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Arbind Kumar Gupta

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Arbind Kumar Gupta

चलो हम तुझे घर झोड़ आये. 
हम तो कोई भगवान नहीं. 
नहीं बनना है मुझे खुदा. 
मानव हुँ मानवता का धर्म निभा रहा हुँ. 
क्यों तड़प, बिलख के रो रहे हो. 
पैदल चल के मर रहे हो. 
अपनी पता तो बता. 
चलो हम तुझे घर झोड़ आये. 
ज़ालिम दुनिया है जुमलेबाजी करती है. 
गरीबी पर वादा कर अमीरों को उथान करती है. 
पैसे तो बहुत कमा लिया. 
लेकिन सकून नहीं मिलती है इन पैसे से. 
मायूस चेहरों को जब खुशी मे देखा. 
उससे  भी खुशी अपने दिल मे पाया. 
जन्म लेने की मकसद पूरा कर लू. 
काल्पनिक दुनिया मे बिलेन, 
तो रियल लाइफ मे हीरो बन लू.

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Arbind Kumar Gupta

सांसे  चल रही है  इसे रोका मत कर. 
दर्द होता है, रुक रुक के दिल पर ठोका मत कर 
जीने की तमना  अभि बहुत है बाकि. 
उड़ती पतंग की डोर योही खींचा मत कर.

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Arbind Kumar Gupta

#Motivation मौत भी क्या हकीकत चीज है. 
जिसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता. 
जब तक इससे दूर भागो. 
गीदड़ भी शेर बनकर दहाड़ देता है. 
मगर जिस दिन इससे प्यार हो जये न. 
बबर शेर भी गीदड़ बनकर रास्ता नाप लेता है.
       ........  अरबिंद कु गुप्ता
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Arbind Kumar Gupta

जिस प्यार को देखा करते थे अपना. 
उस प्यार को हमने सपने मे सपना देखा. 
जिस दिल पर मारकर जा रहे थे बेवफा का मोहर. 
उस दिल से निकला आवाज अपना देखा.. 
                       ......... अरबिंद कु गुप्ता

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Arbind Kumar Gupta

भरोसे की इम्तिहान  हर वो गलतफहमी लेती है 
जो अपने कभी की ही न हो 
लोग दूर तो हो जाते है ऐसी
जैसे तुम्हे उनसे कुछ था ही नहीं.

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Arbind Kumar Gupta

न माना मुझे एक दिवस के रूप मे 
रहने दे मुझे नग्न  औरत के रूप मे 
मेरे दिल को चिडता, खरोंचता है. 
तुम्हारी हमदर्दी एक दिन की. 
तुमने काट  दिया मेरी इज्जत 
रूपी पेड़  पौधों  ki.
जाला दिया त्वचा रूपी उपजाऊ  भूमि को 
खाधो और रासायनिक छिडकावो से. 
अब तो डर भी लगता है. 
तुम्हे आँचल मे रखने से. 
लेकिन क्या करू, तुमने दे दिया है दर्जा माँ की. 
मै तड़प जाऊंगा, लेकिन तुम्हे तड़पने कैसे दू 
तुम मुझसे सौ  चीज मांग ले 
लेकिन एक पेड़ पौधा तो लगा दे, 
मेरी इज्जत ढकने ki.

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Arbind Kumar Gupta

आँखों और दिल का क्या दोस्ती  होती है. 
आंखे सुंदरता को देख, दिल को समझने को कह देता है. 
बेवफा निकल जाये  जनाब जब अपनी गुरुर मे 
दिल तड़प, आँखों को रोने को कह देता है 
                            ................. अरविन्द कु गुप्ता

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Arbind Kumar Gupta

मै गरीब हुँ न साहब. 
गम को खा  कर,,आशु  को पीकर जी लेता हुँ. 
महल न है तो क्या हुआ साहब, 
घास फुस के झोपड़ी  मे ही सो लेता हुँ. 

मै गरीब हुँ न साहब, 
दिन मे धुप और रात मे अंधेरा को ही कपड़ा समझ 
कर इज्जत को ढक  लेता हुँ. 
जब होती है गाँव मे सादी अमीरों की, 
दूर कोने मे खड़े होकर  भोजन की स्वाद सूंघ कर, 
पकवान की स्वाद ले लेता हुँ. 

मै गरीब हुँ न साहब 
गम को खा कर, आशु को पीकर जी लेता हुँ. 
जब बच्चे रोते है  भूख से, 
डंडे  से पिट कर सुला देता हुँ. 
जब न हो बर्दास्त भूख की सीमा. 
पानी मे नमक घोलकर पीला देता हुँ. 

मै गरीब हुँ न साहब हर दुख को सह लेता हुँ. 
पैसे नहीं है बच्चे पढ़ाने की, 
फिर भी स्कूल  भेज देता हुँ. 
हमारे तो बड़े सपने होते है केवल खाने की, 
इसलिए बच्चों को स्कूल की खिचड़ी  का सपना दे देता हुँ. 
नसीब न होती है दाल और सब्जी की, 
इसलिए भात मे ही नमक लपेट कर खींच देता हुँ. 

मै गरीब हुँ न साहब, हर गम को सह लेता हुँ. 
लाख बरसते  है कहर मौसम की, 
हर मौसम मे अपने को ढाल लेता हुँ. 
ढंडी पड़े जब जोड़ो की, पुआल को ही 
रजाई समझ कर सो जाता हुँ. 
जब कहर हो वर्षा और बदल गर्जन की, 
घर के कोने मे दुबक रह लेता हुँ. 
हम तो धन्यवाद  करते है गर्मी की, 
जो खेत और खलियानो मे चैन से सो लेता हुँ. 

मै गरीब हुँ न साहब. 
गम को खा कर 
आशु को पीकर जी लेता हुँ......... अरबिंद कु गुप्ता

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Arbind Kumar Gupta

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Arbind Kumar Gupta

मै कोरोना हुँ. 
आपदा हुँ,  बिपदा हुँ, महामारी हुँ,  प्रलयकारी  हुँ 
जो समझ मे आये  वो कह लो 
क्यूकी मै कोरोना हुँ.

डर कर हमसे घर मे दुबक जाओगे  तो बच जाओगे 
अपना समझ कर लोगो से मिलोगे तो 
खाक मे मिल जाओगे 
क्यूकी मै कोरोना हुँ. 

लड़ने की ताकत किसी मे नहीं है मुझसे. 
बचा हो या जवान सभी को मारने  की ताकत है मुझमे. 
तड़पते रह जाओगे बचाने की ताकत न है किसी मे. 
क्यूकी मै कोरोना हुँ. 

मान लो कहना डॉक्टरों  की. 
समेट लो अनावश्यक  सपनो की. 
जिन्दा रहे तो फिर पा लोगो 
मेरा क्या है मै तो चाहत  रखता हुँ नये खून पिने की. 
क्यूकी मै कोरोना हुँ. 

रख लो साफ सुथरा घरों और अपनों की. 
प्यार पा लो घर बैठे माता पिता और बच्चों की. 
भूल जाओ काम धाम और सपनो की. 
क्यूकी मै कोरोना हुँ.............. अरविन्द कु गुप्ता..

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