मैं सिक्का बनके उसके बटुये मे रहती थी
वो हर बात पे मुझे उछाल लिया करता था
#Hindi#Sikka#Poetry
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मौसम मिश्रा
#umeedein
मैं संभाल सकती हूँ तेरे पौरूष को,
तुम मेरा स्त्रीधन स्वीकार करोगे क्या...?
दसों दिशाओं को लगा दूँगी तेरे पीछे
मेरे गुरुड़ पे तुम अहंकार करोगे क्या..?
#Love
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मौसम मिश्रा
#Baagh Love
गुमान किस बात का हैं तेरी जुबान को
अदब के परिभाषा की ज़रूरत हैं क्या
और ये कैसी हरकत हैं जो पनप रही तेरे गत-मन मे
तेरे भीतर छलाबो की मूरत हैं क्या #Poetry
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मौसम मिश्रा
#WoNazar#insan
हर दफा लोगों से नाराज़गी नही होतीं
कभी-कभी लोग नज़रो से गिर जाते है
#Love