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shilpijain8470
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chahat

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chahat

White माना की तक़दीर हमारी
हमको बहुत रुलाती है।
मेहनत जब बहुत कराती 
तब थोड़ा दे पाती है।।
माना की किस्मत में हमारी
चाहतों का दर्जा कम है।
पर मुस्कराहट बखूब साथ निभाती है।।
थाम कर हाथ मेरा ज़िंदगी 
हमको बहुत दौड़ाती है।।
मुझे पसंद है सदा से सादगी
पर चमक भरी इस दुनियां में
चाहत कहा नज़र आती है।।
माना की निभाना तक़दीर सी है
पर मुझे निभाने की बारी कभी किसी की ना आती है।
माना की सम्मान के बदले मिलता नहीं सम्मान ।
कुछ रिश्तों को निभाने मैने 
बहुत खोया आत्मसम्मान।।
माना की कुछ संभालना ना आता था।
पर बहुत कुछ संभालना तो ज़िंदगी ही सिखाती है।।
सिखाते है वो लोग जो 
गिराकर उठना जानते है।
गिरकर उठना तो हमे
हमारी जिम्मेदारी सिखाती है।।
कलम उठाकर चलना तो आसान  है।
पर कलम ✍️ चलाना तो हमे
हमारी खामोशी सिखाती है।।
जो साथी बन अंतर आत्मा का
भावनाओं को स्याही बन बहा ले जाती है।।।।।
                   शिल्पी सतना.......

©chahat
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chahat

White कर्तव्य अपने निभाउंगी सदा।
सच्चे मन से दीप जलाऊँगी सदा।।
विश्वास खुद पर रखूंगी सदा।
संयम पथ पर चलूंगी सदा।।
गुरु आदर गुरु भक्ती करुँगी सदा।
अपने आचरण में नम्रता रखूंगी सदा।।
ना कभी बैर भाव, ना गैर से प्रेम।
भावों में संवेदना,आदर सबका करूंगी सदा।।
सब है आपकी कृपा मांगू और क्या।
मेरी भावनाओं को सम्बल देना
बस इतना मांगू तुझसे सदा।।
              शिल्पी सतना........

©chahat
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chahat

White माना की तक़दीर हमारी
हमको बहुत रुलाती है।
मेहनत जब बहुत कराती 
तब थोड़ा दे पाती है।।
माना की किस्मत में हमारी
चाहतों का दर्जा कम है।
पर मुस्कराहट बखूब साथ निभाती है।।
थाम कर हाथ मेरा ज़िंदगी 
हमको बहुत दौड़ाती है।
मुझे पसंद है सदा से सादगी
पर चमक भरी इस दुनियां में
चाहत कहा नज़र आती है।।
माना की निभाना तक़दीर सी है,
पर मुझे निभाने की बारी
 कभी किसी की ना आती है।
माना की सम्मान के बदले
 मिलता नहीं सम्मान ।
कुछ रिश्तों को निभाने मैने 
बहुत खोया आत्मसम्मान।।
माना की कुछ संभालना ना आता था।
पर बहुत कुछ संभालना
 तो ज़िंदगी ही सिखाती है।।
सिखाते है वो लोग जो 
गिराकर उठना जानते है।
गिरकर उठना तो हमे
हमारी जिम्मेदारी सिखाती है।।
कलम उठाकर चलना तो आसान  है।
पर कलम ✍️ चलाना तो हमे
हमारी खामोशी सिखाती है।।
जो साथी बन अंतर आत्मा का
भावनाओं को स्याही बन बहा ले जाती है।।।।।
                   शिल्पी सतना.......

