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ompalsingh0038
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ओमपाल सिंह " विकट"

कवि, अधिवक्ता एवं पत्रकार। एम ए (राजनीति शास्त्र, पत्रकारिता एवं जनसंचार),एलएलएम।

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ओमपाल सिंह " विकट"

21 दिन की कड़ी तपस्या, 
संग मोदी के करनी है।

कोरॉना जैसी ये आफत, 
इससे ही तो डरनी है।

सुबह सवेरे दिन और रात, हरदम तुम ये काम करो।

एक कदम बाहर मत रक्खो,
घर में ही आराम करो।

बचना है गर इस आफत से, 
तो धीर हमें ये धरनी है।

21 दिन की कड़ी तपस्या, 
संग मोदी के करनी है।

भूल अगर कर दी तो फिर, जान पे भारी होगी वो।

एक तुम्हारे लिए नहीं, 
सबकी दुश्वारी होगी वो।

इन्हीं दिनों के अंदर ही, 
नानी दुश्मन की मरनी है।

21 दिन की कड़ी तपस्या, 
संग मोदी के करनी है।

माना कि निज घर में रहना, 21 दिन आसान नहीं।

लेकिन जो ये नहीं किया तो, बचनी है फिर जान नहीं।

निज जीवन के साथ साथ, 
पूरे देश की आफत हरनी है।

21 दिन की कड़ी तपस्या, 
संग मोदी के करनी है।

मेरे देश को इस सबसे, नुकसान बड़ा हो जाएगा।

लेकिन जिंदा रहे अगर तो,
देश पुनः खड़ा हो जाएगा।

जान से बढ़कर अर्थ नहीं, 
ये बात ध्यान में धरनी है।

21 दिन की कड़ी तपस्या, 
संग मोदी के करनी है।

बिना अर्थ के देश चले ना, 
बात सभी ये मानते हैं।

जान से बढ़कर कोई नहीं,
ये तथ्य सभी तो जानते हैं।

सबसे पहले धीर हमें अब,
सबकी जान की धरनी है।

21 दिन की कड़ी तपस्या, 
संग मोदी के करनी है।

ओमपाल सिंह " विकट "।
धौलाना, हापुड़(उत्तर प्रदेश)। 21 दिन की कड़ी तपस्या संग मोदी के करनी है

21 दिन की कड़ी तपस्या संग मोदी के करनी है

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ओमपाल सिंह " विकट"

राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।

रविवार सुबह सात बजे ही, 
घर के अंदर घुस जाओ।
रात को नौ बजने तक भी, 
घर से बाहर मत आओ।
नहीं निभाया प्रण पूरा तो, 
ये नैतिक गद्दारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

शाम को पांच बजे मिलकर, 
सब एक और फर्ज निभाएंगे।
घर के दरवाजे पर आकर ताली खूब बजाएंगे।
ताली थाली या बजाओ घंटी,
ये तो सम्मान की बारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

बड़े बुजुर्ग और छोटे बच्चे,
घर में रहें तो अच्छा है।
बड़ों की ताकत क्षीण है कुछ,
बच्चा तो आखिर बच्चा है।
भूत भविष्य को रखे सुरक्षित,
ये आज की जिम्मेदारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

अफवाहों से दूर रहें और, 
खूब प्रचार प्रसार करें।
घर के अंदर रहकर हम सब, कोरोना पर वार करें।
लापरवाही हुई जो हमसे,
पड़नी बहुत ही भारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

आओ हम सब मिलकर के,
ये सकल जहां को दिखला दें।
विश्व गुरु की ताकत का,
कुछ एहसास तो जतला दें।
मोदी मंत्र पर डटने की आवश्यकता बहुत ही भारी है।

कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

ओमपाल सिंह " विकट "।
धौलाना, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)। ये तो वैश्विक बीमारी है

ये तो वैश्विक बीमारी है

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ओमपाल सिंह " विकट"

