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shilpijain8470
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chahat

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chahat

होली के रंग सी रंग लो खुशियां

होली के रंगों सी,रंग लो सारी खुशी।
जीवन में भर लो अरमान सारे इंद्रधनुषी।
जला दो अपने अंदर की बुराई सारी।
खिला लो रंग बिरंगे फूलों की बागियां प्यारी।।
न रखो कोई रंजिश मन में,
हटा दो शिकायतें सारी।
रंग लो प्यार के रंग जीवन में,
खिला दो प्यार की फुलवारी।।
पल भर को सही,
बसा लो एक दुनिया प्यारी।
जहां न हो रोक टोक,
सजा हो मन जैसे फूलो की क्यारी।।
हंस लो खुलकर यारों,
पता नही कब हो किसकी बारी।
भूल जाओ कुछ पल को,
सारी चिंता और जिम्मेदारी।।
पंख लगाकर उड़ जाओ।
पानी में रंगों से तुम घुल जाओ।।
बंद करके आंखो को सो जाओ।
सपनो में ही सही,
कभी खुद से भी मिल आओ।।।।

©chahat
  #Holi

Holi

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chahat

मर्यादाओं से परिपूर्ण ।
एक औरत की कहानी।।
संस्कारों से सजी धजी बनी।
ए नारी तेरी यही कहानी।।
हो दासी चाहे हो महलों की रानी।
हर औरत लिखती नई कहानी।।
करती संघर्ष बन वह कल्याणी।
माथे पे बिंदी ओजस्वमयी वाणी।।
शून्य से शिखर तक तेरी यही कहानी...
हर जगह हुनर के पंख फैलाती।
इंद्रधनुष से रंग बिखराती।।
धरती तू,सरिता तू, कहलाती।
पत्थर सी तू अडिग न डगमगाती।।
अपने अंदर कई रूप तू समाती।
धरा सी सहनशीलता दिखलाती।।
ममतामयी हो मोम सी पिघल जाती।
क्रोध करे तो रण चंडी सी बन जाती।।
पाप नाशिनी शेर वाहिनी तू कहलाती।
देख पापाचार तू काली सा रूप धारती।।
आज भी नारी हार नहीं मानती।
करती है सर्वनाश सिर्फ दहाड़ नही मारती।।
होकर आत्म निर्भर वो संहार नहीं मांगती।
चलती कदम मिला वो हार नहीं मानती।।
साड़ी में भी नारी आसमां छूने का अरमान खूब धरती है।
चांद पर पहुंचा चंद्रयान तब भी वो प्रधान रूप रखती है।।
वो ज्वाला बन सूरज सी जलती है।
वो शीतल बन चांद सी खिलती है।।
तपकर कर वह स्वर्ण रूप धरती है।
कोयला से भी वो हीरा बन चमकती है।।
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©chahat

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chahat

आत्म निर्भरता से परिपूर्ण

मर्यादाओं से परिपूर्ण ।
एक औरत की कहानी।।
संस्कारों से सजी धजी बनी।
ए नारी तेरी यही कहानी।।
हो दासी चाहे हो महलों की रानी।
हर औरत लिखती नई कहानी।।
करती संघर्ष बन वह कल्याणी।
माथे पे बिंदी ओजस्वमयी वाणी।।
शून्य से शिखर तक तेरी यही कहानी...
हर जगह हुनर के पंख फैलाती।
इंद्रधनुष से रंग बिखराती।।
धरती तू,सरिता तू, कहलाती।
पत्थर सी तू अडिग न डगमगाती।।
अपने अंदर कई रूप तू समाती।
धरा सी सहनशीलता दिखलाती।।
ममतामयी हो मोम सी पिघल जाती।
क्रोध करे तो रण चंडी सी बन जाती।।
पाप नाशिनी शेर वाहिनी तू कहलाती।
देख पापाचार तू काली सा रूप धारती।।
आज भी नारी हार नहीं मानती।
करती है सर्वनाश सिर्फ दहाड़ नही मारती।।
होकर आत्म निर्भर वो संहार नहीं मांगती।
चलती कदम मिला वो हार नहीं मानती।।
साड़ी में भी नारी आसमां छूने का अरमान खूब धरती है।
चांद पर पहुंचा चंद्रयान तब भी वो प्रधान रूप रखती है।।
वो ज्वाला बन सूरज सी जलती है।
वो शीतल बन चांद सी खिलती है।।
तपकर कर वह स्वर्ण रूप धरती है।
कोयला से भी वो हीरा बन चमकती है।।

