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रामजी की बेटी

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रामजी की बेटी

बहुत दुखी होने के कारण राजा समुंदर के किनारे गए और समुद्र में कूद गए। भगवान द्वारिकाधीश ने राजा अजमल को समुद्र में दर्शन दिए। श्रीकृष्ण ने स्वंय बलरामजी के साथ उनके घर अवतरित होने का वरदान दिया और कहा कि वह खुद भादवा की दूज के दिन राजा अजमल के घर पुत्र रूप में आएंगे।

राजा अजमल ने देखा, कि भगवान के सिर पर पट्टी बंधी है। राजा अजमल जी ने पूछा भगवान आपको  यह चोट कैसे लगी। भगवान ने कहा, कि मुझे मेरे एक प्यारे भक्त ने लड्डू मारा। यह सुनकर राजा बहुत ही शर्मिंदा हुए अजमल ने भगवान से बोला, “मुझ अज्ञानी को कैसे पता होगा कि आप ही मेरे घर आए हैं ।”

©रामजी की बेटी
  #GaneshChaturthi  part 4

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रामजी की बेटी

फिर उन्होंने तय किया, कि संतान प्राप्ति की मनोकामना लेकर द्वारिकाधीश के दर्शन करने जाऊंगा। इस मंशा के साथ वह द्वारिकाधीश पहुंचे। भगवान द्वारिकाधीश के प्रसाद के रूप में लड्डू लेकर गए मंदिर में पहुंचकर राजा अजमल ने बहुत ही दुखी और भारी मन से भगवान द्वारिकाधीश की मूर्ति के सामने अपनी सारी व्यथा रखी।

अपनी सारी बात करने के बाद वो मूर्ति को एकटक देखते रहे। उन्हें ऐसे लगा कि भगवान की मूर्ति उन्हें मुस्कुराती हुई देख रही है। ऐसा देख अजमल जी को गुस्सा आया और उन्होंने वह प्रसाद रूपी लड्डू जो कि द्वारिकाधीश के लिए लाए थे, वह मूर्ति पर फेक दिया, जो कि द्वारिकाधीश की मूर्ति के सिर पर जा लगा। यह सब वाक्य देख मंदिर में स्थित पुजारी को लगा की राजा पागल हो गये है। पुजारी ने राजा अजमल जी को  बोला, कि भगवान यहां नहीं है। भगवान तो समुद्र में सो रहे हैं। अगर आपको उनसे मिलना है, तो जाओ समुद्र में जाकर उनसे मिलो।

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  #Chhuan part 3

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रामजी की बेटी

राज्य में भयानक अकाल पड़ा और राज्य में अच्छी बारिश की मनोकामना लेकर अजमल जी द्वारिकाधीश पहुंच गए। ऐसा माना जाता है, कि भगवान द्वारिकाधीश की कृपा से उनके राज्य में बहुत अच्छी बारिश हुई।

बारिश के ही दिन में जब एक दिन सुबह किसान अपने खेतों में जा रहे थे, तो रास्ते में उन्हें उनके राजा अजमल मिल गए। किसान उन्हें देख वापस घर की तरफ जाने लगे। यह देख राजा ने पूछा कि वापस क्यों जा रहे हो, तो किसानों ने बताया कि राजा अजमल जी आप निसंतान है, इसलिए आपके सामने आने से अपशगुन हो गया है और अपशगुन के समय में हम बुआई नहीं करेंगे।

राजा ने जैसे ही यह सुना तो बहुत दुखी हुए। लेकिन एक कुशल शासक और गरीबों के मसीहा होने के नाते उन्होंने किसानों को तो कुछ नहीं कहा, पर घर वापस आकर काफी निराश और परेशान हुए

©रामजी की बेटी
  #yaadein part 2

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रामजी की बेटी

रामदेव जी की कथा – इतिहासकारों के अनुसार श्री कृष्ण के अवतार रामदेव जी का अवतार सन 1442 में भादवा सुदी दूज के दिन राजस्थान के पोकरण के ताम्र वंशी राजा अजमल के यहां हुआ था।