दिखती हो शांत साधारण सी,
अपने फन की एक नम्बर हो।

अनामिका सा सकल विश्व में, कविता  का  तुम  अम्बर  हो।

मधुर कंठ ,  हे काव्य पुंज  कविता की तुम परछाई हो।

जब भी शब्दों की लय बिगड़ी,
बस याद तुम्हीं तो आई हो।
 
हो सुंदरता की मूरत तुम, सरस्वती का स्वयं स्वयंवर हो।

अनामिका सा सकल विश्व में, कविता  का  तुम  अम्बर  हो।

धरती आकाश पवन की तो कोई सीमा नजर नहीं आती।

बिन तेरे, लाख  करोड़ों को,
कविता की कली नहीं भाती।

शब्दों का रूप भयंकर हो तुम,
काव्य का "विकट" बवंडर हो।

अनामिका सा सकल विश्व में, कविता  का  तुम  अम्बर  हो।

जब मंच पे तुम आ जाती हो,
कविता को महका जाती हो।

अपने पहले कीर्तिमान तोड़,
नित नए आयाम बनाती हो।

सुर ताल की हो सरताज तुम्हीं,
तुम काव्य का युद्ध भयंकर हो।

अनामिका सा सकल विश्व में, कविता  का  तुम  अम्बर  हो।

फ़रवरी माह सी खिलकर तुम,
जब मंच के ऊपर आयी थीं।

कुछ मठाधीश सितंबरों को, तुम बिल्कुल भी ना भायी थीं।

वो जून के गर्म थपेड़े हैं अब,
तुम काव्य का माह नवंबर हो।

अनामिका सा सकल विश्व में, कविता  का  तुम  अम्बर  हो।

हो मंच कोई, या  टीवी  हो,
फिर साली हो या बीवी हो।

सबके मन हो तुम बसी हुई,
सब जगह पे तुम ही छाई हो।

हे सरस्वती प्रतिरूप तुम्हें,
बर्थडे की "विकट" बधाई हो।

ओमपाल सिंह "विकट"।
धौलाना, हापुड़(उत्तर प्रदेश)। हैप्पी बर्थ डे अम्बर

हैप्पी बर्थ डे अम्बर

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ओमपाल सिंह " विकट"

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश  में एक संत योगी आदित्य नाथ की सरकार को तीन साल पूरे हो गए हैं। सरकार ने सकारात्मक शैली रही। सरकार के सकारात्मक पक्ष को रखने की कोशिश करती मेरी नवीनतम रचना -

यूपी को खुश हाल बनाकर,
भगवा रंग चमकाया है।
तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।

दबी पड़ी थी यूपी मेरी अपराधों की बाढ से,
गुंडे खुलकर खेल रहे थे,
राजनीति की आड़ से।
तुमने चुन चुनकर गुंडों को, सीधा यमलोक दिखाया है।
तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।1।

सड़क छाप मजनू सड़कों पर, मनमानी सी करते थे।
राह चल रही मां बहनों को, परेशानी सी करते थे।
बना एंटी रोमियो दल, 
बस उनका खौफ छुड़ाया है।
तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।2।

खाली प्लॉट पे कब्जा करना,
बात बड़ी ये आम सी थी।
गुंडों के संग राजनीति भी,
इसमें कुछ बदनाम सी थी।
एंटी भू माफिया दस्ता, 
काम यहां पर आया है।
तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।3।

भीषण गर्मी में बिजली के दर्शन ना हो पाते थे।
बिजली घर को घेर के लोग, रोज खड़े हो जाते थे।
अब बिजली की सप्लाई ने,
मिट्टी का तेल भुलाया है।
तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।4।

शिक्षा के मंदिर स्कूल, 
बदहाली के हवाले थे। 
साफ सफाई ना होती थी,
जमे हुए बस जाले थे।
कायाकल्प किया शिक्षा का,
विद्यालयों को चमकाया है।तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।5।
डॉक्टर गायब, दवा नदारद, विभाग की ये पहचान थी।
जनता टूटे अस्पतालों की, बदहाली से परेशान थी।
कायाकल्प योजना लाकर,
इनका रंग खिलाया है।
तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।6।

किसानों सा सम्मान रखा,
कुछ निधि बैंक में भिजवाई।
अन्नदाता के चेहरे पर,
खुशी अलग ही नजर आई।
नष्ट फसल का पूरा मुआवजा,
तुमने हर साल दिलाया है।
तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।7।

