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vipinkumaryadav2702
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kavi Vipin Kumar Yadav

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kavi Vipin Kumar Yadav

🌹मेरे देश की मिटटी इतनी अच्छी उसने हमको लाल दिया।   🌹
  रीतुओ की भारी मार भी खा कर उसने उसको पाल दिया।    🌹
  खेल के मिटटी खा के मिटटी वह भी एक हथियार् बना।🌹               
 दूर गांव का रहने वाला वो लाल भी ढाल बना। 🌹                     
  देश की रक्षा के खातिर जाने को सीमा पर आतुर् है।      🌹                
  सैनिक् नहीं वो शेर है मेरा वो भी बहुत बहादूर् है।        🌹                
    जाकर सीमा पर उसने ये ललकार सुनाई है।          🌹                       
  भूल जाय वो अपनी आंखे जिसने आंख दिखाई है         🌹                
    मेरे देश की मिटटी इतनी अच्छी उसने हमको लाल दिया  🌹        रितुओ कि भारी मार भी खाकर उसने उसको पाल दिया। 🌹          🌹विपिन यादव द्वारा लिखित

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kavi Vipin Kumar Yadav

बिहार की बेटी को समरपित

वो नारी कितनी वीरनी थी जिसने नरसंहार किया
मर कर भी उसने नारी का उद्धार किया
वह वीर द्रोपदी नारी थी यह वीर दामिनी नारी है
वह भी एक सबला नारी थी यह भी एक सबला नारी
 है
वह द्वापर की सुनी कहानी थी यह कलयुग की याद जुबानी है
वह राजाओं की बेटी थी यह बिटिया हिंदुस्तानी है
मौन होके सुन सकते नहीं नारी का अपमान
देख लो तुम दूर जनों गरजती आंखों का तूफान
धन्य है उसके मां-बाप जिसने उसको जन्म दिया
धन्य है वह गांव गली जहां पर उसने खाया पिया 
सोचो अगर आज चूक जाओगे तो भीषण अनर्थ कभी नहीं रोक पाओगे

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kavi Vipin Kumar Yadav

मेरे देश ने मुझको जो भी दिया कोई और दे सकता नहीं
पुरुषों में जहां पर राम मिले नारी में वहीं पर सीता है
ग्रंथों में जहां रामायण है भागवत में वहीं पर गीता है
पक्षियों में जहां पर मोर मिले पशुओं में वहीं पर चीता है
तालों में जहां नैनीताल मिले नदियों में वहीं पर गंगा है
शहरों में जहां नौकरी मिली गांवों में वहीं पर धंधा है 
नगरों में जहां सड़कें बनी गांवों में वहीं पर खड़ंजा है
मैदानों में जहां है खेत बने कस्बों में वही सतखंडा है
खेलों में जहां पर हांकी है वर्दी वहां की खाकी है
वह देश कभी आजाद नहीं आजादी अभी भी बाकी है
जिसका तिरंगा प्यारा है जय हिंद उसी का नारा है 
जय हिंद जय भारत

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kavi Vipin Kumar Yadav

प्रथम प्रेम दिवस पर कविता                                                 🌹🌹🌹🌹🌹🌹                                                   प्यार की किस्से कैसे होते शायद अब हमको मालूम है.                      नींद तो मेरी टूट गई है शायद यह भी उसको मालूम है.                     यह फागुन का महीना अब तो सावन जैसा लगता है.                   उसके कानों का कुंडल अब तो कनक धतूरा सा दिखता है.             उसके अधरो की लाली उगते सूरज सी लगती है.                        जब घूंघट पट से नयन झांकती वो मुझसे मिलती है.                           तब चंचल नयनो में कजरा चहका चहका सा लगता है.                        जब गजब घनेरी जुल्फों को वो लहराती है.                                 तब उसकी जुल्फों का गजरा रजनीगंधा लगता है                        जब उसके दिल की धड़कन धक धक धक करती है.                तब उसके मन की प्रेम पवन मेरे​ हृदय पर दस्तक देती है.                 जब बरस बदरिया सावन की झम झमा झम बरसी है                  तब वह जोगन सी बन दीवानी पिया मिलन को तरसी है.               वह प्रेमभाव की प्यासी है शायद अब हमको मालूम है.              नींद मेरी टूट गई है शायद यह भी उसको मालूम है.                            विपिन यादव द्वारा लिखित Vipin yadav

Vipin yadav


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