भादुड़ा री बीज रो जद चंदो करे प्रकाश।
रामदेव बण आवसुं राखीजे विश्वास ।।

राजा अजमल श्री कृष्ण की भक्ती में लीन रहने के साथ ही धर्मपरायण राजा भी थे। लेकिन उनकी भी विडंबना थी। वह निसंतान थे, जिसके कारण वह काफी दुखी रहते थे। रामदेव जी के पिता राजा अजमल जो कि द्वारकाधीश के परम भक्त थे, हमेशा अपने राज्य की सुख शांति की मनोकामना के लिए  द्वारका जाते थे।

©रामजी की बेटी #yaadein #katha #Love #foryou part 1

#yaadein #katha Love #foryou part 1

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रामजी की बेटी

महान प्रज्ञासम्पन्न सत्यनारायण व्रत करने के प्रभाव से दूसरे जन्म में सुदामा हुए और उस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। लकड़हारा भिल्ल गुहों का राजा हुआ और अगले जन्म में उसने भगवान श्रीराम की सेवा करके मोक्ष प्राप्त किया। महाराज उल्कामुख दूसरे जन्म में राजा दशरथ हुए, जिन्होंने श्रीरंगनाथजी की पूजा करके अन्त में वैकुण्ठ प्राप्त किया। इसी प्रकार धार्मिक और सत्यव्रती साधु पिछले जन्म के सत्यव्रत के प्रभाव से दूसरे जन्म में मोरध्वज नामक राजा हुआ। उसने आरे से चीरकर अपने पुत्र की आधी देह भगवान विष्णु को अर्पित कर के मोक्ष प्राप्त किया। महाराजा तुंगध्वज जन्मान्तर में स्वायम्भुव मनु हुए और भगवत्सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्यों का अनुष्ठान करके वैकुण्ठलोक को प्राप्त हुए। जो गोपगण थे, वे सब जन्मान्तर में व्रजमण्डल में निवास करने वाले गोप हुए और सभी राक्षसों का संहार करके उन्होंने भी भगवान का शाश्वत धाम गोलोक प्राप्त किया।


इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अन्तर्गत रेवाखण्ड में श्रीसत्यनारायणव्रत कथा का यह पाँचवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।

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  #Mulaayam #katha part22

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रामजी की बेटी

उसका सम्पूर्ण धन-धान्य एवं सभी सौ पुत्र नष्ट हो गये। राजा ने मन में यह निश्चय किया कि अवश्य ही भगवान सत्यनारायण ने हमारा नाश कर दिया है। इसलिए मुझे वहां जाना चाहिए जहां श्री सत्यनारायण का पूजन हो रहा था। ऐसा मन में निश्चय करके वह राजा गोपगणों के समीप गया और उसने गोपगणों के साथ भक्ति-श्रद्धा से युक्त होकर विधिपूर्वक भगवान सत्यदेव की पूजा की। भगवान सत्यदेव की कृपा से वह पुनः धन और पुत्रों से सम्पन्न हो गया तथा इस लोक में सभी सुखों का उपभोग कर अन्त में सत्यपुर वैकुण्ठलोक को प्राप्त हुआ।

श्रीसूत जी कहते हैं - जो व्यक्ति इस परम दुर्लभ श्री सत्यनारायण के व्रत को करता है और पुण्यमयी तथा फलप्रदायिनी भगवान की कथा को भक्तियुक्त होकर सुनता है, उसे भगवान सत्यनारायण की कृपा से धन-धान्य आदि की प्राप्ति होती है। दरिद्र धनवान हो जाता है, बन्धन में पड़ा हुआ बन्धन से मुक्त हो जाता है, डरा हुआ व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है - यह सत्य बात है, इसमें संशय नहीं। इस लोक में वह सभी ईप्सित फलों का भोग प्राप्त करके अन्त में सत्यपुर वैकुण्ठलोक को जाता है। इस प्रकार मैंने आप लोगों से भगवान सत्यनारायण के व्रत को कहा, जिसे करके मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।