अब दो सालों में योगी जी,
पहचान बदलकर रख देंगे।
यूपी तो चमकेगी ही अब,
सब नाम बदल कर रख देंगे।
एक बार फिर से यूपी, 
निज मूल रूप में आया है।
तीन साल का शासन योगी, सबके मन को भाया है।8।

ओमपाल सिंह " विकट "
धौलाना, हापुड़(उत्तर प्रदेश)। योगी जी का शासन देखो सबके मन को भाया है।

योगी जी का शासन देखो सबके मन को भाया है।

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ओमपाल सिंह " विकट"

गए सिंधिया बीजेपी में, 
कांग्रेस घबराई है।
कमलनाथ की कुर्सी कांपी,
मौज कमल की आई है।
लगता है अब मध्य प्रदेश में,
कमल ही कमल खिलेगा जी।
गद्दारों की छाती पर अब,
राष्ट्रवादी बल मिलेगा जी।
बीजेपी के घर आंगन में, 
गूंज उठी शहनाई है।
गए सिंधिया बीजेपी में, 
कांग्रेस घबराई है।
कमलनाथ की कुर्सी कांपी,
मौज कमल की आई है।
संग सिंधिया कई विधायक, सत्ता भोग लगाएंगे।
मोदी में ही राष्ट्रवाद है,
बात यही बतलाएंगे।
एमपी की भी जनता देखो,
मन ही मन मुसकाई है।
गए सिंधिया बीजेपी में, 
कांग्रेस घबराई है।
कमलनाथ की कुर्सी कांपी,
मौज कमल की आई है।
समय बहुत बलवान है होता,
विधि ने फिर से बतलाया।
परिवर्तन की आंधी ने भी,
विश्वास मोदी में जतलाया।
जेपी नड्डा के चेहरे पर, 
अलग ही रौनक आई है।
गए सिंधिया बीजेपी में, 
कांग्रेस घबराई है।
कमलनाथ की कुर्सी कांपी,
मौज कमल की आई है।
अंदर खाने बीजेपी के, 
कुछ नेता भी कांप रहे।
राज्यसभा के बाद भविष्य के, समीकरणों को भांप रहे।
लेकिन मन ही मन में खुश हैं,
सत्ता की हाथ में चाबी आई है।
 गए सिंधिया बीजेपी में, 
कांग्रेस घबराई है।
कमलनाथ की कुर्सी कांपी,
मौज कमल की आई है।
गए सिंधिया बीजेपी में, 
कांग्रेस घबराई है।
कमलनाथ की कुर्सी कांपी,
मौज कमल की आई है।
ओमपाल सिंह " विकट " धौलाना, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)। सिंधिया

सिंधिया

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ओमपाल सिंह " विकट"

बिना फाग गाए होली नहीं होती ना -
तो गाओ मेरे संग फाग -
जोगी रा सारारारा- 

कांग्रेस पर भारी पड़ा, 
होली का हुड़दंग।
माननीयों पर चढ गया, 
देखो भगवा रंग।
जोगी रा सरारारा।
इस्तीफा देकर भाग गए एमएलए कमल के संग।
एमपी में तो हो गया, 
सत्ता गिरने का ढंग।
जोगी रा सारारारा।
सिंधिया जी भी चल दिए,
मोदी जी के संग।
और विधायक बदल रहे,
गिरगिट जैसा रंग।
जोगी रा सारारारा।
मोदी चुप चुप देखते,
शाह ने घोटी भंग।
छः मंत्री हो नशे में, 
लगे छेड़ने जंग।
जोगी रा सारारारा।
होली हुई कमलनाथ की,
सत्ता हुई बेढंग।
अमित शाह हैं ताल में,
चढ़ जाए भगवा रंग।
जोगी रा सारारारा।
होली पर कपड़े फाड़कर, 
हुए विधायक नंग।
खुशी के दिन ही पड़ गई, 
खूब रंग में भंग।
जोगी रा सारारारा।
नींद रात भर आए नहीं,
बिस्तर लगे ना अंग।
चौड़े में होने लगी,
लाल बत्ती बदरंग।
जोगी रा सारारारा।
साल भर में हुआ था, 
एक छुट्टी का ढंग।
पत्रकार जी जाग रहे,
अब राजनीति के संग।
जोगी रा सारारारा।
अब तक जितनी हुई है,
उतनी लिख दी संग।
अब कल को लिखूंगा,
जितनी बढ़ेगी जंग।
जोगी रा सारारारा।
ओमपाल सिंह " विकट "।
धौलाना, हापुड़, उत्तर प्रदेश। कमलनाथ की होली

