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राजकिशोर मिश्र राज

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राजकिशोर मिश्र राज

प्रियतम परदेशी भये , नैना बरसे नीर l विरहण हिय अंगार सम , तन मन चुभते तीर l मदनामृत संजीवनी, दुर्लभ प्रियतम प्रेम - चिंतन चतुर सुजान मन , किंशुक जड़ से पीर ll

प्रियतम परदेशी भये , नैना बरसे नीर l विरहण हिय अंगार सम , तन मन चुभते तीर l मदनामृत संजीवनी, दुर्लभ प्रियतम प्रेम - चिंतन चतुर सुजान मन , किंशुक जड़ से पीर ll

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राजकिशोर मिश्र राज

योग दिवस[ योग वियोग हरे कलिकाल मराल पिए नित क्षीर जहाँ में l राज हिये अनुराग तड़ाग विराग कहाँ रणधीर जहाँ में l जीवन ज्योति सु योग विधा अनुशासन शासन वीर जहाँ में l वृत्ति निरोध प्रबोध अशोक दिनेश स ओज समीर जहाँ में l ------------------------------------------------------------------------------ राजकिशोर मिश्र

योग दिवस[ योग वियोग हरे कलिकाल मराल पिए नित क्षीर जहाँ में l राज हिये अनुराग तड़ाग विराग कहाँ रणधीर जहाँ में l जीवन ज्योति सु योग विधा अनुशासन शासन वीर जहाँ में l वृत्ति निरोध प्रबोध अशोक दिनेश स ओज समीर जहाँ में l ------------------------------------------------------------------------------ राजकिशोर मिश्र

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राजकिशोर मिश्र राज

खुशियाँ अनादि सागर , वट वृक्ष छाँव की l क्यों भागते शहर यह , घन बीच ठाँव सी l सदियाँ गुजर गयी हैं , खुशनुमा बहार में - मुझको भली लगे प्रिय , लय ताल गाँव की ll ================================ यक्ष प्रश्न विश्वास है वृक्ष l जीवन का अहसास है वृक्ष l

खुशियाँ अनादि सागर , वट वृक्ष छाँव की l क्यों भागते शहर यह , घन बीच ठाँव सी l सदियाँ गुजर गयी हैं , खुशनुमा बहार में - मुझको भली लगे प्रिय , लय ताल गाँव की ll ================================ यक्ष प्रश्न विश्वास है वृक्ष l जीवन का अहसास है वृक्ष l

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राजकिशोर मिश्र राज

सुख दुःख दोनों तेरे साथी फिर क्यों तू पछताता है l लिए उधारी थैला भटके रोता क्यों पछताता है l सोना चांदी हीरे मोती , मणि भी यहीं रह जाएगा अपना तुमको कहने वाले आग में तुम्हें जलाएंगे

सुख दुःख दोनों तेरे साथी फिर क्यों तू पछताता है l लिए उधारी थैला भटके रोता क्यों पछताता है l सोना चांदी हीरे मोती , मणि भी यहीं रह जाएगा अपना तुमको कहने वाले आग में तुम्हें जलाएंगे

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राजकिशोर मिश्र राज

चण्डिका === चण्डिका छंद या धरणी छंद में प्रत्येक चरण में १३ मात्राएँ होती है lप्रत्येक चरण में आठ ,पाँच पर यति अंत में चरणान्त रगण [२१२ आदि अंत गुरु मध्य लघु ] द्वय क्रमागत तुकांत होता है l =========================================== तेरह मात्रिक , चण्डिका l आठ पाँच यति , चण्डिका ll अंत रगण प्रिय चण्डिका , अनुपम छन्दस मंडिका ll ------------------------------------------------------------------------- निकुंज प्रबुद्ध वाहिनीl उत्कर्ष हर्ष दायिनी l माँ ज्ञान देवि शारदे l प्रभा सुधा से तार दे ll

चण्डिका === चण्डिका छंद या धरणी छंद में प्रत्येक चरण में १३ मात्राएँ होती है lप्रत्येक चरण में आठ ,पाँच पर यति अंत में चरणान्त रगण [२१२ आदि अंत गुरु मध्य लघु ] द्वय क्रमागत तुकांत होता है l =========================================== तेरह मात्रिक , चण्डिका l आठ पाँच यति , चण्डिका ll अंत रगण प्रिय चण्डिका , अनुपम छन्दस मंडिका ll ------------------------------------------------------------------------- निकुंज प्रबुद्ध वाहिनीl उत्कर्ष हर्ष दायिनी l माँ ज्ञान देवि शारदे l प्रभा सुधा से तार दे ll

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राजकिशोर मिश्र राज

दोहा छंद में -हाकलि छंद विधान परिभाषित ========== ========================================= चौदह मात्रिक छंद यह , वर्णित छंद विधान l त्रय चौकल गुरु अंत में , 'हाकलि' छंद सुजान ll राजकिशोर मिश्र

दोहा छंद में -हाकलि छंद विधान परिभाषित ========== ========================================= चौदह मात्रिक छंद यह , वर्णित छंद विधान l त्रय चौकल गुरु अंत में , 'हाकलि' छंद सुजान ll राजकिशोर मिश्र

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राजकिशोर मिश्र राज

 भौरें मधुमय गुंजन करते , 
कलियों से करते परिहास l
बाग़ -बगीचे खिल कर हँसते , 
आया मधुर प्रिये मधुमास l
राजकिशोर मिश्र राज

भौरें मधुमय गुंजन करते , कलियों से करते परिहास l बाग़ -बगीचे खिल कर हँसते , आया मधुर प्रिये मधुमास l राजकिशोर मिश्र राज

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राजकिशोर मिश्र राज

 प्रणय निवेदन हेतु हरि, दिए मोहि क्यों त्याग l
अनुनय विनय विषाद भरि, उपजा हिये विराग ll
राजकिशोर मिश्र राज

प्रणय निवेदन हेतु हरि, दिए मोहि क्यों त्याग l अनुनय विनय विषाद भरि, उपजा हिये विराग ll राजकिशोर मिश्र राज

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