कलियुग में तो भगवान सत्यदेव की पूजा विशेष फल प्रदान करने वाली है। भगवान विष्णु को ही कुछ लोग काल, कुछ लोग सत्य, कोई ईश और कोई सत्यदेव तथा दूसरे लोग सत्यनारायण नाम से कहेंगे। अनेक रूप धारण करके भगवान सत्यनारायण सभी का मनोरथ सिद्ध करते हैं। कलियुग में सनातन भगवान विष्णु ही सत्यव्रत रूप धारण करके सभी का मनोरथ पूर्ण करने वाले होंगे। हे श्रेष्ठ मुनियों! जो व्यक्ति नित्य भगवान सत्यनारायण की इस व्रत-कथा को पढ़ता है, सुनता है, भगवान सत्यारायण की कृपा से उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। हे मुनीश्वरों! पूर्वकाल में जिन लोगों ने भगवान सत्यनारायण का व्रत किया था, उसके अगले जन्म का वृतान्त कहता हूं, आप लोग सुनें।

©रामजी की बेटी #Chhuan #katha part 21

#Chhuan #katha part 21

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रामजी की बेटी

पाँचवाँ अध्याय
श्रीसूत जी बोले - श्रेष्ठ मुनियों! अब इसके बाद मैं दूसरी कथा कहूँगा, आप लोग सुनें। अपनी प्रजा का पालन करने में तत्पर तुंगध्वज नामक एक राजा था। उसने सत्यदेव के प्रसाद का परित्याग करके दुख प्राप्त किया। एक बार वह वन में जाकर और वहां बहुत से पशुओं को मारकर वटवृक्ष के नीचे आया। वहां उसने देखा कि गोपगण बन्धु-बान्धवों के साथ संतुष्ट होकर भक्तिपूर्वक भगवान सत्यदेव की पूजा कर रहे हैं। राजा यह देखकर भी अहंकारवश न तो वहां गया और न ही उसने भगवान सत्यनारायण को प्रणाम ही किया। पूजन के बाद सभी गोपगण भगवान का प्रसाद राजा के समीप रखकर वहां से लौट आये और इच्छानुसार उन सभी ने भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इधर राजा को प्रसाद का परित्याग करने से बहुत दुख हुआ।

©रामजी की बेटी
  #Sunhera #katha part20

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रामजी की बेटी

कन्या कलावती भी आकाशमण्डल से ऐसी वाणी सुनकर शीघ्र ही घर गयी और उसने प्रसाद ग्रहण किया। पुनः आकर स्वजनों तथा अपने पति को देखा। तब कलावती कन्या ने अपने पिता से कहा - ‘अब तो घर चलें, विलम्ब क्यों कर रहे हैं?’ कन्या की वह बात सुनकर वणिकपुत्र सन्तुष्ट हो गया और विधि-विधान से भगवान सत्यनारायण का पूजन करके धन तथा बन्धु-बान्धवों के साथ अपने घर गया। तदनन्तर पूर्णिमा तथा संक्रान्ति पर्वों पर भगवान सत्यनारायण का पूजन करते हुए इस लोक में सुख भोगकर अन्त में वह सत्यपुर बैकुण्ठलोक में चला गया।

©रामजी की बेटी
  #uskaintezaar #katha part 19

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रामजी की बेटी

इसके बाद कलावती कन्या अपने पति को न देख महान शोक से रुदन करती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी। नाव का अदर्शन तथा कन्या को अत्यन्त दुखी देख भयभीत मन से साधु बनिया से सोचा - यह क्या आश्चर्य हो गया? नाव का संचालन करने वाले भी सभी चिन्तित हो गये। तदनन्तर वह लीलावती भी कन्या को देखकर विह्वल हो गयी और अत्यन्त दुख से विलाप करती हुई अपने पति से इस प्रकार बोली -‘ अभी-अभी नौका के साथ वह कैसे अलक्षित हो गया, न जाने किस देवता की उपेक्षा से वह नौका हरण कर ली गयी अथवा श्रीसत्यनारायण का माहात्म्य कौन जान सकता है!’ ऐसा कहकर वह स्वजनों के साथ विलाप करने लगी और कलावती कन्या को गोद में लेकर रोने लगी।

