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कवि समीर शान्डिल्य

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कवि समीर शान्डिल्य

मैं अलग था, अलग हूँ, अलग ही रहा,
ये सबब था, सबब है, सबब ही रहा।
सोचता था कि तुम मेरे हो जाओगे,
पर वहम था, वहम है, वहम ही रहा।

कवि समीर शांडिल्य
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कवि समीर शान्डिल्य

समीर तिवारी

समीर तिवारी

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कवि समीर शान्डिल्य

दूर जाने का कोई इरादा ना था
पास आने का कोई वादा ना था
भूल जाओगी तुम ये मुझे थी खबर 
भूलोगी इतनी जल्दी अंदाजा ना था

||कवि समीर शांडिल्य||
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कवि समीर शान्डिल्य

ये जो सजने संवरने में तुम इतना दिमाग लगा रही हो
तुमको पता भी है कि तुम! दिलो में आग लगा रही हो
मै कबूतर हूं तेरे इश्क़ के मस्जिद का और तुम?
वहां मंदिरों में बाज लड़ा रही हो

||कवि समीर शांडिल्य||
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कवि समीर शान्डिल्य

एक तुम्हारे जाने से,
मधुमास वो सारे रूठ गये।
मिलन आस मे रखे थे जो,
उपवास वो सारे छूट गये।
उस अतल पूर्णिमा की रजनी मे, तुम प्रेम प्रदीप  जलायी थीं,
एक मन्द वेग पर बुझ जाने से,
विश्वास वो सारे टूट गये।

Sameer Tiwari
9455568837 sam

sam

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कवि समीर शान्डिल्य

इस मन मे तुम मिथ्याओ की ,
प्रीत जगाकर चली गयीं।
इस कर्णो को वनप्रिये सुरों मे,
संगीत सुनाकर चली गयीं। 
उल्लास भरे इन नयनों से दर्द  के आँसू बहते हैं,
इस एकाकी साथी को तुम
मीत बनाकर चली गयीं। 

समीर तिवारी ९४५५५६८८३७

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कवि समीर शान्डिल्य

नयन के रैन को मन के चैन को 
                   मौन रहकर सब चुरा गये मोहन। 
साँवली सूरत प्रेम की मूरत
                    अन्तर मन में बसा गये मोहन। 
प्रीत के दीप जलाकर कान्हा 
                   राधा को मीत बना गये मोहन। 
श्याम को श्याम बनाई राधा ने
                     राधा को राधा बना गये मोहन।

 9455568837 Sameer Tiwari

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कवि समीर शान्डिल्य

Man ke tute sapno ko kuchh aashaye deni hogi......

मन के टूटे सपनो को कुछ आशाएँ देनी होंगी
 मौन रहे उन अधरो को कुछ भाषाएँ देनी होंगी 
जीवन के इन लेशो को
अब मुझको सहना होगा
मै सच हूँ जब तक अनृत है
तब तक मुझको रहना होगा

नयनों के घिरते मेघों मे तुम  प्रीत कुलिश चमकाई थी
मेरे इस निर्जन उर मे तुम   सुरसरिता सी समाई थी 
उस अमल यामिनी सेजो पर   हम दोनो सोये रहते थे 
अधर पे रख अधरो को   एक दूजे मे खोये रहते थे 
जब चाँद सितारे ढलते थे 
हम बिछडन से तब डरते थे 
प्रपंच युक्त इस भुवन मे 
अब मुझको ढलना होगा 
मै सच हूँ ०००००००००००००००००००००००

चन्द्रप्रभा की रजनी मे तुम   कलत्र रूप धर आयी थी 
 दिव्यधाम की अरूणप्रिय सी   रंजन संगीत सुनायी थी
मै स्वातिभक्त सा प्यासा था तुम अथपावस बन बरस गये
हम व्यापृत थे तुममें इतना कि  उस अमीरस को तरस गये
जागे जब स्वप्न सवेशों से
मंजरी थी जली पुंगेशो से
इन मिथ्याओ के नीरनिधि मे
अब मुझको बहना  होगा 
मै सच हूँ ०००००००००००००००००००००००००
मन के टूटे सपनो को•••••••••••••••••••••••••••• hiiii

hiiii

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कवि समीर शान्डिल्य

इस होली पर इतना मलाल रह गया 

तेरे गाल रह गए कोरे कोरे .... 
 और मेरे हाथो में गुलाल रह गया !!

समीर शांडिल्य
9455568837 इस होली पर इतना मलाल रह गया 

तेरे गाल रह गए कोरे कोरे ....और मेरे हाथो में गुलाल रह गया !!

इस होली पर इतना मलाल रह गया तेरे गाल रह गए कोरे कोरे ....और मेरे हाथो में गुलाल रह गया !!

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कवि समीर शान्डिल्य

तुम बिन जिऊँ जितने भी दिन; हर दिन वो अधूरा लगता है।
अगर चाँदनी मिट जाये तो चाँद अधूरा लगता है। 
एक तुम्हारा साथ ना होना सब खुशियों पर भारी है;
ग्वालिन,गाईयां,गोकुल कान्हा तुम बिन अधूरा लगता है।                     🙏🏻🙏🏻🙏🏻समीर तिवारी तुम बिन जिऊँ जितने भी दिन; हर दिन वो अधूरा लगता है।
अगर चाँदनी मिट जाये तो चाँद अधूरा लगता है। 
एक तुम्हारा साथ ना होना सब खुशियों पर भारी है;
ग्वालिन,गाईयां,गोकुल कान्हा तुम बिन अधूरा लगता है।                     🙏🏻🙏🏻🙏🏻समीर तिवारी  (5)

तुम बिन जिऊँ जितने भी दिन; हर दिन वो अधूरा लगता है। अगर चाँदनी मिट जाये तो चाँद अधूरा लगता है। एक तुम्हारा साथ ना होना सब खुशियों पर भारी है; ग्वालिन,गाईयां,गोकुल कान्हा तुम बिन अधूरा लगता है। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻समीर तिवारी (5)

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