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jitendrakumarsom2011
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Jitendra Kumar Som

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Jitendra Kumar Som

जो कुआँ खोदता है वही गिरता है

एक बादशाह के महल की चहारदीवारी के अन्दर एक वजीर और एक कारिंदा रहता था। वजीर और कारिंदे के पुत्र में गहरी दोस्ती थी। हम उम्र होने के कारण दोनों एक साथ पढ़ते, खेलते थे। वजीर के कहने पर कारिंदे का लड़का उसके सब काम कर देता था। वह वजीर को चाचा कहकर पुकारता था। बादशाह कारिंदे के पुत्र को बहुत प्रेम करता था। बादशाह के कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कारिंदे के पुत्र को अपने पुत्र के समान ही समझते थे। बादशाह ने उसे महल और दरबार में आने-जाने की पूरी छूट दे रखी थी। कारिंदे के पुत्र के प्रति बादशाह का प्रेम देखकर वजीर को बहुत ईर्ष्या होती थी। वजीर चाहता था कि बादशाह केवल उसके पुत्र को ही प्रेम करें। यदि बादशाह ने उसके पुत्र को गोद ले लिया तो बादशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ही राजगद्दी पर बैठेगा। वजीर की इच्छा के विपरीत बादशाह का प्रेम कारिंदे के पुत्र के प्रति बढ़ता ही गया। बादशाह वजीर के पुत्र को जरा भी पसंद नहीं करते थे। इसलिए वजीर कारिंदे और उसके पुत्र से मन-ही-मन ईर्ष्या करने लगा।

वजीर ने कारिंदे के पुत्र को मारने का निश्चय किया। वजीर ने कारिंदे के पुत्र को रुमाल और पैसे देकर गोश्त लाने के लिए कहा। वजीर ने कारिंदे के पुत्र को अच्छी तरह समझाया कि गोश्त बाजार में गली के नुक्कड़ वाली दुकान से ही लाना। कारिंदे का बेटा रुमाल और पैसे लेकर बाजार की ओर चल दिया। उसने देखा कि उसका मित्र वजीर का बेटा भी वहाँ पर खेल रहा है। वजीर के लड़के ने कारिंदे के पुत्र से कहा कि तुम मेरा दांव खेलो, मैं जाकर गोश्त ले आऊँगा। कारिंदे के पुत्र ने उसे पैसे और रुमाल देकर दुकान का पता बता दिया। इस प्रकार वजीर का पुत्र गोश्त लेने चला गया और कारिंदे का पुत्र दांव खेलने लगा। वजीर के पुत्र ने दुकानदार को पैसे और रुमाल देकर कहा कि इसमें गोश्त बाँध दो। कसाई ने रुमाल में बने हुए निशान को पहचान लिया। इस रुमाल को वजीर ने कसाई को दिखाते हुए कहा था कि जो लड़का इस रुमाल को लेकर गोश्त लेने आए तुम उसे मौत के घाट उतार देना। कारिंदे के पुत्र को मारने के लिए वजीर ने कसाई को पैसे भी दिए थे। कसाई ने अन्दर भट्ठी जलाकर सारी तैयारी पहले ही कर ली थी।

कसाई ने रुमाल और पैसे लेकर उस लड़के को वहाँ बैठने के लिए कहा और स्वयं अन्दर गोश्त लेने चला गया। तभी वहाँ पर लड़का भी चला गया। कसाई ने तुरंत उस लड़के को उठाकर जलती हुई भट्ठी में झोंक दिया। कारिंदे का पुत्र अपना दांव खेलकर अपने घर जा रहा था कि उसे रास्ते में वजीर मिल गया। कारिंदे के पुत्र ने पूछा―‘चाचा, भैया गोश्त ले आया?’ इतना सुनकर वजीर के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। तभी कारिंदे के पुत्र ने कहा ―'चाचा भैया ने मुझसे रुमाल और पैसे ले लिए थे और कहा कि तुम मेरा दांव खेल लो, मैं गोश्त लेकर घर चला जाऊँगा। मैंने भैया को दुकान का पता भी बता दिया था।' वजीर की आँखों के आगे अँधेरा छा गया और उसके मुख से एक शब्द भी नहीं निकला। अपने पुत्र को याद करता हुआ वजीर अपने घर चला गया। वजीर कह रहा था कि जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है उसमें स्वयं गिरता है।

शिक्षा :- इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। साभार:- 'कहावतों की कहानियाँ'

©Jitendra Kumar Som
  #navratri जो कुआँ खोदता है वही गिरता है

#navratri जो कुआँ खोदता है वही गिरता है #प्रेरक

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Jitendra Kumar Som

# throat infection medicine

# throat infection medicine #जानकारी

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Jitendra Kumar Som

अजगर बना पति

त्रिपुरा के पहाड़ी अंचल में दो सुंदर बहनें रहती थीं। उनके बालपन में ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता अचाइ (पुरोहित) थे। उन्होंने पत्नी की मृत्यु के पश्चात दूसरा विवाह नहीं किया। उन्हें भय था कि विमाता उनकी पुत्रियों का लालन-पालन ठीक ढंग से नहीं कर पाएगी। पिता के स्नेह-दुलार में पुत्रियाँ पली-बढ़ीं।

अचाइ (पुरोहित) की आमदनी बहुत कम थी। वह झूम खेती (स्थान बदलकर की जाने वाली खेती) के द्वारा आजीविका कमाता था। उसकी पुत्रियाँ भी पिता की परेशानी समझती थीं। अतः वे अपने पिता से अनुचित माँग नहीं करती थीं।