©chahat
  #womeninternational
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chahat

मेरी असली मुस्कान चाहिए

मेरी  कीमत नही जहां ,
नही वो आसमान चाहिए ।
न ऐसी छत,
न ऐसे जमीन चाहिए।।
मुझे मेरी मेहनत की कीमत,
मुझे मेरी असली मुस्कान चाहिए।।
जहां कद्र नहीं मेरे समर्पण की,
न ऐसे गहने,
न ऐसा मकान चाहिए।
थक गए अब जहां पैर मेरे ,
चलते चलते उनके मुझे निशान चाहिए।।
उन निशान पर मुझे मेरा सम्मान चाहिए।
मुझे मेरी आत्मनिर्भर पहचान चाहिए।।
जहान में एक जहां अपना चाहिए।
टूट गया जो अरमानों से भरा था
मुझे वापिस अपना वो सपना चाहिए।।
सारा दिन करके जब थक जाती हूं
खुद को भूलकर सबका कर जाती हूं
अब नही कोई हिसाब चाहिए।
बस मांगती हूं इतनी प्यार से भरी
वापिस अपनी मीठी थकान चाहिए।।

©chahat

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chahat

सबकी सुनो ।
पर अपने दिमाग को
उसकी बातो से न बुनो।।
जो तुम्हे तुमसा न समझता हो।
न खुद को तकलीफ दो
ऐसे लोगो की वजह से
ऐसे रिश्तों की वजह से
जो तुम्हारे होने पर सवाल उठाता हो।।
तुम्हारे हसने बोलने करने या न करने पे
तुम्हे बेवजह सुनाते हो।
तुम्हारे अपने वजूद 
को क्यों किसी और को थमाते हो।।
खुद के लिए खुद खड़े हो तो जीलो।
जिंदगी छोटी सी है,कुछ बाते अमृत समझ पिलो।।
अनमोल लम्हों को खुश रखना सीखो।
जो करते है तुम्हे प्यार तुम्हे उन्हें चुनो।
सबकी सुनो
पर अपने आत्मसम्मान को
अपनो के आत्मविश्वास से बुनो।।

©chahat

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chahat

सबकी सुनो ।
पर अपने दिमाग को
उसकी बातो से न बुनो।।
जो तुम्हे तुमसा न समझता हो।
न खुद को तकलीफ दो
ऐसे लोगो की वजह से
ऐसे रिश्तों की वजह से
जो तुम्हारे होने पर सवाल उठाता हो।।
तुम्हारे हसने बोलने करने या न करने पे
तुम्हे बेवजह सुनाते हो।
तुम्हारे अपने वजूद 
को क्यों किसी और को थमाते हो।।
खुद के लिए खुद खड़े हो तो जीलो।
जिंदगी छोटी सी है,कुछ बाते अमृत समझ पिलो।।
अनमोल लम्हों को खुश रखना सीखो।
जो करते है तुम्हे प्यार तुम्हे उन्हें चुनो।
सबकी सुनो
पर अपने आत्मसम्मान को
अपनो के आत्मविश्वास से बुनो।।