कलावती कन्या भी अपने पति के नष्ट हो जाने पर दुखी हो गयी और पति की पादुका लेकर उनका अनुगमन करने के लिए उसने मन में निश्चय किया। कन्या के इस प्रकार के आचरण को देख भार्यासहित वह धर्मज्ञ साधु बनिया अत्यन्त शोक-संतप्त हो गया और सोचने लगा - या तो भगवान सत्यनारायण ने यह अपहरण किया है अथवा हम सभी भगवान सत्यदेव की माया से मोहित हो गये हैं। अपनी धन शक्ति के अनुसार मैं भगवान श्री सत्यनारायण की पूजा करूँगा। सभी को बुलाकर इस प्रकार कहकर उसने अपने मन की इच्छा प्रकट की और बारम्बार भगवान सत्यदेव को दण्डवत प्रणाम किया। इससे दीनों के परिपालक भगवान सत्यदेव प्रसन्न हो गये। भक्तवत्सल भगवान ने कृपापूर्वक कहा - ‘तुम्हारी कन्या प्रसाद छोड़कर अपने पति को देखने चली आयी है, निश्चय ही इसी कारण उसका पति अदृश्य हो गया है। यदि घर जाकर प्रसाद ग्रहण करके वह पुनः आये तो हे साधु बनिया तुम्हारी पुत्री पति को प्राप्त करेगी, इसमें संशय नहीं।

©रामजी की बेटी #Sunhera #katha part 18

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रामजी की बेटी

भगवान हरि उसे अभीष्ट वर प्रदान करके वहीं अन्तर्धान हो गये। उसके बाद वह साधु अपनी नौका में चढ़ा और उसे धन-धान्य से परिपूर्ण देखकर ‘भगवान सत्यदेव की कृपा से हमारा मनोरथ सफल हो गया’ - ऐसा कहकर स्वजनों के साथ उसने भगवान की विधिवत पूजा की। भगवान श्री सत्यनारायण की कृपा से वह आनन्द से परिपूर्ण हो गया और नाव को प्रयत्नपूर्वक संभालकर उसने अपने देश के लिए प्रस्थान किया। साधु बनिया ने अपने दामाद से कहा - ‘वह देखो मेरी रत्नपुरी नगरी दिखायी दे रही है’। इसके बाद उसने अपने धन के रक्षक दूत को अपने आगमन का समाचार देने के लिए अपनी नगरी में भेजा।

उसके बाद उस दूत ने नगर में जाकर साधु की भार्या को देख हाथ जोड़कर प्रणाम किया तथा उसके लिए अभीष्ट बात कही -‘सेठ जी अपने दामाद तथा बन्धुवर्गों के साथ बहुत सारे धन-धान्य से सम्पन्न होकर नगर के निकट पधार गये हैं।’ दूत के मुख से यह बात सुनकर वह महान आनन्द से विह्वल हो गयी और उस साध्वी ने श्री सत्यनारायण की पूजा करके अपनी पुत्री से कहा -‘मैं साधु के दर्शन के लिए जा रही हूं, तुम शीघ्र आओ।’ माता का ऐसा वचन सुनकर व्रत को समाप्त करके प्रसाद का परित्याग कर वह कलावती भी अपने पति का दर्शन करने के लिए चल पड़ी। इससे भगवान सत्यनारायण रुष्ट हो गये और उन्होंने उसके पति को तथा नौका को धन के साथ हरण करके जल में डुबो दिया।

©रामजी की बेटी
  #Sunhera #katha part 17

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