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amreshsinha1905
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अमरेश सिन्हा

हम शायर हैं, किसी दर्द को ज़ाया नहीं करते....

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अमरेश सिन्हा

इक चाँद हीं तो है हमारे-तुम्हारे दरमयां
वो भी रफ़्ता- रफ़्ता  अमावस का हो रहा है।

©अमरेश सिन्हा
  #Shayar #Shayari
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अमरेश सिन्हा

पकड़े  #कोना#
नहीं तो पड़ेगा  #रोना#
##कोरोना##
22.03.2020 #कोरोना

कोरोना

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अमरेश सिन्हा

होली की सपरिवार हार्दिक बधाई। 
अमरेश कुमार #Happy_holi
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अमरेश सिन्हा

जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में, 
कउन सा रंग, लगिहे कउन अंग, 
किसको ढूंढे हम दो तल्ले में,
आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में।

लाल-हरा सब रंग मिलाईबे, 
भर अंगनवा खूब पियराई बे, 
कौन रंगिये हमके कल्ले में, 
फागुआ गुजरिये हाथ मल्ले में, 
आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में। त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में,

त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में, #कविता

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अमरेश सिन्हा

मकानों के छत से काला पानी टपक रहा था, 
आग बुझाने के बाद पानी स्याह हो गया था, 
उस कमरे की दीवारें कालिख हो चुकी थी, 
अभी तीन महीने पहले वो जहाँ रहने आए थे,
वहाँ कुछ पहचान में नहीं आ रहा था, 
जो आलमारी उसने खरीदी थी, 
वो लगभग टीन की काली पत्तर लग रही थी, 
उसमें रखी उसकी बीबी की साड़ियाँ और कपड़े,
सब कुछ जलकर सिकुड़ गये थे ,
उसके बच्चें के किताब की रैंक आधी जली थी, 
पर,  किताबें सारी जल चुकी थी,
जिन्हें लेकर आया था गाँव से यहाँ दुनिया बसाने, 
उन्हें यमुना में बहाकर आ रहा था क्योंकि,
जले को जला कर संस्कार नहीं किया जाता, 
पर जाने फिर भी वो पागलों की तरह क्या ढूँढ रहा था ,
घर में जमे राख में, 
आखिर उसे मिल ही गया, 
उस फोटो का अधजला टुकड़ा, 
जो पिछले रविवार कुतुब मीनार पर,
सबने साथ में खिंचवाई थी।
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अमरेश सिन्हा

मकानों के छत से काला पानी टपक रहा था, 
आग बुझाने के बाद पानी स्याह हो गया था, 
उस कमरे की दीवारें कालिख हो चुकी थी, 
अभी तीन महीने पहले वो जहाँ रहने आए थे,
वहाँ कुछ पहचान में नहीं आ रहा था, 
जो आलमारी उसने खरीदी थी, 
वो लगभग टीन की काली पत्तर लग रही थी, 
उसमें रखी उसकी बीबी की साड़ियाँ और कपड़े,
सब कुछ जलकर सिकुड़ गये थे ,
उसके बच्चें के किताब की रैंक आधी जली थी, 
पर,  किताबें सारी जल चुकी थी,
जिन्हें लेकर आया था गाँव से यहाँ दुनिया बसाने, 
उन्हें यमुना में बहाकर आ रहा था क्योंकि,
जले को जला कर संस्कार नहीं किया जाता, 
पर जाने फिर भी वो पागलों की तरह क्या ढूँढ रहा था ,
घर में जमे राख में, 
आखिर उसे मिल ही गया, 
उस फोटो का अधजला टुकड़ा, 
जो पिछले रविवार कुतुब मीनार पर,
सबने साथ में खिंचवाई थी।
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अमरेश सिन्हा

#चराग़
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अमरेश सिन्हा

#waqt


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