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ramdasmedhekar8887
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Rd medhekar "समर्थ"

Retired revenue officer, M P Govt. Indore

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Rd medhekar "समर्थ"

रशिया-यूक्रेन विवाद
    ( एक त्रासदी )
 
धमाकों से झुलस गई धरती 
दीवारें इंसानियत की ढह गई
एक चिड़िया नीड से बेघर हुई
दहशत से एक बदहवास हुई...

चिड़िया, चिड़िया से पूछती
अब जाऊँ कहाँ ? कहाँ मेरी बस्ती?
आसमान धुआँ धुआँ ज़मीं पर आग बरसती
ये दौर  है कैसा सुकून कहीं पर भी नहीं...

रौंद दूं पैरों तले बेदखल कर दूं ज़मीं से
सिर पर ताज हो मेरे ये कोशिश सिरफिरे की
विश्व विजय की कामना की सनक लिये
तमाशा देख रहे रेस  के  घोड़े और भी कई...
                           
                           --**रामदास 'समर्थ'
                                @समर्थ rd
               (शब्द मेरी भावना के)

©Rd medhekar "समर्थ" जंग रशिया

जंग रशिया #कविता

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Rd medhekar "समर्थ"

वो कौन थी

वो कौन थी

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Rd medhekar "समर्थ"

मन में पैठी निम्बोली ,
हो जाए गुड की एक डली,
तिल-गुड़ रोटी-सी मीठी,
मिल जाए ओंठों को बोली ,

दुःख एक पक्ष जीवन का,
तिल-सा हो लघु आकारी,
आनंद मिले ऐसा जीवन में,
"गुड-तत्व" समाए हो मिष्ठी,

जीवन की तुला हो संतुलित,
तिल-गुड़ से अगर,है लाजिमी,
असंख्य तिलों पर हो भारी,
मीठी गुड की छुटकी भेली ,

है पर्व सूर्य मकर संक्रांति,
प्रतिनिधि पर्व पुरातन संस्कृति,
सूर्योत्सव दे जन को नव-गति,
प्रखरता जीवन को सूरज-सी ,

लोहड़ी, पोंगल या हो संक्रांति,
जीवनोत्सव हैं ये सदा सुखकारी,
अवनि से आकाश रंगते रंग-पतंगी,
हैं ये जीवन के रंग मधु औ' मनोहारी।।
           
15-1-2020       -**रामदास
                      शब्दांकन@समर्थ RD सूर्योत्सव

सूर्योत्सव #कविता

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Rd medhekar "समर्थ"

वक़्त कटता नहीं
       ⏰
ऐसा भी होता है कई बार,
वक़्त कटता ही नहीं ,
चल रही होती है,
घड़ी की सुइयां,
मैं तनहा थमा-थमा,
देख रहा होता हूँ,
कभी आईने के सामने,
बाल अपने सवारूँ,
देख कर चेहरे को,
सवाल खुद से करूँ,
हालात आज के सामने होते,
याद अपना बचपन करूँ,
कभी अलमारी से निकाल,
कोई पुराना अलबम,
ढूंढू उसमें अपना,
कोई चेहरा चाहत का,
या माँ का बुना,
वो पुराना स्वेटर,
या आज के साथ का
कोई पुराना मंजर,
या चाहूँ गुनगुनाऊँ,
मुकेश का कोई
दर्दभरा पसन्दीदा गीत,
या कि उँगलियों पर गिनूं,
बीते सालों को,
याद करूँ
चंद गुजरे हुए ,
खूबसूरत लम्हों को,
तनहा  गुजारी,
उन उदास शामों को,
या रतजगी उन रातों को,
ऐसा भी होता है कई बार,
वक़्त कटता ही नहीं,
कदम थमें होते हैं,
साँसे चलती रहती है,
मन अतीत में भटकता रहता है,
रिक्तता लिए समय में भी ,
काम बहुत से होते हैं,
जिंदगी के सफर में,
"चैन" साथ कहाँ होता है.........