©chahat
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chahat

Unsplash  रुकना नही बढते जाना

रुकना नहींं, थमना नही।
बस बढ़ते ही जाना है।
कहना नही सुनना नही।।
बस साथ निभाना है।।
जो साथ हो तुम्हारे,
संग उनके बढ़ते जाना है।
जो साथ होकर साथ ना होते
उन्हे वही छोड़ बढ़ जाना है।
चाल धीमी ही सही
मुस्कराहटों को कभी ना भुलाना है।।
तुम किसी से पीछे नहीं ,
अपना अंदाज़ बदलना नहीं ।
बदल देना लोगो नजरियां,
पर खुद कभी रुलाना नहीं ।।
बात है आत्म सम्मान की,
सम्मान कभी महंगा नहीं ।
जो गुरुर से मगरूर हो जाये
उसे पास बुलाना नहीं ।
जो तुम्हे हर पल गिराता ,
उसके लिये खुद को गिरना नहीं ।।
तुम बनना बहता पानी ।
खुद को खुद से कभी चुराना नहीं ।।
अपना अस्तित्व अपने साथ रखना।
कोई तुम बेबजह ऊँगली उठाये ,
इतना हक कभी किसी को देना नहीं ।
चुप रहना भी जरूरी है,
जवाब देकर सवाल कभी बनना नहीं ।।
जो पत्थर बन बैठे है।
उनके लिये मशाल बनकर कभी जलना नहीं ।।
तुम अपनी राह चलना।
तुम न रुकना, ना थामना।।
अपनी एक अलग पहचान बनना......
               शिल्पी .....

©chahat बढ़ते जाना है

बढ़ते जाना है #कविता

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chahat

White   मांगू  खुदा से, 
जो तक़दीर में लिखा है वही।
अपने कर्मो से कमाया,
वो पुण्य हो या पाप सही ।।
शिल्पी

©chahat
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chahat

White  अपने आंसुओ को,छिपाने मुस्करा देती हूं।
दिल में चुभती कोई बात,उसे छिपा लेती हूं।।
किसी का दर्द ना बनूँ,सबको विश्वास बना लेती हूं।
टूट जाती हूं कांच सी,बिखर के फिर सिमट जाती हूं।।
कोई राह नहीं क्युकी,इसलिए बस निभाती हूँ।
अपनी मंजिल तो पता है,पर ठहर जाती हूं।।
ठहर जाती क्युकी कर्तव्यों से, बंधा पाती हूं।
में वो डोर हूं,जो बस काट दी जाती हूं।।
कभी अच्छी कभी बुरी की परिभाषा बन जाती हूं।
कभी बातों में कभी सोच में लिख दी जाती हूं।।
मैं कहाँ खुद को खुद सा पाती हूं। 
अनपढ़ सी मै कहाँ किसी को पढ़ पाती हूं।
शिल्पी हूं खुद मूर्ती बन गढ़ दी जाती हूं।
आकार देकर कल्पनाओ का रंग दी जाती हूं।।  
                    शिल्पी जैन सतना

©chahat मुस्करा देती हूं

मुस्करा देती हूं #कविता

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chahat

White मै किसी को दर्द ना दूँ ।
जीवन को खुशियों से भर दूँ।।
आँचल अपना फैला कर मै।
धूप में भी छाँव कर दूँ।।
 मुस्कराहटे अपनी सारी बाँट दूँ।
 सारे गम हवा में उड़ा दूँ।।
आ....ए मेरी ज़िंदगी,
तुझे ज़िंदादिली से जीना सिखा दूँ।
अपनी बाहों में समेट लूँ तुझे ।
या पंख लगाकर उड़ना सिखा दूँ।।
थाम लूँ उन लम्हों को जो सुकून के मिले।
या हर लम्हों को सुकून से मिला दूँ।।
नज़रों से देखा नज़ारा ज़िंदगी का।
क्यूँ बेवजह मै अपनी आँखों को रुला दूँ।।
 है हर लम्हा रौशनी से भरा।
चलो एक मुलाक़ात उजालों से करा दूँ।।
क्यूँ ना बनकर दीपक में।
दिलों में प्यार की ज्योत जला दूँ।।
आ मेरी ज़िंदगी,
तुझे ज़िंदादिली से जीना सिखा दूँ।।           
               🍃शिल्पी जैन सतना

