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abhinavsingh6050
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Abhinav29Singh

आसान नहीं हैं ये किश्तों की मौत एक उम्र मरने में निकल जाती है insta- abhinav29singh

https://www.instagram.com/Abhinav29Singh/

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Abhinav29Singh

ये रातें छीन रही  मुझ से  हुनर आंखों का
बहुत अंधेरों भरा रहा है  सफ़र आंखो का

ना छोड़ेगा जिंदा,ना ही मुझ को मारेगा वो
दोस्त ऐसे  ही फांसता है  भॅंवर आंखो का

इंतजार में रक्खी थी जिसने छांव उस को
काट दिया गया अब वो  शजर आंखो का

कितने उजालों भरी थी ये इमारतें भी कभी
उजाड़ लिया गया फिर ये शहर आंखो का

दुश्मनी के तेवर, ऊपर से धार काजल की
उसे देख  के दिखाई पड़ा कहर आंखो का

अभिनव

©Abhinav29Singh #Eyes
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Abhinav29Singh

इक शाम की बात थी इक शाम  कही गई
फिर तो हर गलत बात हमारे सर मढ़ी गई

इल्म ही न था क्या करेंगे हम खुद के साथ
रस्सी गले की फिर बड़े  जोरों से कसी गई

जीतते हुए हार गए हम फिर वो बाज़ी दोस्त
हमारे खिलाफ़ चाल ही कुछ ऐसी चली गई

सब निकाल फेंका था तेरे बाद हमने खुद से
सांसे ही बची थी मुझ में, जो कहीं नही गई

गफलत से रक्खा अपना ढांचा ताबूत में हमने
यार एक जंग खुद के साथ ऐसे भी लड़ी गई

अभिनव

©Abhinav29Singh #Trees
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Abhinav29Singh

किस तरह से खा रही मुझे बर्बादी मत पूछ
मेरी सदाएं  दीवारों से है  टकराई  मत पूछ

स्याही  रात इन ख्वाबों पे कालिख पोत गई
कितनी मुश्किलों से थी वो पुतवाई मत पूछ

हिज्र काटने वालो से ना पूछो हाल वस्ल का
कितनी बढ़ जाती हैं उनकी बेताबी मत पूछ

मना रहें है ईद सब और मेरी आंखे तेरा हिज़्र
उठाती सवाल है मुझ से ये रोशनाई मत पूछ

धूप,छांव,बारिश और ये धुंध की खुशबू यार
कैसे‌ रक्खी गई इन सब से शनासाई मत पूछ


अभिनव

©Abhinav29Singh #Rose
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Abhinav29Singh

मेरे जिस्मानी लिबास के है पीछे ज़ख्म
मेरी ढलती उम्र से हो रहे हैं नंगे  ज़ख्म

ना ढूंढिए  सुर्खी मेरी  आंखो तले  आप
मैंने छुपा रखें है  पलकों के नीचे ज़ख्म

यार कोई नहीं सुनता मेरी चीखें रूहानी
मैने आख़िर में  कागजों  पे उगले ज़ख्म

इक सवाल तो मेरा भी लाज़मी आइने से
क्यों अंदर  रखें  बैठे हो तुम इतने  ज़ख्म

किसे दोष दूं किस के माथे मढुं इलज़ाम
मेरे इन हवा की सदाओं ने है छेड़े ज़ख्म

अभिनव

©Abhinav29Singh #alone
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Abhinav29Singh

गलत वक्त पर गलत शक्स से टकरा गए
मेरा फिर दीवारों से टकराना लाज़मी था

जिस को लड़ी है एक जंग अपनो से मैने
फिर उस का मुझ पे निशाना लाज़मी था

Abhinav

©Abhinav29Singh #OneSeason
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Abhinav29Singh

