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mohanmishra9011
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mohan mishra

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mohan mishra

निकला है सूरज तो 
       जरूर चांद भी दिखेगा
पौध बनी है बीज तो
       जरूर पुष्प भी खिलेगा
mohan mishra jai ho

jai ho

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mohan mishra

प्रतीकों को ईश्वर मान लेना ही तो पाखण्ड को जन्म देता है और पाखण्ड ईश्वर के मूल तत्व  से कोसो दूर ले जाता है 
प्रतीक मात्र उस तत्व को समझने में सहायक हो सकता है तब जब हम उस प्रतीक से अतिरेक ना करे 
अब लक्ष्मी की उत्तपत्ति का वर्णन देखे तो समुद्र मंथन से प्रकट(निकली) 
समुद्र मंथन में बहुत कुछ निकला अमृत भी जहर(हलाहल)भी लक्ष्मी भी ,आयुर्वेद भी,(धन्वन्तरि ) और भी समुद्र मंथन का आशय यहां जीवन की जद्दोजहद से लिया जा सकता है तथा मन ने उठने वाले विचारो से लिया जा सकता है।
दोनो ही अर्थ में हमें ये सब प्राप्त होते है।
मोहन मिश्र #Life
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mohan mishra

खूबसूरती बढ़ जाती है 
             ज़रा सा मुश्कुराने से
फिर भी दुनियां बाज़ नही
            आती मुँह फुलाने से।।

मोहन मिश्र
जय हो मुस्कान

मुस्कान

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mohan mishra

सुख दुख मन की अवस्था है
सार यही समचित रहना।
चार राहों का एक चौराहा
आकर सभी को यहीं मिलना।
ईश्वर हमारे दिल मे बसा है
फिर आपस में क्यों लड़ना।।
मोहन मिश्र 
जय हो जय हो

जय हो

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mohan mishra

जाहिलों ने जाहिलों को  
      जाहिली में चुन लिया।
अच्छे की आस में ये
      अभिशाप चुन लिया।।
मौनी बाबा कम से कम
       मौन ही तो रहता था।
निकला था राम हमारा 
      बड़बोले को चुन लिया।।
संवाद की कमी खली
  तब संवेदनहीन चुन लिया।
सच की कमी अब 
                खल रही है दोस्तों
झूठा केवल झूठ बोले ये
       कैसा झुठेन्द्र चुन लिया।।
मोहन मिश्र चुन लिया

चुन लिया

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mohan mishra

वेदव्यास जी ने वेदों का भाष्य किया 18 पुराण लिख डाले कितने ही उपनिषद लिख डाले फिर भी मन को शांति नही मिली 
जो चाहते थे वैसा हो नही रहा था हर विषय पर लिखा जो आजतक सटीक लगता है फिर भी मन व्यथित आखिर में हरि इच्छा से एक श्लोक लिखा"परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीड़नम"
जो वेदों,पुराणों,उपनिषद, गीता, धर्म,कर्म,ईश्वर का सार है 
जब हम कोई सद्कर्म करते है तब जो आनन्द की अनुभूति होती है वह अनुभूति ही ईश्वर के होने का प्रमाण है तभी उसे सत चित्त आनन्द सश्चितानन्द कहते है
मोहन मिश्र
जय हो सार

सार

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mohan mishra

झूठ को शर्माना नही आता
      सत्य  शर्मसार हो जाता है
विश्वास है अपनो पर मुझे
      फिर कहने में क्या जाता है।।
मोहन मिश्र झूठ

झूठ

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mohan mishra

लत लग गई हो नफ़रत की
                    छूटे नही छूटती
मति की लौ बुझ गई हो जिनकी
               जलाए नही जलती।।
आपस में लड़ाने की बात
                क्यो करते है आप
नफ़रत की बात हमारे
                  पल्ले नही पड़ती।।
दोगलों को पहचान गये हम
  झूठो से अब आंखे नही लड़ती।।
          मोहन मिश्र जय हो

जय हो

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mohan mishra

ना कर दर्द देने की बात
दर्द अब दवा बन गया है
खुलकर अब हंसे भी क्या
मुश्कुराना भी ज़हर बन गया है


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