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ankitkumartripat2563
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ankit kumar tripathi

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ankit kumar tripathi

भारतीय परम्पराओं के वैज्ञानिक रहस्य

भारतीय परम्पराओं के वैज्ञानिक रहस्य #बात #nojotovideo

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ankit kumar tripathi

corona ek jang hai aur iss jang main hmm sipahi hain .is jang ko ek sipahi ki trah ladke jeetna hai.

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ankit kumar tripathi

प्राकृतिक रोष है वायरस"
"मनुष्य"इस प्रकृति का बनाया हुआ एक ऐसा जीव है जिसे प्रकृति ने बुद्धि और विवेक दोनों दिया है। कभी-कभी सोचता हूं कि यह दोनों गुण मनुष्य को ही क्यों मिला शायद इसलिए मिला होगा कि वह अपने बुद्धि एवं विवेक दोनों का प्रयोग करके अपनी सभ्यता के विकास के साथ ही प्रकृति के अन्य सृजन का भी संरक्षण करेगा पर क्या मानव ने ऐसा किया? बिल्कुल नहीं ,बल्कि मनुष्य ने अपनी सभ्यता का तो विकास किया पर प्रकृति का संरक्षण एवं अन्य जीव-जंतुओं को संरक्षित करने के अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभाया ।आदिकाल से लेकर आज तक हम लोगों ने अपने विकास को स्वार्थ परक बनाए रखा। हमें नहीं भूलना चाहिए कि यदि प्रकृति हमारा सृजन कर सकती है तो हमारा विनाश भी कर सकती है ।आज हम जिस दौर में हैं वहां हम प्रकृति का तांडव देख रहे हैं । विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य जाति पर हमेशा खतरा मंडराता रहा है। यह खतरा कभी स्थल से तो कभी जल के माध्यम से तो कभी वायु के माध्यम से हमारे सामने आता रहा है। इन सबके बीच अनेक प्रकार की बीमारियों ने भी दस्तक दी है जिसने हमारा खूब नुकसान किया है। आज कोरोनावायरस भी इन्हीं तबाही में एक कड़ी के रूप मे है ।जो चीन के वुहान प्रांत से शुरू हुआ जिसके कारण इस वायरस को वुहान वायरस भी कहते हैं। पूरे दुनिया में लाखों लोग इसके शिकार हो चुके हैं और लगभग 4000 के करीब लोग मर चुके हैं। इसके रोकथाम की कोशिशें चल रही हैं पर प्रश्न यह है कि हांली  के दिन में ऐसे संक्रमण कारी वायरसों की खबरें आम बात क्यों हो गई है ?हर बार सैकड़ों  लोगों के आसपास मरने की खबरें  सामान्य हो गयी हैं ।फिर प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? हम इसके लिए कितने जिम्मेदार हैं? क्या हम ऐसी बीमारियों की जानकारी पहले ही पता नहीं लगा सकते? कभी इबोला, कभी जीका ,कभी निपाह वायरस ,कभी स्वाइन आदि जैसे संक्रमण वायरसों को बढ़ना बेहद चिंताजनक है।इन सबका सबसे  बड़ा कारण प्रकृति के साथ हमारा सामंजस्य का न बैठना है। प्रकृति के साथ हमारा व्यवहार शुरू से ही खराब रहा है जिसके कारण आज प्रकृति ने भी अपना व्यवहार हमारे साथ खराब कर लिया है।आज विश्व में फैल रही बीमारियां इस बात का जीता जागता प्रमाण है ।विश्व स्वास्थ्य संगठन( डब्ल्यूएचओ) की अधिकारिक वेबसाइट पर 2019 में स्वास्थ्य संबंधित विश्वव्यापी खतरों की सूची जारी की गई थी जिसमें इंसानों पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर चेताया गया है। दुनिया भर में हर साल करोड़ों लोग बीमारियों की चपेट में आकर मर जाते हैं। यह एक आधिकारिक आंकड़ा है पर वास्तविकता में यह संख्या और ज्यादा होगी। अब हम इसके लिए किसको दोषी ठहरायें। सरकारों को, सिस्टम को या वैज्ञानिकों को , मैं कहता हूं कि किसी को भी ठहरा लो अन्ततोगत्वा इसका जिम्मेदार मनुष्य ही होगा।क्योंकि हर जगह मनुष्य ही बैठा है तो व्यापक जिम्मेदारी किसी संस्था के बजाय पूरे मनुष्य जाति को देना ही ठीक होगा ।बीमारियों से मृत्यु हो या प्राकृतिक आपदाओं से यह सब प्राकृतिक विनाश का एक संकेत है। यह विनाश हो भी क्यों ना  क्योंकि हमारी प्रतियोगिता  तो केवल जीडीपी बढ़ाने में रही है। इसके लिए प्रकृति का विनाश करने में हमने कभी कोई संकोच नहीं किया तो प्रकृति भी हमारा विनाश करने में संकोच क्यों करेगी।             जब कभी कोई बीमारी आती है तो लेखकों की कलम उस बीमारी के लक्षण, कारण और बचाव के बारे में  लिखते नहीं थकते पर ऐसे लेखन का क्या फायदा जिससे जागरण ही ना हो पाए। अब उस बीमारी के कारण लक्षण लिखने के बजाय नित नए उत्पन्न हो रही बीमारियों पर व्यापक चिंतन करके पूरे मानव जाति को कटघरे में खड़ा करना आवश्यक है और मनुष्य के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को समझने की आवश्यकता है ।नहीं तो हर महीने नई बीमारियों और आपदाओं के बारे में लिखने का यह व्यवसाय समाप्त होने वाला नहीं है बल्कि आने वाले समय में थका देने वाला है ।आज कोरोनावायरस के लिए तो कल किसी और वायरस के लिए, इस तरीके से हम एक दूसरे को घेरते रहेंगे पर अब समय आ गया है कि हम अपनी जिम्मेदारियों को समझें और व्यापक मंथन करके इन सब से निपटने का प्रयास करें ।यह सब कहने का कारण है कि पहले दशकों में एक बार महामारी फैलती थी पर पर थी पर पिछले एक दशक से लगभग हर वर्ष कुछ नए प्रकार की बीमारियां महामारी का रूप ले रही हैं। इस कारण से ही मैं इसमें व्यापक चिंतन को बल देने की को बल देने की बात कर रहा हूं।  #World_Speech_Day


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