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आनंद सिद्धार्थ

writter of the book 'yugprabha'

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आनंद सिद्धार्थ

मत बन अनुरागी आज पथिक ।।

मत बन अनुरागी आज पथिक ।। #कविता #nojotovideo

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आनंद सिद्धार्थ

तब तक कर लो स्वीकार सखे ।।

तब तक कर लो स्वीकार सखे ।। #nojotovideo

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आनंद सिद्धार्थ

सदियों से यह दीमक जैसी, है समाज में लगी हुई,
और खोखला करने में ही, लगी हुई है आज दलाली ।
शासन-सत्ता, कस्बों-कस्बों, गलियों और मोहल्लों में,
बनीं हुई है सदियों से ही, जन-जन की अल्फ़ाज़ दलाली ।।
हमने ढूंढे हैं प्रतिरोधक, प्रबल व्याधियों के अब तक, 
लाइलाज रह गई सदा से, भारत की यह खाज़ दलाली ।।
ख़ाक हुए कितने ही अब तक, सत्ता के सत्ताधारी,
और यहां पर बनी हुई है, सदियों से यह ताज दलाली ।।
गद्दारी में ही अब तक यह, पोषित होती आयी है,
कड़े प्रबंधों में हो जाती, सत्ता से नाराज़ दलाली ।।
जब-जब डाले हैं कुछ पहरे, सच्चे पहरेदारों ने,
नए रूप में कर लेती है अपना, फिर आगाज दलाली ।।





-- आनंद सिद्धार्थ #chai
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आनंद सिद्धार्थ

पिसता आया है गरीब ही, राजनीति के पाटों पर ।
सदा अमीरी ने तोला है, निर्धनता ही, बाटों पर ।।
आखेटक का लक्ष्य सदा से, कायर मृग ही होते हैं ।
सदा सिपाही ही जीवन में, अपना सब कुछ खोते हैं ।।
शासक तो जीते आए हैं, गद्दी के पैमाने में ।
उम्र ढली है राजनीति की, लड़ने और लड़ाने में ।।
वक्त नहीं लगता गिरगिट सा, इसको रंग बदलने में ।
ढल जाएगी उम्र तुम्हारी मगर, तुम्हारे ढलने में ।।
मगरमच्छ के आंसू हैं, ये राजनीति के गान सभी ।
और हनक में डूबे हैं, ये गद्दी के दीवान सभी ।।
सिर्फ गरीबों के वजूद में ही आना है आंच, सुनो !
बींधेगी तुमको ही केवल, सत्ता की नाराच, सुनो !! #Lockdown_2
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आनंद सिद्धार्थ

ये भारतवर्ष, जिसका इतिहास विश्व का सबसे पुराना इतिहास है, जिसके वेद विश्व के प्राचीनतम लेख हैं, जिसके साक्ष्य विश्व में प्राचीनतम हैं, जिसे मिटाने के लिए कितने ही आततायियों को मिटना पड़ा, आज उसकी छवि फिर से धूमिल करने के व्यर्थ प्रयास किए जा रहे हैं । मैं उन तक अपनी बात इन कुछ चंद पंक्तियों के द्वारा पहुंचाना चाहता हूं ।


कुछ टिटहरी चोंच से, सागर सुखाने में लगी हैं ।
और कुछ नदियां, समन्दर को डुबाने में लगी हैं ।।
मेघ, सूरज को छुपाकर, कहकहों में आज डूबा ।
सुर्ख सरिता, आज दावानल बुझाने में लगी है ।।
एक खेचर नीड़ से, तूफान को ललकारता है ।
और निर्धनता, कुबेरों को लुभाने में लगी है ।।
मिट गया जिसको झुकाने में सिकंदर अज्ञतावश ।
आज कुछ नादानियां, वह सर झुकाने में लगी हैं ।।
                                  -- आनंद सिद्धार्थ #weather
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आनंद सिद्धार्थ

आंख में बंध चुकीं, धर्म की पट्टियां,
दृश्य दुनिया के दिखते नहीं ।

लेख लिखते थे जो, रंच तकलीफ के,
मृत्यु के लेख लिखते नहीं ।।

धर्मनिरपेक्ष कहते थे जो, चींखकर,
लफ्ज़ धागों में सिल के, कहां छुप गए ।

देश का एक स्तम्भ क्या बिक गया ?
लोग कहते थे बिकते नहीं ।।

* मीडिया - चौथा स्तंभ
                  
-- आनंद सिद्धार्थ #Wish
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आनंद सिद्धार्थ

वर्तमान में भारत की स्थिति धर्म के नाम पर कुछ इस तरह हो रही है -------

"आग, कुछ लोग धर्मों की सुलगा रहे,
शेष, चिंगारियों को हवा दे रहे ।

ज़ख्म, कुछ सरपरस्ती में देते रहे,
शेष, जख्मों को लाज़िम दवा दे रहे ।।

हो गए चुप सभी, न्याय के पारखी,
वक्त आया, कि वाजिब उचित न्याय हो।"

पीठ पर कुछ, कटारी चलाते रहे,
शेष थपकी, बने हमनवा, दे रहे ।।

                 -- आनंद सिद्धार्थ #Success


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