©chahat #Sad_Status
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chahat

White मै किसी को दर्द ना दूँ ।
सबको खुशियों से भर दूँ।।
आँचल अपना फैला कर मै।
धूप में भी छाँव कर दूँ।।
 मुस्कराहटे अपनी सबमे बाँट दूँ।
सबके गम हवा में उड़ा दूँ।।
आ ए मेरी ज़िंदगी,
तुझे ज़िंदादिली से जीना सिखा दूँ।
 अपनी बाहों में समेट लूँ तुझे ।
या पंख लगाकर उड़ना सिखा दूँ।।
थाम लूँ उन लम्हों को जो सुकून के मिले।
या हर लम्हों को सुकून से मिला दूँ।।
नज़रों से देखा नज़ारा ज़िंदगी का।
क्यूँ बेवजह मै अपनी आँखों को रुला दूँ।।
 है हर लम्हा रौशनी  का।
चलो एक मुलाक़ात उजालों से करा दूँ।।
क्यूँ ना बनकर दीपक में।
दिलों में प्यार की ज्योत जला दूँ।।
आ मेरी ज़िंदगी,
तुझे ज़िंदादिली से जीना सिखा दूँ।।           
               🍃शिल्पी जैन सतनाl

©chahat #Sad_Status
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chahat

White  दीपवली त्योहार खुशियों का।

त्योहारों की होती है एक अलग ही मीठी खनक।
जलते दीप चमके जैसे मिट्टी बन जाये कनक।।
मन मे हो उमंग महकती खुशियों के रंग।
उत्साह से भरे हो मन,चाहतों के संग।।
बांटे सबको खुशियाँ भर दे,सबके मन मे उमंग।
खिल उठे सबके मन जैसे लहरों से उठती तरंग।।
दीप जलाओ प्यार के,कर दो हर दिल रोशन।
सजा दो सबके मन जैसे एक नई दुल्हन।।
है मेरी यही प्रार्थना हो पूरा समर्पण।
रोशन हो जग सारा,हो सब अर्पण।।
करना सक्षम सबको, देना चेहरों पे मुस्कान।
कोई ना हो दुखी,हो सब सुखी ओ मेरे भगवान।।
घर घर जले, दीप करे हम ऐसे प्रयत्न।
पग पग बांटे खुशी,हो तब सब संपन्न।।
खरीदे दिये उनसे,जो बनाते बड़ी लगन से।
बेचते धूप में महकते है जो खिलौने  चन्दन से।।
                   शिल्पी जैन सतना

©chahat #happy_diwali
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chahat

White कही गहराइयों में,
अंतर्मन मे चल रहा संघर्ष।
ना रो सकते है 
ना कह सकते सहर्ष।।
दर्द को ना समझता कोई,
समझाऊ तो हसती है दुनिया।
चुप रहूँ कुछ ना कहूं,
डर जाऊ तो डराती है,दुनिया।। 

एक दर्द में,
जाने कितनो का दर्द छिपा।
एक कहानी का,
अलग अलग किरदार दिखा।।
हर कोई अपनी,
एक अलग उलझन में खड़ा।
न सुलझे ऐसी 
एक अलग अनबन में पढ़ा।।
ऐसा नहीं की 
है,ये किसी एक का मुद्दा
हर दूसरा इंसान
इसी कश्माश में फंसा ।।

कर मुश्किलों को दरकिनार।
जी लो ज़िंदगी मुस्करकर ।।
उठती गिरती लहरो से।
सीखो जीने का हुनर ।।
मुस्कराती गुनगुनाती सी।
अपने में रहती मगन।
ना है गहराइयों की फिकर।
ना है डूबने का डर।।
छूकर कर किनारो को।
फिर मिलती गहराइयों मे जाकर।।
यूँ करती तय अपना सफर।
खुशी और गम का हाथ थामकर  ।।
            शिल्पी जैन

                   शिल्पी जैन

©chahat अंतर्मन

अंतर्मन #कविता

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