कमलनाथ की होली

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ओमपाल सिंह " विकट"

मन तो मेरा भी कहता है, 
मैं होली के रंग लिखूं।
लेकिन दिल के कोने में है, व्यथा बड़ी बदरंग लिखूं।।

ठीक पास में दिल बैठा है जिसमें देश बसाता हूं।
मैं मन के उस दुखी भाग से, दिल्ली का दर्द सुनाता हूं।।
हर कोने में पड़ी है जो, 
वो राख बड़ी बेढंग लिखूं।
मन तो मेरा भी कहता है, 
मैं होली के रंग लिखूं।।

अभी अभी तो रतन लाल ने,
सीने गोली खाई है।
घाव चार सौ अंकित वाली, याद भी कहां भुलाई है।
लेकिन देश द्रोहियों के है, राजनीति क्यों संग लिखूं।
मन तो मेरा भी कहता है, 
मैं होली के रंग लिखूं।
आग लगाई, घर भी फूंके,
जान की कीमत ना जानी।
वीआईपी मेहमान के आगे,
जमकर की थी मनमानी।
लेकिन अब तक खुले घूमते,
क्यों सत्ता बेढंग लिखूं।
मन तो मेरा भी कहता है, 
मैं होली के रंग लिखूं।।

प्रहलाद भक्त की देह जलानी, चाही थी जब नारी ने।
खुद की जान गंवा बैठी,
मांगी माफी बदकारी ने।
यहां है जलती दिल्ली पर,
सत्ता का मौनी ढंग लिखूं।
मन तो मेरा भी कहता है, 
मैं होली के रंग लिखूं।।

परंपरा है शोक वर्ष में, 
खोटे त्यौहार मनाने की।
जिनके घर में खुशी नहीं है,
उनके घर पर जाने की।
तुम भी तो सबसे पहले,
उन सबके घर को जाओ।
भूल रही है सत्ता की भी,
ये अहसास करा आओ।
जिससे मैं भी तो इस सबको, परंपरागत अंग लिखूं।
मन तो मेरा भी कहता है, 
मैं होली के रंग लिखूं।।

जिन लोगों ने जान गंवाई,
उनको कुछ राहत दे दो।
रहे स्वर्ग में अमन चैन से,
ऐसी एक चाहत दे दो।
देश में फिर से हंसी खुशी हो,
मैं राष्ट्रभक्ति का संग लिखूं।
मन तो मेरा भी कहता है, 
मैं होली के रंग लिखूं।

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
ओमपाल सिंह, "विकट"।
धौलाना, हापुड़(उत्तर प्रदेश)। मैं भी होली के रंग लिखूं

मैं भी होली के रंग लिखूं

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ओमपाल सिंह " विकट"

देश की नवीनतम और भयंकर समस्या की ओर ध्यान दिलाती मेरी ताज़ा रचना -
चीख पुकार,आग धुआं सब छोड़ो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।।
एक दूजे पर बंद सभी पलटवार करो।
सबसे पहले इस वायरस पर वार करो।
हिन्दू मुस्लिम की रुसवाई छोड़ो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।।
ये हिंदु मुस्लिम में फर्क नहीं माने,
चोटी और टोपी को एक सा ही जाने।
अब तुम भी मंदिर मस्जिद की जद तोडो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।
दंगे खूब हुए दिल्ली में जान गंवाई कई सारी।
ध्यान देश का उधर रहा और इधर से आ गई बीमारी।
बहुत चली गईं, जानें अब तो इसका भी मुंह तोड़ो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।
जान रहेगी फिर लड़ लेंगे,
राजनीति में भी बढ़ लेंगे।
"विकट"समय में एक साथ हैं,
ये संदेश ही हम सब देंगे।
गजब ठीकरा एक दूजे पर फोडो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।
एक साथ सब मिलकर इस वायरस को भगाएंगे।
जाति धर्म का भेद भूलकर पहले देश बचाएंगे।
मिलजुलकर सब रहो यहां, एक दूजे से मुंह मोड़ों ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।
ओमपाल सिंह" विकट"
धौलाना, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)। कोरोना

