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snehasharma5043
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#Sneha Sharma

लिखने पढ़ने का शौक है ।

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#Sneha Sharma


फूल 
नारी को नर ने देखो,
क्या से क्या बना दिया।
देवी थीं कभी माना जिसे,
उसे दारू बना दिया।
उठी हवस जो दिल में,
लगा लब से नशा किया।
बेरूखी से फिर वहीं,
खाली जाम सा लुढ़का दिया।
गिरे जो अश्क आंखों से,
सिगरेट की आग से बुझा दिया।
जिस्म था जो उसे मानो,
ऐस्ट्रे की राख बना दिया।
खोला जो मुंह कभी उसने ,
समाज का ताला लगा दिया।
 जो किया विरोध प्रदर्शन
 तो सरेआम निर्वस्त्र किया ।
कैसा फूल है ये देखो जो,
मसला जाकर भी मुस्कुरा दिया। 
    तन की सुंदरता को तो सबने देखा 
 नारीमन की वेदना को किसने देखा।।
  
स्वरचित 
                 स्नेहशर्मा ।

©#Sneha Sharma
  #TiTLi
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#Sneha Sharma

दिन खत्म हो जाता है ,
और रात भी आ जाती है।
दिल की बात को मगर ,
लेखनी नहीं लिख पाती है।  
आंखों से निकली  अश्रु धारा,
ना लिखा भी बहा ले जाती है।
सावन की हरियाली  में भी, 
सजनी बिरहा के गीत गाती है।
देने को मिलन प्रेम पत्र फिर,
वो मेघा को ही दूत बनाती है।। स्नेह शर्मा

©#Sneha Sharma
  #sneh sharma
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#Sneha Sharma

कौन नहीं जहां में
आज जो तन्हा नहीं
किसी को घर है 
तो उसको कद्र नहीं।
जिसको कद्र हो सबकी
उसके लिए द्वार नहीं।
द्वार गर खुलें भी तो  
अब कोई आता जाता  नहीं।
ना भाई बहन ना ही रिश्ते नाते।
किसी से सुलह या लडाई भी नहीं।
सोफ़ा टेबल और हाथों में मोबाइल,
फिर से जब रह जाती तनहाई ।
संग किसी के वार्तालाप नहीं।
तो रहती संग अपनी ही परछाई ।।
स्वरचित
स्नेह शर्मा

©#Sneha Sharma
  #sneh sharma
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#Sneha Sharma

#sneh Sharma
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#Sneha Sharma

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#Sneha Sharma

ये दिल न जाने क्यों बेकरार रहता है।
आने से पहले तुम्हारे जाने का मलाल रहता है।
रात होते ही सुबह का इंतजार रहता है।
मिलोगे फिर सनम तुम ये ख्याल रहता है।
सुबह तो  मगर पल मे खत्म‌ हुई जाती।
नागिन सी शाम फिर डसने को आती है।
बिछोह के डर से बिरहन सिहर जाती है।
साजन की बाहों में वो सिमटी ही जाती है।।


स्नेह शर्मा
बूंदी, राजस्थान।

©#Sneha Sharma
  #HBDSonakshiSinha
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#Sneha Sharma

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#Sneha Sharma

#Sneh sharma
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#Sneha Sharma

#sneh sharma
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#Sneha Sharma

नहीं मिलेग़ा तुझे 
मुझ जैसा चहाने वाला ।
जा तुझे इजाजत है सारी दुनिया आजमा ले।
चांद को बिंदी लगी रात पावन हो गई 
रात दूज की  है ना पूरे चांद की मगर,
चंदा संग जुड़ा शुक्र का ये तारा बड़ा प्यारा लगे।
गोरी के मुखड़े पर लगा नजर का वो स्याह टीका,
बढ़ाता जो सुंदरता जाने क्यों नज़र लगाता सा लगे।
लटों में खोया सा मुखड़ा निशा में आंख मिचौली खेलते चांद का बादलों में छुपे तारे को ढूंढता सा लगे।।
स्वरचित
स्नेह शर्मा

©#Sneha Sharma
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