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radheshyambairwa7473
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RADHESHYAM BAIRWA

B. Ed 1 years

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RADHESHYAM BAIRWA

🐋
     *_मुंसी प्रेमचंद जी की एक सुंदर कविता, जिसके एक-एक शब्द को बार-बार पढ़ने को मन करता है-_*

_ख्वाहिश नहीं मुझे_
_मशहूर होने की,"_

        _आप मुझे पहचानते हो_
        _बस इतना ही काफी है।_

_अच्छे ने अच्छा और_
_बुरे ने बुरा जाना मुझे,_

        _जिसकी जितनी जरूरत थी_
        _उसने उतना ही पहचाना मुझे!_

_जिन्दगी का फलसफा भी_
_कितना अजीब है,_

        _शामें कटती नहीं और_
        _साल गुजरते चले जा रहे हैं!_

_एक अजीब सी_
_'दौड़' है ये जिन्दगी,_

        _जीत जाओ तो कई_
        _अपने पीछे छूट जाते हैं और_

_हार जाओ तो_
_अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं!_

_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अक्सर,_

        _मुझे अपनी_
        _औकात अच्छी लगती है।_

_मैंने समंदर से_
_सीखा है जीने का सलीका,_

        _चुपचाप से बहना और_
        _अपनी मौज में रहना।_

_ऐसा नहीं कि मुझमें_
_कोई ऐब नहीं है,_

        _पर सच कहता हूँ_
        _मुझमें कोई फरेब नहीं है।_

_जल जाते हैं मेरे अंदाज से_
_मेरे दुश्मन,_

              _एक मुद्दत से मैंने_
       _न तो मोहब्बत बदली_ 
      _और न ही दोस्त बदले हैं।_

_एक घड़ी खरीदकर_
_हाथ में क्या बाँध ली,_

        _वक्त पीछे ही_
        _पड़ गया मेरे!_

_सोचा था घर बनाकर_
_बैठूँगा सुकून से,_

        _पर घर की जरूरतों ने_
        _मुसाफिर बना डाला मुझे!_

_सुकून की बात मत कर_
_ऐ गालिब,_

        _बचपन वाला इतवार_
        _अब नहीं आता!_

_जीवन की भागदौड़ में_
_क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?_

        _हँसती-खेलती जिन्दगी भी_
        _आम हो जाती है!_

_एक सबेरा था_
_जब हँसकर उठते थे हम,_

        _और आज कई बार बिना मुस्कुराए_
        _ही शाम हो जाती है!_

_कितने दूर निकल गए_
_रिश्तों को निभाते-निभाते,_

        _खुद को खो दिया हमने_
        _अपनों को पाते-पाते।_

_लोग कहते हैं_
_हम मुस्कुराते बहुत हैं,_

        _और हम थक गए_
        _दर्द छुपाते-छुपाते!_

_खुश हूँ और सबको_
_खुश रखता हूँ,_

        _लापरवाह हूँ ख़ुद के लिए_
        _मगर सबकी परवाह करता हूँ।_

_मालूम है_
_कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी_

        _कुछ अनमोल लोगों से_
        _रिश्ते रखता हूँ।_ ✍🏻 🙏 Rajesh Kumar Suman Zaniyan 
   मुंशी प्रेमचंद की कविता

Rajesh Kumar Suman Zaniyan मुंशी प्रेमचंद की कविता

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RADHESHYAM BAIRWA

ऐ जिन्दगी तू बहुत प्यारी,
तेरे सिवा मेरी कोई ना दुलारी |
तु मेरी चाहत है, तू मेरी आशिकी हैं |
तेरे बिन रहे अकेला, 
तेरी याद में लगाऊ प्याज का ठेला ||
ऐ जिन्दगी................... ना दुलारी |
तेरी याद बहुत सताए 
 बिन रोए  बहुत रुलाए
तू ना आए जैसे गर्मियों में पानी, 
आपके बिना ना रहे मेरे शब्दों  वाणी |
ए जिंदगी तू बहुत प्यारी, 
तेरे सिवा मेरी कोई ना दुलारी ||
यदि आप हो तो लगे सोने पर सुहागा
यदि आप ना हो तो उड़ाऊ में कागा ||
तेरी याद में दिल धड़क उठा
तू ना हो तो यह जीवन तड़प उठा ||
ए जिंदगी तू बहुत प्यारी,
तेरे सिवा मेरी कोई ना दुलारी ||
                    लेखक  R. S. BAIRWA मेरी जीवन की पहली कविता - "ए जिंदगी तू बहुत प्यारी"

मेरी जीवन की पहली कविता - "ए जिंदगी तू बहुत प्यारी"


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