कोरोना

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ओमपाल सिंह " विकट"

देश की नवीनतम और भयंकर समस्या की ओर ध्यान दिलाती मेरी ताज़ा रचना -
चीख पुकार,आग धुआं सब छोड़ो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।।
एक दूजे पर बंद सभी पलटवार करो।
सबसे पहले इस वायरस पर वार करो।
हिन्दू मुस्लिम की रुसवाई छोड़ो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।।
ये हिंदु मुस्लिम में फर्क नहीं माने,
चोटी और टोपी को एक सा ही जाने।
अब तुम भी मंदिर मस्जिद की जद तोडो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।
दंगे खूब हुए दिल्ली में जान गंवाई कई सारी।
ध्यान देश का उधर रहा और इधर से आ गई बीमारी।
बहुत चली गईं, जानें अब तो इसका भी मुंह तोड़ो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।
जान रहेगी फिर लड़ लेंगे,
राजनीति में भी बढ़ लेंगे।
"विकट"समय में एक साथ हैं,
ये संदेश ही हम सब देंगे।
गजब ठीकरा एक दूजे पर फोडो ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।
एक साथ सब मिलकर इस वायरस को भगाएंगे।
जाति धर्म का भेद भूलकर पहले देश बचाएंगे।
मिलजुलकर सब रहो यहां, एक दूजे से मुंह मोड़ों ना।
देश का दुश्मन आज बना है कोरोना।
ओमपाल सिंह" विकट"
धौलाना, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई छोड़ो ना, देश का दुश्मन आज बना है कोरोना

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई छोड़ो ना, देश का दुश्मन आज बना है कोरोना

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ओमपाल सिंह " विकट"

जब जब निर्भया के दोषियों की फांसी टलती है, तब तब मेरी कलम रोती है। उन्हीं आंसुओं की गर्मी से निकली मेरी ताज़ा रचना - 

माना कानूनी तकनीक,
कुछ दिन जान बचाएगी।
आखिर बलि के बकरे की मां,
कब तक खैर मनाएगी।1।
तुम चारों को फांसी होगी, कान खोलकर सुन लो तुम।
दया याचिका के दम पर,
कितने ही सपने बुन लो तुम। मौत की चिट्ठी इक ना इक दिन कामयाब हो जाएगी I2l
आखिर बलि के बकरे की मां,
कब तक खैर मनाएगी।
निर्भया के दोषी पक्के हो,
बात ये बिल्कुल साफ हुई।
लोकतंत्र भी देख रहा है,
कब कब फांसी माफ हुई।
इधर उधर की भाग दौड़ बस, 
मौत का समय बढ़ाएगी।3।
लेकिन बलि के बकरे की मां,
कब तक खैर मनाएगी।
न्याय मिलेगा उस बेटी को,
जो थर थर थी कांप रही।
छोड़ गई ये बोझ धरा पर,
बसी स्वर्ग में आप रही।
क्या लगता है पुण्य आत्मा,
चैन सहित रह पाएगी।4।
आखिर बलि के बकरे की मां,
कब तक खैर मनाएगी।
जाग उठे बेटी वाले,
चुपचाप भले ही बैठे हैं।
मत समझो मौनी बाबा हैं,
ये आग छुपाए बैठे हैं।
इस अग्नि से न्याय व्यवस्था
फिर कैसे बच पाएगी।5। 
आखिर बलि के बकरे की मां,
कब तक खैर मनाएगी।
दुष्ट दरिंदे हैं ये गंदे मानव नहीं ये दानव हैं।
जो इनको मानव ही समझें वो मानव क्या मानव हैं।
अगर यही बस चला धरा पर,
क्या मानवता बच जाएगी।6। 
आखिर बलि के बकरे की मां,
कब तक खैर मनाएगी।
ओमपाल सिंह " विकट "।
धौलाना, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)। #Insaaf_kab_milega
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