22-2-2020      --*रामदास
                   शब्दांकन@समर्थ RD वक़्त कटता नहीं

वक़्त कटता नहीं

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Rd medhekar "समर्थ"

रेल है ये जीवन
       🚆
अगर हो जाये अहसास,
समय कितना है कम,
तो व्यर्थ के झगड़े,तर्क-वितर्क
ऊर्जा की बरबादी का
ना बने कोई कारण,
अगर हो जाये अहसास,
समय कितना है कम,
रेल है ये जीवन,
साँसे चालक ,
आँखे परिचालक,
कर्म ईंधन,,
अगर हो जाये अहसास,
समय कितना है कम,
पथ बिछा इतना लंबा,
विराम है इसमें कम,
सहयात्री सफर के
उतर ,कहाँ जाएंगे थम,
अगर हो जाए अहसास,
समय कितना है कम,
घुटन अंदर,
प्राणवायु बहती बाहर
काया ये बोगी जैसी,
चलती समय के पहियों पर ,
पथ है जब तक है सफर,
पल में कहीं ना जाए थम,
अगर हो जाये अहसास,
समय कितना है कम,
संजोग से जुड़ते जीवन यात्री,
यादगार साथ का हो सफर,
क्षमाशील,आभारी जीवन ,
सुखद हो बीते क्षण,
अगर हो जाए अहसास,
समय कितना है कम..........⏰

26-2-2020       -**रामदास
                    शब्दांकन@समर्थ RD रेल है ये जीवन

रेल है ये जीवन

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Rd medhekar "समर्थ"

प्रथमागत

खुली खिड़की से झाँककर,
तुमने मुझे जगाया,
स्वप्न भंग किया मेरा,
और मैं तमतमाया,
अक्सर तो ऐसा होता नहीं,
पर आज ये हुआ,
रात खिड़की का मैं,
परदा लगाना जो भूला,
अवसर को तुमने भुनाया,
और मैं चौन्धियाया, 
मैं अभ्यस्त अँधेरे का,
विश्वास उजाले का खो चुका,
किंकर्तव्यविमूढ़,
अधर में अटका,
राह भटका,
अंधेरे से निकल,
उजाले में आने में,
आखिर कुछ तो समय लगता है,
मेरे भाई,
खैर,
अब आ ही गए हो तो आओ,
कौन रोक सका है तुम्हें,
आगत का स्वागत है,
खुली खिड़की के उस पार खड़े,
तुम्हें एक नज़र ,
बंद आँखों से देखकर ,
प्रणाम,
दीवार पर टंगे कैलेंडर पर
तारीख देख कर,
सुबह के अखबार के पन्ने पलटकर,
चाय की चुस्कियां लेते,
आज में होने का  ,
अहसास कराने के लिए,
धन्यवाद,
और क्षमा,
इस अनौपचारिक स्वागत के लिए....

28-2-2020         --**रामदास
                      शब्दांकन@समर्थ RD प्रथमागत

प्रथमागत

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Rd medhekar "समर्थ"

भँवरा
(रुके कदम तेरे रम पम पम)
           💎
रंगों सजा काठ का भँवरा,
भाग्य अपना साथ लेकर,
सतत घूमने का कर्म पाया,
एक पैर पर खड़े होकर,
हुनर लिए हाथों से निकल,
सीखा जीवन का संतुलन,
जब वो साध नही पाता,
हिचकोले खाता है प्रतिपल,
प्रेमपाश में रस-सी के पड़ कर,
कुछ क्षण मिलता है सुकून,
छिटककर आलिंगन से दूर,
सबक पाता जीवन का क्रूर,
कभी धरातल मिले नर्म,
कभी पथरीले अहसास का गम,
घूमता जीवन है बंजारा,
सम्हलने के अवसर है कम,
शक्ति निहित है जीवन में,
तब तक ही चलता ये क्रम,
मानव हो या भँवरा ,
टूटना तय है दोनों का भ्रम,
बंधे हुए धूरी से जब तक,
तब तक है जीवन,
रुके कदम तेरे रम पम पम,
सारा खेल मान लो हुआ ख़तम........

20-2-2020       --**रामदास
                      शब्दांकन@समर्थ RD भँवरा
(रुके कदम तेरे रम पम पम)

भँवरा (रुके कदम तेरे रम पम पम)

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