
है जो पत्थर दिल इंसान कहां था पहले।।

बात कोई तो जरूर  निकलकर  आएगी,
वर्ना ओ इतना मेहरबान कहां था पहले।।

डर लगता है आज इन उजालों से मुझको,
इतना चमकता मेरा मकान कहां था पहले।।

आज भी याद है मुझको मेरी  भूखी  रातें,
मेरा  खुदा, मेरा भगवान, कहां  था पहले।।

हमारी कोशिशे  ही  भड़का  गई उसको,
वह पड़ोसी  मेरा, बेइमान  कहां था पहले।

उनकी खुदगर्जियों का नतीजा है"लाल,"
मेरा चमन इतना वीरान कहां था पहले।। हिन्दी गजल

हिन्दी गजल

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Pankaj Singh

*****महक उठी गली-गली*****

बसंत  की  बयार   में चहक  उठी  कली-कली।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

ब्योम सुर्ख लाल हुआ टेशू गुलाल सा,
वन में पलाश खिला गोरी के गाल सा,
सज धज  के  पनघट  पे  छोरियां  चलीं चलीं।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

रंग की फुहार आके धड़कनें बढ़ा गई,
भंग की तरंग उठ बिजलियां जगा गई,
चूम कर पवन चला कि पत्तियां खिली-खिली। 
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।। 

कंगना की प्यारी बोल मधु पराग घोलती,
मंद मंद पायल धुन  मन के द्वार खोलती,
स्वप्न आस  मन  में  लिए  शाम भी  ढली-ढली। 
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

कंचन सा मन हुआ चांदी ए तन हुआ,
मधुरव से पूर्ण आज  मेरा नयन  हुआ,
यू   अनोखी  प्रीत  की  लकड़िया  जली-जली।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।
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