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आरती राय

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आरती राय

क्यों तरसाये कारी बदरिया
आँख मिचौली खेले भरी दुपहरिया
झूला झूलावन मोहे आये सँवरिया
आ जाओ अब कारे-कारे बदरिया।
मोहे भा रही अब हरी-हरी चुड़ियाँ
वन उपवन हरियाली ले आओ रे
प्यारे मेघा नभ छा जाओ रे 
मस्त मल्हार सखियन गाओ रे। बरसो मेघा

बरसो मेघा

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आरती राय

बचपन की शैतानियाँ दिल तो बच्चा है(क्षणिका)
*******************

दिल तो बच्चा है
 अक्ल का कच्चा है
खुशियों को तरसता है
छोटी छोटी खुशियाँ
पाकर बच्चों की तरह 
मचलता है।
दिल तो बच्चा है।
शौक पूरे कर आज 
सुकून पाता है।
कल क्या होगा 
नहीं सोच कर
घबराता है।
दिल तो बच्चा है।
बच्चों की मस्ती देख 
अपना बचपन याद आये
लूडो खेलने में
साँप के काटने से
आज भी डर जाये।

आरती राय.
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आरती राय

आबादी तो है मगर सोच
*******
यह कैसी लाचारी है
शायद इक बीमारी है।

 स्वार्थ की झोली है बड़ी 
प्यार और अपनेपन से ऊपर 

      अपने आप में जीते सभी 
 मुश्किल से प्यार मिलता है

वक्त की कमी का रोना रोते
अक्सर आँखों में आँसू आते

दिल में उठता है बार बार 
इंसान क्यों हो रहा लाचार

अंतविहीन दौड़ का परिणाम
कभी नहीं मिलता आराम 

प्यार के झरने सूख रहे हैं
अपनापन अब भूल रहे हैं।

✨आरती ✨
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आरती राय

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं मेहमान 
सदैव स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें यशस्वी भव चिरंजीवी रहें

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आरती राय

विरह 
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क्यों आये तुम बैरी सावन
सूना हो गया मेरा घर आँगन
दिल में दबी सिसकी होठों पर आ गये
जानेवाले लौटते नहीं सावन  बरस कर कहे।
झूले मेंहदी सूनी कलाई सब सच सच कहे।
पी कहाँ पी कहाँ पपीहे की पूकार 
     सुन विरहन की अँखियाँ बहे।
क्यों भर आती अँखियां मेरी
यह दर्द सृष्टि में अक्सर सब सहे।
 क्यों तुम बैरी सावन आये
      सूखे घाव में टीस उभर आये।
दर्द मत कर आँख मिचौली
बन जा अब तु मेरी सहेली
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आरती राय

क़ातिल कर्म की आर में कातिल बन गये
उनके लिये जीये उनके लिए ही मरे
फिर भी लबों पर शिकायत रह गई
आप मेरे लिये क्या किये
कैसे मैं समझाऊँ उन्हें 
दिवस रैन बीतते रहे 
हम परदेशी हो गये
गिलेशिकवे भूल जाओ
बस कातिल अदाओं 
से इजहार करो
हाँ हमें प्यार करो।

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आरती राय

धरती झूमें
अम्बर मदमस्त
बरसे मेघा

शिवत्योहार
सबसे सर्वोत्तम
पधारें भोले

करूँगी पूजा
बेलपत्र चढ़ाऊँ
नचारी गाऊँ

औढ़रदानी
हे पार्वती के पति
करूँ प्रणाम🙏
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आरती राय

प्रकृति प्रकोप
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अतृप्त धरा अति अकुलाई
वर्षा रूठ नभ में खिसियाई
फूलों की डाली मुरझाई
पौधों ने भी शोक मनाई ।
क्यों रूठी हो धरा हमारी
विकल भये सारे नर-नारी
बादल क्रोधित नभ घनघोर
बिजली चमक रही चहुँओर ।
आ जाओ अब वर्षारानी
बुंद बुंद को तरसे प्राणी।
बोली बरखा क्रोधित वाणी
बंद करो अपनी मनमानी 
प्रकृति से मत करो खिलवाड़
वरना झेलो मेरा प्रहार
ओ मानव जागो इकबार
करो प्रकृति से अतिसय प्यार।
लौट कर आऊँगी अगली बार
तब तक झेलो सूखे की मार
मत करो अब व्यर्थ प्रलाप
करो धरा को नमस्कार।
*******
आरती: प्रकृति प्रकोप

प्रकृति प्रकोप #कविता

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आरती राय

चिंतन
••••••••
फुर्सत ही फुर्सत है 
फिर भी बेचैनी क्यों है
स्वयं से पूछना भूल रहे
दोष अपनों को दे रहे।

कार्यक्षमता घट रही 
शिथिलता अब बढ़ रही 
मिडिया को क्यों दोषी मानूँ
जब कर्मठता खो रही ।

सारा दिन निष्कृय बनकर
अपना सर झुका लिये
शीशे की दीवार को घिस कर
मनोरंजन अपना लिये।

हाँ शीशे की दीवार
समझ कहाँ हम पाते हैं
बात बात में अब अपनों पर
अक्सर हम चिल्लाते हैं।
है यह इक भंवर 
अद्भुत नशा है 
निकलने की कोशिश में
अंदर तक डूब जाते हैं।
वक्त बदला 
परिस्थितियां बदली
हम क्यों नहीं बदल पाते हैं
यह सवाल खुद से कभी 
नहीं पूछ हम पाते हैं। 

आरती राय.दरभंगा
बिहार. चिंतन

चिंतन #कविता

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आरती राय

पागलपन
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"कब तक उसकी बत्तमीजी बर्दाश्त करते रहोगे बेटा ।जीते जी हमने तुम्हारी जिंदगी में ज़हर घोल दिये। काश मुझे पता होता उसे पागलपन के दौरे आते हैं। तुम उसे तलाक दे दो ,एवं दुसरी शादी कर लो।"
"नहीं माँ पागलपन तो हम करेंगे ,एक अनाथ बच्घी माँ के वियोग में अर्धविक्षिप्त हो गई ।अब उसे सहारे एवं सानिध्य की जरूरत है।उसे प्यार चाहिए। अपनों का साथ एवंभरोसा चाहिए।
वरना एक बार हम भी पागलपन कर बैठेंगे। पागलपन

पागलपन #कहानी

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