वर्षा ऋतु में उनके कष्ट और भी बढ़ जाते। कई वर्षों से मकान की मरम्मत नहीं हो पाई थी। अतः बरसात का पानी घर में घुस जाता। यूँ तो उनका घर एक ऊँचे मचान पर था किंतु पानी वहाँ भी पहुँच जाता। एक दिन दोनों बहनें खेत से थककर लौटीं। पूरे घर में पानी भरा हुआ था। छोटी बहन के मुँह से आह निकली। वह तड़पकर बोली, "दीदी, अब हम क्या करें?" "ठहरो, देखती हूँ शायद कुछ मायदूल (भात का बना त्रिपुरी भोजन) पड़ा होगा। अभी उसे खाकर ही भूख मिटाते हैं।" कहकर बड़ी बहन ने सात्वंना दी।

बड़ी बहन ने थैला टटोला किंतु खाने को कुछ नहीं मिला। सब कुछ बरसात के पानी में भीगकर खराब हो गया था। उसकी आँखों में आँसू आ गए। छोटी बहन का दुख वह सह न सकी, उसने प्रतिज्ञा की कि "मैं उसी को अपना पति मानूँगी, जो मेरे घर को सँवार देगा।"

जिस तरह सबके कष्ट दूर होते हैं, उसी तरह वह दुखभरी रात्रि भी बीत गई। अगले दिन जब दोनों बहनें घर लौटीं तो घर की कायापलट देखकर दंग रह गईं। सारे घर की मरम्मत की गई थी तथा खाने-पीने का सारा सामान भी मौजूद था। इतने खाद्य पदार्थ उन्होंने पहले कभी नहीं देखे थे। अचाइ ने भी घर का परिवर्तन देखा तो उत्साह के साथ बोला, "हो नहो, यह तो वनदेवी की कृपा है। उससे तुम लोगों का कष्ट नहीं देखा गया। इसलिए उसने हमारी सहायता की है।" पिता तो भरपेट खाकर सो गए किंतु बड़ी बहन उनके अनुमान से संतुष्ट न थी।
  
वह चाँदनी रात में बाहर आकर खड़ी हो गई। तभी उसकी नजर एक विशालकाय अज़गर पर पड़ी। वह अजगर उनके घर से निकलकर जा रहा था। बड़ी बहन ने उसी क्षण निर्णय ले लिया कि वह अजगर को ही अपना पति मानेगी। उसे पूरा विश्वास था कि उनके घर की दशा सँवारने में अजगर का ही हाथ है। छोटी बहन के लाख समझाने पर भी वह अकेले खाना खाने नहीं बैठी। तब हार कर छोटी बहन ने अपने जीजा जी को पुकारा "कुमुइ, कुमुइ, माइटानानि फाइदिदो।' (जीजा जी, जीजा जी। खाना खाने आइए।) यह आवाज सुनते ही अजगर घर में आ पहुँचा। दोनों बहनें उसके विशाल स्वरूप से घबरा गईं किंतु वह शांति से भोजन करके लौट गया।

यह क्रम काफी समय तक चलता रहा। एक दिन अचाइ (पुरोहित) को पता चला तो वह आग-बबूला हो उठा। उसकी सुंदरी पुत्री एक अजगर को पति माने, यह उसे स्वीकार न था। जब बड़ी बेटी खेत पर गई तो उसने छोटी बेटी से कहा, "तुम रोज की तरह जीजा जी को पुकारो।"

छोटी ने समझा कि शायद उससे मिलना चाहते हैं। उसने फिर हाँक लगाई- "कुमुइ, कुमुइ माइटानानि फाइदिदो।' अजगर ज्यों ही मचान के पास पहुँचा, आड़ में छिपे अचाइ (पुरोहित) ने तेज हथियार से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। छोटी फूट-फूटकर रोने लगी। बड़ी बहन ने जब अपने अजगर की मृत्यु का समाचार सुना तो वह दुखी हो गई। कुछ ही दिनों में उसके मन में अजगर के प्रति प्रेम-भाव जाग गया था। उससे वियोग की कल्पना से वह भयभीत हो उठी। बिना एक शब्द कहे वह नदी की ओर चल दी।

छोटी बहन भी उसके पीछे चल दी। बड़ी ने आँखें बंद कीं और रोती-रोती नदी के पानी में उतरती चली गईं। बेचारी छोटी उसे पुकारते रही। "मत जाओ, दीदी। मत जाओ, दीदी।" बड़ी बहन ज्यों ही नदी में उतरी तो सीधे एक राजभवन में पहुँच गई। जल के नीचे इतना सुंदर महल देखकर वह दंग रह गई। प्रवेश द्वार पर उसका अजगर पति स्वागत के लिए खड़ा था। उसके बाद वह वहीं सुखपूर्वक रहने लगी।

©Jitendra Kumar Som
  #Silence अजगर बना पति

#Silence अजगर बना पति #पौराणिककथा

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Jitendra Kumar Som

चालाक गधा

एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया। वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था, अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिए |

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है, वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर, अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया। सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे-वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुँच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखो, तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी, बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि, तुम्हे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो तुम्हारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में तुम्हे हतोत्साहित होकर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर, उसे सीढ़ी बनाकर, बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

©Jitendra Kumar Som
  #sadquotes चालाक गधा

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