दिल ने जो चाहा वो कभी ना लिख सका
खुशनसीब  हूं तेरी सारी अदा लिख सका

सब ने लिखे थे  चंद अशआर तुझ पे यार
ये मै था जो तुझे  सब से जुदा लिख सका

मोहब्ब्त तुझे हर शख्स लिखता रहा, मगर
खुदा का शुक्र था मै तुझे खुदा लिख सका

लगी है  मुझ पे किसी परी की दुआ शायद
तभी बहते आसुओं को दरिया लिख सका

तमाम  उम्र अंधेरे में कट जाने के बाद बस
बहुत कोशिश बाद सिर्फ दिवा लिख सका

अभिनव

©Abhinav29Singh #nojoto #poetrycommunity #nojotoapp  #writeraofindia #nojotohindi #qotd #nojotoofficial #life #bhfyp

#caged
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Abhinav29Singh

आ रही बदन  से बाहर चीख़ती सिसकियां
आंखो में दिख रही दबी कुचली सिसकियां

पढ़ी आंखे, देखी सूरत थोड़ी गौर से उसकी
मजबूरियों में वो औरत है बेचती सिसकियां

मर गया अंदर का शख़्स मेरे अंदर ही दोस्त
किस को सुनाऊं अपनी मातमी सिसकियां

लिख के जिन्हें दफना रहे कागज़ों के भीतर
क्या आप   सुनेंगे मेरी काग़ज़ी सिसकियां ?

एक रोज़ गौर से आईना देखा तो जाना मैंने
बिल्कुल मुझ जैसी होती चेहरगी सिसकियां

बद्दुआएं चाटे जा रही नासूर हुए जख्मों को
इन दर्दों की करती है मुख़बिरी सिसकियां

अभिनव

©Abhinav29Singh #jazbaataedil

#wait
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Abhinav29Singh

अजब - गजब  हादसों का शिकार हूं मै
जो मिल रहा है उसका शुक्र गुज़ार हूं मै

ना ढूंढो  इस ख़ाक के  पुतले में मुझ को
जिस्म  की जेल से एक कैदी फ़रार हूं मै

नहीं करेंगी असर मुझ पे तेरी तसल्लीया
जीती जागती चलती फिरती मज़ार हूं मै

किस किस की क़र्ज़-बंद है मुस्कुराहट ये
आप के  भी चंद  लम्हातों क़र्ज़-दार हूं मै


अभिनव

©Abhinav29Singh #horror
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Abhinav29Singh

कहाॅं था मैं और कहाॅं से कहाॅं आ गया
शीशे पे फेंके  पत्थर का निशाॅं आ गया

कायनात  जीतने निकला था मैं घर से
कुछ मीलों बाद  उसका मकाॅं आ गया

प्यास से दम तोड़ रहे थे राहगीर ख़्वाब
अच्छा रहा रास्ते में एक कुआँ आ गया

कल तो रात भर करी मैंने उसने गुफ्तगू
आंख खुलते ही बीच में आसमाॅं आ गया

रईसी  फेंक देती है लिबास ये  बोल कर
हो गया है ये पुराना इस पे रुआँ आ गया

कब तक छुपा पाते  हम आग भीतर की
घुटन की मौत बाद बाहर धुआँ‌ आ गया


अभिनव

©Abhinav29Singh #ClimbTheSky
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Abhinav29Singh

मर जाने में बिल्कुल भी ना होती मुश्किलें
पार कलेजे के गर खंजर उतारती मुश्किलें

खुशियां  देती हैं साथ  महज़ थोड़े वक्त को
दूर तक देंगी  साथ,  सो मैंने चुनी मुश्किलें

रबड़  के चंद बंधनों  में बांधे  थे बाल उसने
अरसे  बाद देखी मैंने फ़िर खुलती मुश्किलें

तेज़  हवा में लहराता शॉल संभालती है वो
हाए कितनी  मुश्किल है उस की  मुश्किलें

बोझ  था मेरे दोनों कंधों  पर इनका बहुत
फिर मेरे साथ साथ फंदे से लटकी मुश्किलें


अभिनव

©Abhinav29Singh #death

#SittingAlone
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