©chahat
  #achievement

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सबकी सुनो ।
पर अपने दिमाग को
उसकी बातो से न बुनो।।
जो तुम्हे तुमसा न समझता हो।
न खुद को तकलीफ दो
ऐसे लोगो की वजह से
ऐसे रिश्तों की वजह से
जो तुम्हारे होने पर सवाल उठाता हो।।
तुम्हारे हसने बोलने करने या करने पे
तुम्हे बेवजह सुनाते हो।
तुम्हारे अपने वजूद 
को क्यों किसी और को थमाते हो।।
खुद के लिए खुद खड़े हो तो जीलो।
जिंदगी छोटी सी है,कुछ बाते अमृत समझ पिलो।।
अनमोल लम्हों को खुश रखना सीखो।
जो करते है तुम्हे प्यार तुम्हे उन्हें चुनो।
सबकी सुनो
पर अपने आत्मसम्मान को
अपनो के आत्मविश्वास से बुनो।।

©chahat #achievement

15 Love

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chahat

जो आपको हर पल गलत दिशा दिखाए।
आंखो में नफरत और होठों पर मुस्कान सजाए।।
जो न आपकी तकलीफ समझे,न आपका प्यार समझ पाए।
उसे आप एक साया समझे,जो कभी आए कभी गायब हो जाए।।
कभी साथ रहे कभी नज़र ही न आए।
वो आपका अपना हो या आपका दोस्त बन जाए।।
मानो वो एक सपना हो जो सिर्फ अंधेरों में नजर आए।
वो भले बार बार सामने आए,पर झट से टूट  जाए।।
ऐसा वो रिश्ता जो जुगनू की तरह चमके।
और मोम की तरह पिघल जाए।
पर कभी आपकी नशों में खून बन न बह पाए ।।

©chahat

9 Love

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chahat

डूब गया चांद

निशब्द मूक भाव मेरे ।
क्या करू गुणगान तेरे।।
तुम ही तो हो जैन धर्म के तरुवर।
तुम ही तो हो जीवन आधार गुरुवर ।।
मैं तिनका सी चरणो की धूल भी नही।
तुम बिन जैन शब्द ही नहीं।।
तुम श्रेष्ठ चर्या के पालक।
तुम जैन धर्म के साधक।।
तुम जड़ हो,तुम हो ध्वजा।
जैन धर्म के तुम ही पिता।।
तुम्हारा जाना आसान नहीं।
तुम सा कोई शासन नही ।।
शिष्य अनन्य है तुमने गढ़े।
जिनमे धर्म के संस्कार भरे।।
जिन्हे तुम छोड़ जग से चले।
जिसाशन की डोर थमा
मुक्ति मार्ग की ओर तुम बढ़े।।
अश्रु मेरे ठहरे कैसे.....
मन की पीढ़ा कह भी न सकें ।
मैं टूटी हुई डाली के फूल जैसे।।
कौन ........
तुम सी साधना,
तुम सा साधु ,
तुम सिद्ध ,
तुम सा शुद्ध,
तुम शरद पूर्णिमा के चांद.......

©chahat

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chahat

निशब्द मूक भाव मेरे 
क्या करू गुणगान तेरे
तुम ही तो हो जैन धर्म के तरुवर
तुम ही तो हो जीवन आधार गुरुवर 
मैं तिनका सी चरणो की धूल भी नही
मैं अज्ञान तुम बिन जैन शब्द ही नहीं
तुम श्रेष्ठ चर्या के पालक
तुम जैन धर्म के साधक
तुम जड़ हो,तुम हो ध्वजा
जैन धर्म के तुम ही पिता
तुम्हारा जाना आसान नहीं
तुम सा कोई शासन नही 
शिष्य अनन्य है तुमने गढ़े
जिनमे धर्म के संस्कार भरे
जिन्हे तुम छोड़ जग से चले
जिसाशन की डोर थमा
मुक्ति मार्ग की ओर तुम बढ़े
अश्रु मेरे ठहरे कैसे.....
मन की पीढ़ा कह भी न सकें 
मैं टूटी हुई डाली के फूल जैसे
कौन  तुम सा
तुम सी साधना 
तुम सा साधु 
तुम सिद्ध 
तुम सा शुद्ध

©chahat
  शरद पूर्णिमा का चांद

शरद पूर्णिमा का चांद #Shayari

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