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shiv8740923995882
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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

निरंकार है तू साकार है तू । कण कण में अविनास है तू जगत तेरी माया है हर क्षण तेरा साया है तुझे जो जाना तुझे मिला नही तो भटक रहा हर युग वो जय शिव शंकर नमामि हर हर महा देव।

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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

#yqshivanshmishra #एकांतमेंदार्शनिक #Life
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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

#yqshivanshmishra 
There are still a few days left for Christmas. but Still, it feels good to be someone's secret senta. keep sharing happiness

#yqshivanshmishra There are still a few days left for Christmas. but Still, it feels good to be someone's secret senta. keep sharing happiness

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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

It is true that the more pure a person is, 
the more he gets cheated by others.

©एकांत में दार्शनिक!(shiv)
  #yqshivanshmishra P
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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

Some memories stay with us for life,
L but people who live in memories do not.

©एकांत में दार्शनिक!(shiv)
  #yqshivanshmishra
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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

कुछ ना कुछ तो जरूर बदला है
 शायद मैं मेरा वक्त। या फिर आप

©एकांत में दार्शनिक!(shiv)
  #yqshivanshmishra
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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

#Nature #yqshivanshmishra
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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

One day your own deeds
 will come to meet you,
 just don't be surprised.

©एकांत में दार्शनिक!(shiv)
  #yqshivanshmishra
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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

  जो व्यक्ति तुम्हारी खामोशियाँ से तुम्हारी तक़लिफों का अंदाजा न कर पाय उसके सामने अपने तक़लिफों को इज़हार करना या उसे अपनी तक़लिफों को जताना केबल और केबल अपने  शब्दों को और  अपना समय बर्बाद करना होता है

©एकांत में दार्शनिक!(shiv)
  #Nightlight #yqshivanshmishra
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एकांत में दार्शनिक!(shiv)

 दुःख... 
       कितना अप्रत्याशित होता है और कितना सशक्त होता है जो किसी के भी जीवन मे अचानक से आता है और आपके सुख की बुनियाद को हिला देता है। आप नीःशब्द रह जाते हैं कि सारा परिदृश्य कैसे बदल गया। निश्चतता और निश्चिंतता दोनों ही एक प्रकार के भ्रम हैं। समय की प्रकृति को जानते हुए भी हम सब कितना कुछ पहले से ही सुनिश्चित कर लेते हैं और निश्चिंत हो जाते हैं कि जीवन हमारी योजना के अनुसार ही चलेगा और हम जीने की मधुर तंद्रा में तल्लीन हो जाते हैं। 
दुःख इसी प्रकार तंद्रा को तोड़ने वाली आँधी होती है। जो की किसी चंचल बच्चे की तरह होता है जो आता है और अचानक से हमे धप्पा देकर हमें चौंकाते हुए कहता है, "
"देखो मैं यहीं हूँ, तुम मुझे भूल गए न।" और हम ठगे के ठगे रह जाते हैं, ,,क्योंकि सुख की उस ऊष्मा की गर्माहट में हम  दुःख के स्पर्श को भुला चुके होते हैं। वास्तव में सहजता से जीना तभी संभव होता  है जब हम दुःखो के पदचिन्हों को हमारे ज़हन की दीवारों पर स्पष्टता से अंकित करे और जीवन रूपी रथ में जिसकी मंज़िल कभी सुख होती और कभी दुख जो अपने समय से आती जाती है 
जो जीवन रूपी रथ ठीक उसी प्रकार बिना रुके चलता जिस प्रकार 
"सूर्य रथ'"
अर्थार्थ दुख और सुख एक अनुभव है जो कभी हंसाती तो कभी यह रुलाती है।।
बस शर्त यह है कि अड़े रहो, डटे रहो, खड़े रहो और आगे बढ़ते रहो।

©एकांत में दार्शनिक!(shiv)
  #citylight #yqshivanshmishra
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