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ankushsaxena1580
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Ankush Saxena

poet by heart

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Ankush Saxena

" अब तो रुह का वो अंजान एहसास ही मुझे अपना सा महसूस हुआ करता है 
अब तो तुम्हारी मौजूदगी की ख्वाहिश करना भी मुझे मानो एक रवायत लगती है "

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Ankush Saxena

"बेघर महसूस होने की खलिश का गर तजुर्बा हासिल करना है तुम्हे
किसी शाम दरख्त पर बैठे उस उदास परिंदे से उसका हाल पूछ लेना "

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Ankush Saxena

" यूँ तो मौजूद थे फलक मे वे तमाम सितारे जो आज भी नूर कर रहे थे कायनात को बड़ी ही शिद्द्त से ,
मगर वो एक सितारा कि जिससे मैं गुफ्तगू किया करता था उसकी महज अब परछाई बाकी थी वहाँ "

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Ankush Saxena

उस दरिया की रुह को महज यही एक ख्वाहिश रही मुसलसल
वो जो उसकी खामोशी को सुन सके कोई शख्स ऐसा भी तो हो

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Ankush Saxena

" यूँ तो उस खाब की दस्तरस मे ही नही है हकीकत हो पाना
वो मगर फिर भी हर रात मुझे नींद मे एक उम्मीद दे जाता है "

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Ankush Saxena

" वक्त बेवक्त ही सही पूछ लिया करता हूँ मै उस शख्स से हाल-ए जिंदगी 
वो जो हर पहर मुझमे होकर भी शायद खामोश सा रहा करता है "

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Ankush Saxena

"बेहद शोर हुआ करता था कभी उस गली के कोने पर हर शाम 
अब उस रात से खामोशी वहां तब से बेखौफ होकर सो रही है"

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Ankush Saxena

" दरख्त पर खिल रहे उन पत्तों को भी अपनी खूबसूरती पर बेहद नाज था
एक रोज उस सम्त से हवा चली और वे तमाम पत्ते गिरकर जमीन पर बेनूर हो गए "

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Ankush Saxena

" वो शख्स जो आज भी हर रोज उस दरिया के करीब जाकर बैठ जाया करता है 
वो दरिया जो आज भी ठीक उस कदर ही खामोश रहकर भी कितने ही किस्से सुना करता है "

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Ankush Saxena

"वो एक मंजर जो मेरी निगाहों से रुबरु हुआ था किसी रोज
उस मुलाकात के किस्से आज भी अनसुने है हर शख्स को"

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